लालू का साथ देकर कांग्रेस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी

Congress loses its own by supporting Lalu

कांग्रेस यह भूल गई कि उसने समर्थन लालू यादव को नहीं बल्कि बिहार की सरकार को दिया है। मुख्यमंत्री नीतिश इस मुद्दे पर लालू से सफाई मांग रहे थे लेकिन कांग्रेस ने उनका साथ नहीं दिया।

जो लोग इतिहास से सबक नहीं लेते वो इतिहास का खराब हिस्सा बन जाते हैं। कमोबेश कांग्रेस की यही हालत होने जा रही है। विगत लोक सभा और विधान सभा चुनावों में मिली शिकस्त के बावजूद कांग्रेस सुधार करने को तैयार नहीं है। इस ढुलमुल नीति का ही परिणाम है कि बिहार में हुए राजनीतिक घटनाक्रम में कांग्रेस लगभग अप्रासंगिक होने के कगार पर पहुंच गई है। इस हालत के लिए कांग्रेस की सोचविहीन राजनीति जिम्मेदार है। 

केंद्रीय जांच एजेंसियों ने लालू प्रसाद यादव के बेटे−बेटियों के पास गैर कानूनी तरीके से एकत्रित सम्पत्ति की जांच की। कई ठिकानों पर छापामारी की। एजेंसियों के हाथ अरबों रूपयों की अघोषित सम्पत्ति के पुख्ता सबूत लगे हैं। लालू परिवार बेशक केंद्र सरकार के विरूद्ध बदले की कार्रवाई करने का आरोप लगाए पर एजेंसियों ने दांव खाली नहीं जाए, इसलिए प्रारंभिक सबूत जुटाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। केंद्र सरकार ने भी छापों की हरी झंडी दिखाने से पहले इस बात को सुनिश्चित कर लिया कि वार बेकार नहीं जाना चाहिए। अन्यथा बड़ी फजीहत होगी। यही माना जाएगा कि केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार प्रतिशोधात्मक कार्रवाई कर रही है।

लालू यादव ने छापों की कार्रवाई से पहले और बाद में नरेन्द्र मोदी और भाजपा को कोसने में कसर बाकी नहीं रखी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भष्टाचार के खिलाफ राज्य में बेशक कोई मुहिम नहीं चलाई हो किन्तु घोषित तौर पर यह दिखाया कि किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दरअसल नीतीश को अंदाजा हो गया था कि प्रदेश के मतदाताओं में साख बचाने के लिए लालू को सत्ता की भागीदारी से दरकिनार करना जरूरी हो गया है। अन्यथा यही माना जाएगा कि नीतिश भ्रष्टाचार के आरोपियों को शह दे रहे हैं। उधर भाजपा भी केंद्रीय एजेंसियों के छापों के बाद नीतीश सरकार पर लगातार हमला कर रही थी। ऐसे में लालू परिवार पर छापों में पकड़ी गई सम्पत्ति के स्त्रोतों का खुलासा करने का दबाव बढ़ता गया।

नीतिश सरकार को समर्थन दे रही कांग्रेस लालू यादव परिवार पर पड़े छापों को राजनीतिक वैमनस्यता बताती रही। कांग्रेस नीतिश कुमार की गोलबंदी को समझने में नाकामयाब रही। कांग्रेस यह भूल गई कि उसने समर्थन लालू यादव को नहीं बल्कि बिहार की सरकार को दिया है। मुख्यमंत्री नीतिश इस मुद्दे पर लालू से सफाई मांग रहे थे। कांग्रेस ने लालू पर लगे आरोपों में नीतिश का साथ नहीं देकर उसी गलती की पुनरावृत्ति की, जो केंद्र में सत्ता के दौरान रहते हुए भ्रष्टाचार के मामलों में की थी। तब भी कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के आरोपियों को संरक्षण दिया और यही लालू के मामले में किया।

लालू परिवार ने सम्पत्ति यदि मेहनत और ईमानदारी से कमाई होती तो इतनी ना−नुकर नहीं करते। यदि सबूत होते तो उसे पेश करके बेदाग साबित करने का प्रयास जरूर करते। लालू परिवार के अड़ियल रूख और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बरगलाने के प्रयासों से ही लग गया था कि इसका खुलासा नहीं करेंगे की इतनी जल्दी विशाल सम्पत्ति कैसे अर्जित कर ली। यदि खुलासा ही करना होता तो केंद्रीय एजेंसियों ने जब पहला छापा मारा तभी सबूत पेश करके केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर सकते थे। इसके विपरीत बचाव की ढाल के तौर पर उल्टे केंद्र पर ही आरोप लगाते रहे। कांग्रेस इस मुद्दे पर प्रारंभ में चुप्पी साधे रही। जिसके मायने यही निकाले गए कि कांग्रेस लालू का मौन समर्थन कर रही है। जब छापों की कार्रवाई लगातार बढ़ती गई तो कांग्रेस ने भी कार्रवाई के विरोध में लालू के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया। ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस को इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि केंद्र सरकार ने लालू परिवार के खिलाफ कार्रवाई से पहले पर्याप्त सबूत जुटा लिए हैं। इससे पहले भी लालू चारा घोटाले का सामना कर रहे हैं। इसके बावजूद कांग्रेस लालू यादव की पैरवी करने से बाज नहीं आई। यह समझते हुए भी कि केंद्र सरकार भ्रष्टाचार विरोधी नीति से पीछे नहीं हटेगी, कांग्रेस इसके दूरगामी परिणामों का अंदाजा लगाने में पूरी तरह विफल रही।

कांग्रेस ने पिछले चुनावों से कोई सीख नहीं ली। भाजपा ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को किनारे लगाने में कसर नहीं छोड़ी थी। लोक सभा सहित अन्य चुनावों में यह बड़ा मुद्दा रहा। लालू यादव का साथ देकर कांग्रेस ने एक तरह से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। यह जानते हुए भी कि केंद्र की भाजपा गठबंधन सरकार के पास कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को बेनकाब करने के लिए भ्रष्टाचार बड़ा राजनीतिक हथियार है। दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस ने सत्ता गंवाने के बाद भी केंद्र के इस हथियार को गोला−बारूद मुहैया कराने का काम किया है।

कांग्रेस केंद्र पर गरजती−बरसती भले ही रही हो पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कोई स्पष्ट नीति घोषित नहीं कर पाई। कांग्रेस इस मुद्दे पर या तो बचाव या फिर आरोप के बदले प्रत्यारोप लगाने की भूमिका में ही रही है। केंद्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस की सांप−छछूंदर जैसी हालत का पूरा फायदा उठाया। कांग्रेस को जनता की अदालत में घसीटने में कसर बाकी नहीं रखी। बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम में नीतिश ने मतदाताओं के सामने भ्रष्टाचार की मुहिम में शहीद का दर्जा पा लिया। भाजपा ने इसी नीति पर चलते हुए अपनी भ्रष्टाचार विरोधी साख में इजाफा कर लिया। इस पूरे प्रकरण लालू यादव के पास अब गंवाने को कुछ नहीं बचा। लालू के संग कांग्रेस भी डूबने की हालत में पहुंच गई। कांग्रेस ने बिहार में विगत विधान चुनाव में गठबंधन की नाव पर सवारी करते हुए विधान सभा की 243 सीटों में से 27 जीत कर अपना अस्तित्व बचा लिया। भ्रष्टाचार के मामलों में पहले से ही घिरी कांग्रेस के लिए आगामी विधान सभा चुनाव में इतनी जीत हासिल करना भी आसान नहीं होगा।

- योगेन्द्र योगी

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