विस्तारवादी नीति के तहत पड़ोसियों को कर्ज के जाल में फंसा रहा चीन

Expansionist policy of China is trapping neighbours in debt
अनीता वर्मा । Jul 15 2017 1:07PM

चीन की कंपनियों ने श्रीलंका में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में भारी भरकम निवेश किया है और श्रीलंका को कर्ज देने वाली चीनी कंपनियों द्वारा काफी ऊँचे दर पर ब्याज वसूलने के कारण श्रीलंका की वित्तीय स्थिति को काफी नुकसान हो रहा है।

एशिया का अकेला नेतृत्व करने की इच्छा रखने वाला चीन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत के बढ़ते कद से परेशान है। वर्तमान में चीन, भारत को एक प्रतिद्वंद्वी की तरह देख रहा है। चूंकि भारत विश्व की तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। ऐसे में जहाँ एक तरफ भारत सम्पूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में सफल हुआ है तो दूसरी ओर चीन अपनी नीतियों के कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अलग थलग नज़र आ रहा है।

चीन की नीतियों के संदर्भ में देखें तो चीन ने हमेशा आक्रामक विस्तारवादी विदेश नीति को केंद्र में रखा है। यही कारण है कि 20वीं सदी से 21वीं सदी तक चीन अपने भूभाग को बढ़ाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाते भी बाज नहीं आता है। 1959 में चीन की जमीन के प्रति भूख के कारण तिब्बत जैसे शांत प्रिय राष्ट्र को अपने स्वतंत्र अस्तित्व को खोना पड़ा और वहाँ के नागरिकों को चीन के अत्याचार के कारण दूसरे देशों में शरणार्थी बनने पर मजबूर होना पड़ा। चीन एक शातिर देश है निश्चित ही तिब्बत पर कब्जा करने का मंशा भारत को ही केन्द्रित करके की होगी क्योंकि तिब्बत पर कब्जा करने के पश्चात एक तो भारतीय सीमा के निकट पहुंचने में सफलता प्राप्त मिली और पाकिस्तान जैसे सदाबहार मित्र का पड़ोसी, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के माध्यम से बना। अर्थात  पीओके से ही चीन की सीमा पाकिस्तान से लगती है जिसको लेकर भारत पाकिस्तान के मध्य विवाद है। तो दूसरी ओर चीन ने जल नियंत्रण करने की शक्ति हासिल करने में सफलता प्राप्त की।

दरअसल जल नियंत्रण से तात्पर्य है कि भारत में बहने वाली तीन सदावाहिनी नदियों (ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज) का उद्गम स्थल तिब्बत में है। ज्ञात है कि चीन ने बह्मपुत्र नदी पर बांध बनाया है। उसके माध्यम से गर्मियों में पानी की कमी के समय भारत का पानी रोकने में सक्षम है जिससे नार्थ ईस्ट इलाके को सूखे का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी ओर वर्षा के दिनों में अत्यधिक जल की स्थिति में बांध का फाटक खोलने पर नार्थ ईस्ट इलाका जलमग्न हो सकता है। सतलुज नदी के संदर्भ में देखें तो इसका उद्गम स्थल भी तिब्बत (राक्षस ताल) ही है। ऐसे में सतलुज नदी पर बने भाखड़ा बाँध पर बनी जल विद्युत स्टेशन, करचम वांगटु हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट और नाथपाझाकड़ी जल विद्युत परियोजना को प्रभावित करने की भी शक्ति हासिल है।

ज्ञातव्य है कि भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से काफी लंबे समय से पीड़ित है। इसी कारण पाकिस्तान पर दबाव बनाने हेतु सिर्फ कहा ही गया था कि हो सकता है सिंधु नदी के जल की समीक्षा कर भारत अपने हिस्से के जल का इस्तेमाल करे। फिर क्या था पाकिस्तान के सदाबहार मित्र चीन ने तो ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी का पानी रोक कर पाकिस्तान के साथ मित्रता को बखूबी निभाया। यहाँ तक कि चीन ने आतंकवाद के प्रति दोहरा रवैया अपनाते हुए संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित होने से भी बचाया। जबकि चीन स्वयं भी उइघुर प्रांत में आतंकवाद से पीड़ित है। चीन ने पाकिस्तान के माध्यम से भारत की सुरक्षा के समक्ष काफी चुनौतियां खड़ी कीं बावजूद भारत पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के मसले पर अलग थलग करने में कामयाब रहा। यही कारण है कि विश्व के कई देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, इजराइल, जापान, अफगानिस्तान, यूरोपीय यूनियन के देश, आसियान देश इत्यादि भारत के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं। हाल में भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने हिजबुल के चीफ सैयद सलाहुद्दीन को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। इसके लिए कश्मीर में हो रहीं आतंकवादी गतिविधियों को आधार बनाया गया है। इस पर चीन ने कहा था कि अमेरिका को दूसरे देशों की सम्प्रभुता का सम्मान करना चाहिए। इस प्रकार मसूद अजहर और सैयद सलाहुद्दीन के मुद्दे पर आतंकवाद के प्रति चीन के दोहरे रवैये से संपूर्ण विश्व परिचित हुआ। इससे स्पष्ट होता है कि एशिया में भारत को प्रतिद्वंद्वी मानकर चीन भारत की विकास यात्रा को पाकिस्तान के माध्यम से बाधित करता है। अर्थात सारा ध्यान पाकिस्तान और कश्मीर पर रहे और चीन अपने विकास कार्यों को सुचारू रूप से करता रहे। यहाँ तक कि चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता के दावे का भी विरोध करता है।

