चीन का 40 साल पुराना आर्थिक मॉडल चरमराने से दुनियाभर के कम्युनिस्टों ने अपने होंठ सिल लिये हैं

xi jinping
ANI

चीनी अर्थव्यवस्था के आंकड़े दर्शा रहे हैं कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था गहरे संकट का सामना कर रही है। चीन के 40 साल के सफल वृद्धि मॉडल को चरमराते देख वैश्विक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन बहुत धीमी वृद्धि के युग में प्रवेश कर रहा है।

चीन को अपने सफल आर्थिक मॉडल पर बड़ा गर्व था। इसके अलावा दुनिया में जहां भी थोड़े-बहुत कम्युनिस्ट बचे हैं वह भी चीन का उदाहरण देकर कम्युनिस्टों की आर्थिक नीतियों की सराहना किया करते थे। लेकिन चीन का आर्थिक मॉडल ढहने की स्थिति में आते ही दुनिया भर के कम्युनिस्टों ने चुप्पी साध ली है। दूसरी ओर चीन अपनी अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाने के लिए उसकी मरम्मत के जो भी उपाय कर रहा है वह विफल हो जा रहे हैं जिससे दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञ भी हैरत में हैं। दरअसल अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था के चलते ही चीन का पूरी दुनिया में दबदबा था लेकिन अब चीन की मजबूती का आधार ही बचने की स्थिति में नहीं नजर आ रहा है जिससे उसके भविष्य पर संकट मंडराता दिख रहा है।

चीनी अर्थव्यवस्था के आंकड़े दर्शा रहे हैं कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था गहरे संकट का सामना कर रही है। चीन के 40 साल के सफल वृद्धि मॉडल को चरमराते देख वैश्विक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन बहुत धीमी वृद्धि के युग में प्रवेश कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिकूल जनसांख्यिकी और अमेरिका तथा उसके सहयोगियों के साथ चीन की बढ़ती दूरियों से इस देश की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई है। बताया जा रहा है कि चीन में विदेशी निवेश और व्यापार में लगातार तेज गिरावट आने से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग दिन भर अपने कार्यालय में माथा पकड़ कर बैठे रहते हैं। जिनपिंग आर्थिक विशेषज्ञों की इस भविष्यवाणी से भी परेशान बताये जा रहे हैं जिसमें कहा गया है कि चीन में आर्थिक कमजोरी का यह दौर अस्थायी नहीं है बल्कि इसका लंबे समय तक असर देखने को मिलेगा। आर्थिक विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि चीन की अर्थव्यवस्था जिस तरह रसातल में जा रही है वह आर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी घटना होने जा रही है।

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बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि चीनी सरकार व सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों के विभिन्न स्तरों के कर्ज सहित कुल ऋण 2022 तक चीन के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 300 प्रतिशत हो गया था, जो अमेरिकी स्तर को पार कर गया। हम आपको बता दें कि यह अनुपात 2012 में 200 प्रतिशत से भी कम था। यही नहीं, खुद चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) ने जून महीने में कहा था कि चीन का सकल घरेलू उत्पाद 2023 की पहली छमाही (एच1) में सालाना आधार पर 5.5 प्रतिशत बढ़ा। पहली छमाही में चीन की जीडीपी 59,300 अरब युआन रही। आंकड़े दर्शाते हैं कि महामारी के बाद पहली तिमाही में तेज शुरुआत के बाद चीन की अर्थव्यवस्था में रिकवरी धीमी हो गई है क्योंकि चीनी उत्पादों की देश और विदेश में मांग कमजोर हो गई है और अर्थव्यवस्था को समर्थन देने वाली चीन सरकार की नीतियां आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने में विफल रहीं हैं।

