सौरव गांगुली: एक ऐसा कप्तान जिसने टीम इंडिया को विदेशी धरती पर जीतना सिखाया

sourav ganguly
ANI
अंकित सिंह । Jul 8 2022 3:52PM

सौरव गांगुली का बचपन से ही खेल की तरफ झुकाव था। कोलकाता में फुटबॉल का एक अलग क्रेज हुआ करता था और गांगुली भी इसके प्रति आकर्षित थे। हालांकि, उनका परिवार उन्हें खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं था। सौरव गांगुली के बड़े भाई उस वक्त बंगाल क्रिकेट टीम के सदस्य थे। यही कारण रहा कि सौरव गांगुली क्रिकेट के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए।

पूर्व भारतीय कप्तान और वर्तमान में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष सौरव गांगुली 50 वर्ष के हो गए हैं। आज उनका जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर उन्हें हर ओर से बधाई मिल रही है। सौरव गांगुली आज हमारे देश में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। एक वक्त था जब सौरव गांगुली की लोकप्रियता शिखर पर थी। जब वह मैदान पर बल्लेबाजी करने उतरते थे तो दादा-दादा के नारे से पूरा का पूरा मैदान गुंजायमान हो जाता था। उनके द्वारा लगाए गए छक्के आज भी हमारे रोंगटे खड़े कर देते हैं। सौरव गांगुली का जन्म 8 जुलाई 1972 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम चंडीदास और माता का नाम निरूपा गांगुली था। सौरव गांगुली का परिवार कोलकाता के रईस व्यवसायिक परिवार में शामिल था। सौरव गांगुली का बचपन रईसी में बीता। यही कारण है कि आज भी सौरव गांगुली को महाराजा के नाम से पुकारा जाता है। 

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सौरव गांगुली का बचपन से ही खेल की तरफ झुकाव था। कोलकाता में फुटबॉल का एक अलग क्रेज हुआ करता था और गांगुली भी इसके प्रति आकर्षित थे। हालांकि, उनका परिवार उन्हें खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं था। सौरव गांगुली के बड़े भाई उस वक्त बंगाल क्रिकेट टीम के सदस्य थे। यही कारण रहा कि सौरव गांगुली क्रिकेट के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। सौरव गांगुली दाएं हाथ से हर काम करते थे। लेकिन वे अपने भाई की क्रिकेट किट का इस्तेमाल कर सके, इसके लिए उन्होंने बाएं हाथ से बल्लेबाजी करने की शुरुआत की थी। क्रिकेट के क्षेत्र में गांगुली के आने के बाद उनके भाई ने उनका पूरा समर्थन किया। उड़ीसा की अंडर 15 टीम के खिलाफ शतक बनाने के बाद सौरव को सेंट जेवियर स्कूल क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया। हालांकि, उस दौरान सौरव गांगुली के खिलाफ  खिलाड़ियों ने उनके अहंकार की शिकायत की थी। एक जूनियर टीम के साथ गांगुली ने 12वें खिलाड़ी के रूप में खेलने से साफ तौर पर इंकार कर दिया था। हालांकि, गांगुली अपने खेल के जरिए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते गए। यही कारण रहा कि 1989 में बंगाल के लिए उन्हें प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलने का मौका मिला।

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इसके बाद गांगुली ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांगुली लगातार क्रिकेट के क्षेत्र में आगे बढ़ते गए। 1990-91 में उन्होंने रणजी मैच खेला। गांगुली को 1992 में टीम इंडिया में जगह मिल गई और उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ पदार्पण मैच में सिर्फ 3 रन बनाए। हालांकि उन्हें टीम से इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उन्हें अभिमानी माना गया। 1993 से लेकर 95 तक उन्होंने घरेलू क्रिकेट में कड़ी मेहनत की और खूब रन बनाएं। यही कारण रहा कि उन्हें 1996 में एक बार फिर से टीम इंडिया की ओर से खेलने का मौका मिल गया। उन्हें इंग्लैंड में एक दिवसीय मैच खेलने का मौका मिला। हालांकि टेस्ट टीम से बाहर कर दिया गया। बाद में किसी अन्य कारण से उन्हें टेस्ट मैच में खेलने का मौका मिला और गांगुली ने राहुल द्रविड़ के साथ मिलकर लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में तीन मैचों की श्रृंखला के दूसरे टेस्ट में पदार्पण किया। इस मैच में गांगुली ने जबरदस्त तरीके से शतक बनाया था।

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गांगुली लगातार क्रिकेट में नई उपलब्धियां हासिल करते गए। जब टीम इंडिया मैच फिक्सिंग के दाग से जूझ रही थी, तब सौरव गांगुली को कप्तानी सौंपी गई। इसके बाद सौरव गांगुली के नेतृत्व में टीम में कई बड़े प्रयोग हुए और खिलाड़ियों के प्रदर्शन भी बेहतर होने लगे। वह सौरव गांगुली ही थे जिन्होंने युवराज सिंह, हरभजन सिंह, वीरेंद्र सहवाग, वीवीएस लक्ष्मण, मोहम्मद कैफ, जहीर खान, आशीष नेहरा जैसे खिलाड़ियों को टीम में शामिल कराया और उन्हें खेलने का मौका दिया। गांगुली के नेतृत्व में टीम इंडिया 2003 के वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचने में भी कामयाब रही थी। लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में गांगुली का टीशर्ट उतार कर घूमने वाला सीन आज भी हम सभी को याद है। गांगुली ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जिन्होंने अपने टीम के खिलाड़ियों को हमेशा प्रेरित और प्रोत्साहित किया और उनके खराब प्रदर्शन के दौरान उनका बचाव भी किया। गांगुली ने टीम को आक्रमक होकर खेलना सिखाया। यही कारण रहा कि गांगुली की कप्तानी में भारत ने विदेशी सरजमीं पर भी कई बड़े और अच्छे जीत हासिल किए हैं।

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