अपने सभी अधिकारों के बारे में जान जाएं महिलाएं तो बच सकती हैं प्रताड़ना से

women rigts can save them from harassment

महिलाएं अब पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी क्षमता का लोहा मनवाया है लेकिन इसके बावजूद गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों से भी महिलाओं के साथ होने वाले शोषण, हिंसा और अत्याचारों की खबरें विचलित करती हैं।

महिलाएं अब पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं और हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी क्षमता का लोहा मनवाया है लेकिन इसके बावजूद गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों से भी महिलाओं के साथ होने वाले शोषण, हिंसा और अत्याचारों की खबरें विचलित करती हैं। अगर दुनियाभर के महिला हिंसा से संबंधित आंकड़ों की तुलना करें तो भारत में हर 3 मिनट में किसी न किसी महिला के खिलाफ अपराध होता है। कानून और अधिकारों की सम्पूर्ण जानकारी के अभाव में महिलाएं हिंसा, शोषण और अत्याचारों की शिकार होती हैं। आज महिलाओं के संरक्षण के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों ने कानून बनाकर उनकी सुरक्षा के व्यापक उपाय किये हैं। अक्सर यह देखा गया है कि बहुत सी महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ जो घटनाएं हो रही हैं, उससे बचाव के लिए कोई क़ानून भी है।

आमतौर पर शारीरिक प्रताड़ना यानि मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसी प्रकार के मामलों में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है। लेकिन महिलाओं और लड़कियों को यह नहीं पता कि मनपसंद कपड़े न पहनने देना, मनपसंद नौकरी या काम न करने देना, अपनी पसंद से खाना न खाने देना, बालिग़ व्यक्ति को अपनी पसंद से विवाह न करने देना या ताने मारना, मनहूस आदि कहना, शक करना, किसी खास व्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना, पढ़ने न देना, काम छोड़ने का दबाव डालना, कहीं आने-जाने पर रोक लगाना आदि भी हिंसा की श्रेणी में आता है और इसे मानसिक प्रताड़ना कहा जाता है। महिलाओं को अत्याचारों से बचाने के लिए प्रत्येक राज्य में महिला आयोग गठित किये गये हैं लेकिन इनकी सीमित भूमिका के चलते यह ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हो पाये हैं। हालांकि इनमें तुरंत निपटारे की आस में महिलाएं ज्यादा पहुंच रही हैं लेकिन यहां शिकायत लेकर पहुंचने वाली महिलाओं में अधिकांश संख्या उनकी है, जो न केवल पढ़ी-लिखी हैं, बल्कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ अपने अधिकारों के बारे में भी जागरूक हैं। लेकिन गांवों की अनपढ़, कम पढ़ी-लिखी और दबी-कुचली महिलाओं की आवाज़ यहाँ नहीं पहुंच पाती, जिसके कारण महिलाएं शोषण और हिंसा सहने को मजबूर हैं। लेकिन देश में सामुदायिक रेडियो द्वारा चलाये जा रहे जन-जागरण अभियानों से महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा में कमी दर्ज की गई है और अब महिलाएं घरेलू हिंसा के खिलाफ मुखर होकर अपनी आवाज उठा रही हैं जिसके कारण शासन-प्रशासन भी घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के प्रति संवेदनशील दिखाई देता है।

आमतौर पर महिलाएं घरेलू हिंसा अधिनियम-2005 से अनभिज्ञ हैं। यह क़ानून ऐसी महिलाओं को संरक्षण प्रदान करता है, जो परिवार के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा से पीड़ित हैं। इसमें अपशब्द कहने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और मारपीट करना आदि शामिल हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी एवं किशोरियों से संबंधित प्रकरणों को शामिल किया जाता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़ित महिला किसी भी व्यस्क पुरुष के विरुद्ध प्रकरण/मुकदमा दर्ज करा सकती है। घरेलू हिंसा में दोषी साबित होने पर 3 साल की सजा हो सकती है। शारीरिक प्रताड़ना की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताड़ना के मामले ज़्यादा होते हैं।