चीन के हालात पर गौर करें तो एक चीज जो सबसे पहले स्पष्ट रूप से उभर कर आती है वह यह है कि कोरोना वायरस के जनक चीन ने ही कोविड महामारी का दंश भी सबसे ज्यादा झेला लेकिन उसने यह बात कभी स्वीकारी नहीं। अब जब चीन में कोरोना के सख्त प्रतिबंध हटे तो लोग पहले जैसा जीवन जीना चाहते हैं लेकिन आर्थिक संकट उन्हें ऐसा नहीं करने दे रहा। चीनी मीडिया की खबरों के अनुसार लोग अब खर्च की बजाय बचत पर ज्यादा जोर दे रहे हैं क्योंकि लोगों को लगता है कि कठिन समय के लिए पैसा बचा कर रखना बेहद जरूरी है। वैश्विक मीडिया रिपोर्टों को भी देखेंगे तो पता चलता है कि लोग आगे किसी अप्रत्याशित बीमारी आने पर ईलाज के लिए पैसे बचा रहे हैं या अगर नौकरी चली जाये तो अगली नौकरी मिलने तक के खर्चे चलाने के लिए पैसा बचा रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन का रोज़गार बाज़ार बेहद कमज़ोर बताया जा रहा है। वहां युवा बेरोज़गारी 21% से ऊपर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर है।

बेरोजगारी और नौकरी खोने के डर के चलते चीनी नागरिक बच्चे पैदा करने से बच रहे हैं। यह स्थिति तब है जब चीन की आबादी बूढ़ी हो रही है और जनसंख्या सिकुड़ रही है। चीन सरकार हालांकि बाजार में मांग को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय कर रही है जिनमें कार और घरेलू उपकरणों पर सब्सिडी, रेस्तरां के खुलने का समय बढ़ाना और पर्यटन और मनोरंजन गतिविधियों को बढ़ावा देना शामिल है। लेकिन इसका कोई असर नहीं हो रहा है। उद्योग जगत ने भी सरकार के प्रयासों को नाकाफी बताया है।

अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि चीन इस समय डिफलेशन यानि अपस्फीति का सामना कर रहा है। अपस्फीति का मतलब यह है कि लोगों के पास पैसा भले है लेकिन वह उत्पाद नहीं खरीद रहे, लोग उत्पाद नहीं खरीद रहे तो उनकी कीमतें कम हो रही हैं, फैक्ट्रियां उनका उत्पादन घटा रही हैं और रोजगार के अवसरों को कम कर रही हैं। देखा जाये तो यह स्थिति ज्यादा दिन चली तो चीन की अर्थव्यवस्था का तबाह होना निश्चित है। आंकड़े दर्शाते हैं कि चीन के फैक्ट्री-गेट कीमतों में जुलाई में गिरावट आई, क्योंकि चीनी अर्थव्यवस्था बाजार में मांग को बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही है। अगस्त माह के आंकड़े भी जब आयेंगे तो वह जुलाई से खराब ही होंगे। जुलाई माह में चीन के निर्यात और आयात दोनों में गिरावट देखी गई थी और अगस्त में भी यही हाल रहेगा। इसके अलावा, चीन का रियल एस्टेट सेक्टर और बैंकिंग क्षेत्र भी तमाम तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है। कम बैंक ब्याज दरों के बावजूद, चिंतित उपभोक्ता और कंपनियां पैसा खर्च करने या निवेश करने की बजाय नकदी को जमा करने पर तरजीह दे रहे हैं।

बहरहाल, चीन के पश्चिमी देशों से टकराव और उसकी विस्तारवादी नीतियों के चलते जो आर्थिक शीत युद्ध चल रहा है उसका खामियाजा भी चीन को उठाना पड़ रहा है। चीन में विदेशी निवेश लगभग बंद हो चुका है और कई बड़ी कंपनियां चीन को छोड़ चुकी हैं। इसके अलावा चीन जैसे कम मेहनताने वाले श्रमिक और बेहतर तकनीक अब कई एशियाई देशों में उपलब्ध है इसलिए बाहरी उद्योग अब चीन को छोड़ रहे हैं। इसके अलावा, चीन ने बहुत से देशों के संसाधनों पर कब्जे की नीयत से उन्हें जो भारी कर्ज दिया था उसकी भरपाई कहीं से नहीं हो पा रही है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना पर अब तक अरबों डॉलर खर्च हो चुके हैं। लेकिन यह योजना भी विफल होती नजर आ रही है। कुल मिलाकर चीन का आर्थिक भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है जिसका बड़ा असर उसकी विस्तारवादी नीतियों पर पड़ सकता है। देखना होगा कि क्या चीन भी पाकिस्तान की राह पर चलते हुए खराब आर्थिक संकट के बावजूद पड़ोसियों से झगड़ा बढ़ाने को ही वरीयता देता है या मिलकर रहने को तरजीह देता है।

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