यहां हम कुछ ऐसे अपराधों का ज़िक्र कर रहे हैं, जिनकी जानकारी होने पर महिलाएं अपने साथ होने वाले अत्याचारों के खिला़फ आवाज़ उठा सकती हैं। घरेलू हिंसा की घटनाएं कितनी व्यापक हैं, यह तय कर पाना मुश्किल है। यह एक ऐसा अपराध है जो अकसर छुपाया जाता है, जिसकी रिपोर्ट कम ही दर्ज़ की जाती है। रिश्ता टूटने के डर से महिलाएं घरेलू हिंसा को अपनी दिनचर्या का हिस्सा मान लेती हैं। समाज के स्तर पर घरेलू हिंसा की हकीक़त को स्वीकार करने से यह माना जाता है कि विवाह और परिवार जैसे स्थापित सामाजिक ढाँचों में महिलाओं की ख़राब स्थिति को भी स्वीकार करना पड़ेगा। देश के सर्वाधिक पिछड़े जिले नूंह (मेवात) में हिंसा के बढ़ते मामलों को देखते हुए सामुदायिक रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात एक विशेष सीरीज़ के माध्यम से "हिंसा को कहो ना, चलो एक शुरूआत करें" नामक अभियान चला रहा है, जिसके माध्यम से महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरूष भी जागरूक होकर इस मुहिम का समर्थन कर रहे हैं ताकि समाज में प्रचलित लैंगिक भेदभाव समाप्त हों और लड़कियाँ तथा महिलाएं अपने घरों में सुरक्षित महसूस कर सकें।

मुहिम के तहत कविताओं, नारों और रेडियो सीरीज़ के जरिए जन-जागरण अभियान चलाया जा रहा है जिसे स्थानीय महिलाओं और समाज का भरपूर समर्थन मिल रहा है। कम्युनिटी रेडियो एसोसिएशन की पदाधिकारी एवं सहगल फाउंडेशन की संचार निदेशक पूजा मुरादा का कहना है कि सामुदायिक रेडियो की पहुंच ऐसे तमाम क्षेत्रों में बढ़ी है जहां महिलाएं सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा की शिकार थीं लेकिन विभिन्न सामुदायिक रेडियो द्वारा संचालित जन-जागरण अभियानों से महिलाओं में जागरूकता बढ़ी है और अब वे अपने अधिकारों और दायित्वों को लेकर मुखर हुई हैं।

इस क़ानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में अनेक प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी भी घरेलू सम्बंध या रिश्तेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी अंग को कोई हानि पहुँचती है, या मानसिक या शारीरिक हानि होती है, वह घरेलू हिंसा है। इसके अलावा घरेलू सम्बन्धों या रिश्तेदारी में, किसी भी प्रकार का शारीरिक दुरुपयोग (जैसे मार-पीट करना, थप्पड़ मारना, दाँत काटना, ठोकर मारना, लात मारना इत्यादि), लैंगिक शोषण, (जैसे बलात्कार अथवा बलपूर्वक बनाए गए शारीरिक सम्बंध, अश्लील साहित्य या सामग्री देखने के लिए मजबूर करना, अपमानित करने के दृष्टिकोण से किया गया लैंगिक व्यवहार और बच्चों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार), मौखिक और भावनात्मक हिंसा (जैसे अपमानित करना, गालियाँ देना, चरित्र और आचरण पर आरोप लगाना, लड़का न होने पर प्रताड़ित करना, दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना, नौकरी न करने या छोड़ने के लिए मजबूर करना, अपने मन से विवाह न करने देना या किसी व्यक्ति विशेष से विवाह के लिए मजबूर करना, आत्महत्या की धमकी देना इत्यादि) घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है।

आर्थिक हिंसा (जैसे आपको या आपके बच्चे को अपनी देखभाल के लिए धन और संसाधन न देना, आपको अपना रोज़गार न करने देना, या उसमें रुकावट डालना, आपकी आय, वेतन इत्यादि आपसे ले लेना, घर से बाहर निकाल देना इत्यादि), भी घरेलू हिंसा है और इसके लिए दोषी सिद्ध होने पर तीन साल की कैद की सजा है सकती है। इसके अलावा जिससे किसी व्यक्ति के जीवन और कल्याण को चोट पहुंची हो, वह घरेलू हिंसा कहलाएगा; उदाहरण के तौर पर, घर का खर्च न उठाना, बच्चों की परवरिश हेतु धन न देना, आर्थिक शोषण माना जाता है।

पीड़ित महिला इस कानून के तहत ‘संरक्षण अधिकारी’ से संपर्क कर सकती है। पीड़ित महिलाओं के लिए ‘संरक्षण अधिकारी’ संपर्क का पहला बिंदु है। संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही शुरू करने और एक सुरक्षित आश्रय या चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में पीड़ित महिला की मदद करते हैं। प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में ‘संरक्षण अधिकारी’ नियुक्त करती है। इसके लिए कई स्वयंसेवी संस्थान ‘सेवा प्रदाता’ के रूप में काम कर रहे हैं जो पीड़ित महिलाओं की सहायता करते हैं। यह संस्थान राज्यों के महिला एवं बाल विकास विभाग से पंजीकृत होते हैं और पीड़ित महिलाओं की शिकायत दर्ज कराने, चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने और रहने के लिए सुरक्षित स्थान प्राप्त कराने में मदद करते हैं। सीधे पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया जा सकता है। पीड़ित महिला खुद शिकायत कर सकती है और अगर आप पीड़ित नहीं भी हैं तो भी आप संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर किसी पीड़ित महिला की मदद सकते हैं।

कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे किसी कारण से लगता है कि घरेलू हिंसा की कोई घटना घटित हुई है या हो रही है या ऐसा अंदेशा भी है या ऐसी घटना घटित हो सकती है, तो वह वह संरक्षण अधिकारी को सूचित कर सकता है। यदि आपने सद्भावना में यह काम किया है तो जानकारी की पुष्टि न होने पर भी आपके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। सुरक्षा अधिकारी के अलावा पीड़ित महिला ‘सेवा प्रदाता’ स्वयंसेवी संगठन के कार्यकर्ताओं से भी संपर्क कर सकती है। ऐसा करने पर सेवा प्रदाता स्वयंसेवी संगठन के कार्यकर्ता शिकायत दर्ज कर, ‘घरेलू हिंसा घटना रिपोर्ट’ बना कर मजिस्ट्रेट और संरक्षण अधिकारी को सूचित करते हैं ताकि पीड़ित महिला को समय पर मदद मिल सके। इस अधिनियम को लागू करने की ज़िम्मेदारी जिन अधिकारियों पर है, उनके इस कानून के तहत कुछ कर्तव्य हैं जैसे- जब किसी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता स्वयंसेवी संगठन या मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की घटना के बारे में पता चलता है, तो उन्हें पीड़ित को निम्न अधिकारों के बारे में सूचित करना आवश्यक है: पीड़ित महिला इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे- संरक्षण आदेश, आर्थिक राहत, बच्चों के अस्थाई संरक्षण (कस्टडी) का आदेश, निवास का आदेश या मुआवजे का आदेश। इसके लिए पीड़ित महिला आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है, संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती है तथा नि:शुल्क क़ानूनी सहायता की मांग कर सकती है।

घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक मुकदमे की याचिका भी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन साल तक की जेल हो सकती है, लेकिन इसके तहत पीड़ित महिला को गंभीर शोषण के आरोप न्यायालय में सिद्ध करने की आवश्यकता है। इसके अलावा राज्य सरकारों द्वारा संचालित आश्रय गृहों और अस्पतालों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह उन सभी पीड़ितों को रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान और चिकित्सा सहायता प्रदान करें, जो उनके पास मदद के लिए पहुंचते हैं। पीड़ित महिला सेवा प्रदाता स्वयंसेवी संगठन या संरक्षण अधिकारी के माध्यम से इनसे संपर्क कर सकती है।

हालांकि महिलाओं को हिंसा और शोषण से बचाने के लिए प्रदेश सरकार कटिबद्ध है और अब हरियाणा देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है जिसने प्रदेश में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा एवं सहायता पहुंचाने के लिए ‘सुकून’ क्राइसिस इंटरवेन्शन केन्द्रों की स्थापना हरियाणा स्टेट हैल्थ रिसोर्स सेंटर के माध्यम से की है। प्रदेश के आठ जिलों- पंचकूला, अम्बाला, पानीपत, यमुनानगर, जींद, रेवाड़ी, फरीदाबाद एवं गुड़गांव में सेंटर पीड़ितों की मदद में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

इन ‘सुकून’ केन्द्रों में पीड़ितों को नि:शुल्क चिकित्सा सहायता, परामर्श के माध्यम से शारीरिक और मानसिक सहायता, विधिक सहायता, पुलिस शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी एवं अन्य सरकारी सेवाओं और सुविधाओं की जानकारी प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त, हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं बच्चों को अस्पताल में उपचार प्रदान करने के साथ उनके विरुद्ध हुई हिंसा के बारे में जानकारी प्राप्त कर पहचान करना शामिल है। प्रत्येक जिले में महिला थाना खोलने की शुरुआत हो चुकी है। इसके अलावा घरेलू हिंसा, यौन शोषण, बलात्कार पीडित, दहेज उत्पीड़न, बाल विवाह, बाल यौन शोषण, एसिड अटैक व वैश्यावृति जैसे अपराधों से पीड़ित महिलाओं व बच्चों की सहायता के लिए हिंसा से बचाने के लिए करनाल में हरियाणा का पहला वन स्टॉप सेंटर खोला गया था, इसकी सफलता को देखते हुए सरकार द्वारा प्रदेश के 6 अन्य जिलों में भी यह सेंटर खोले गए हैं जिनमें रेवाडी, गुरूग्राम, हिसार, भिवानी, फरीदाबाद तथा नारनौल शामिल हैं।

-सोनिया चोपड़ा

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