दक्षिण चीन सागर के संदर्भ में चीन की नीति से संपूर्ण विश्व परिचित है। अपनी विस्तारवादी नीति के तहत दक्षिण चीन सागर पर वह अपने एकाधिकार का दावा करता है लेकिन दक्षिण चीन सागर किसी एक देश की धरोहर न होकर एक प्रमुख वैश्विक व्यापारिक मार्ग है। साथ ही दक्षिण चीन सागर के तटवर्ती देश इस पर प्राकृतिक तेल, गैस, ऊर्जा, मत्स्य सुरक्षा इत्यादि हेतु निर्भर हैं। ऐसे में चीन द्वारा विवादित द्वीपों पर कब्जा और कृत्रिम द्वीपों के निर्माण के माध्यम से अपने क्षेत्र में वृद्धि करने की नीति और कृत्रिम द्वीपों पर नौसैनिक अड्डा बनाए जाने के कारण दक्षिण चीन सागर के तटीय देश (वियतनाम, फिलीपींस, ब्रूनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि) चीन से नाराज़ हैं। इसलिए ये तटवर्ती देश चीन से दूरी बना रहे हैं और भारत के साथ निकट सानिध्य महसूस करते हैं। ऐसे में चीन की विस्तारवादी मानसिकता के कारण तटवर्ती देश चीन के विरुद्ध लामबंद हो रहे हैं। इस प्रकार दक्षिण चीन सागर में चीनी वर्चस्व चीन को न केवल महाशक्तियों से अपितु उसके पड़ोसियों से भी दूर कर रहा है।

भारत, तिब्बत और भूटान की सीमा पर देखें तो चीन द्वारा भूटान के भूभाग को हड़पने के नियत के कारण सीमा पर तनाव जारी है। दरअसल तिब्बत की तरह भूटान को छोटा और कमजोर राष्ट्र समझकर चीन की मंशा उचित प्रतीत नहीं होती है। डोकलाम के संदर्भ में विवादास्पद नक्शे को जारी कर चीन ने उस भूभाग को अपना बताकर मंशा जाहिर कर दी है। चूंकि भूटान सरकार का भारत सरकार के साथ सुरक्षा समझौता है। ऐसे में भूटान की सुरक्षा का दायित्व भारत सरकार के पास है। इसलिए भूटान के अनुरोध पर भारतीय सैनिकों ने डोकलाम में चीन के सड़क निर्माण कार्य को रोक दिया। तब से भारत और चीन के मध्य तनाव जारी है और चीन ने तो भारत को युद्ध की धमकी तक दे डाली।

वर्तमान में जिस प्रकार चीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्यवहार कर रहा है उससे निश्चित ही काफी देश उसके विरोधी ही नज़र आएंगे क्योंकि चीन अपने स्वार्थी हितों की पूर्ति हेतु किसी भी देश की संप्रभुता को खतरे में डाल सकता है। उदाहरण के रूप में देखें तो चीन की कंपनियों ने श्रीलंका में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में भारी भरकम निवेश किया है और श्रीलंका को कर्ज देने वाली चीनी कंपनियों द्वारा काफी ऊँचे दर पर ब्याज वसूलने के कारण श्रीलंका की वित्तीय स्थिति को काफी नुकसान हो रहा है। श्रीलंका द्वारा ऋण वापस नहीं लौटाए जाने की स्थिति में चीनी कंपनियां मालिकाना हक मांग रही हैं। दरअसल चीन ने आधारभूत संरचना हेतु जिन परियोजनाओं में श्रीलंका में निवेश किया है वह चीन की महात्वाकांक्षी परियोजना "वन वेल्ट वन रोड" का हिस्सा है। ऐसे में स्पष्ट है कि चीन छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों में भारी भरकम निवेश कर उनकी अर्थव्यवस्था को कर्ज के जाल में फंसा रहा है ताकि 21वीं सदी में भी अपनी विस्तारवादी नीति को जारी रखे।

श्रीलंका ही नहीं बल्कि बांग्लादेश को भी चीन अपने कर्ज के जाल में फंसा रहा है और चीन का सदाबहार मित्र पाकिस्तान भी इससे अछूता नहीं है। कुछ अफ्रीकी देशों में भी चीन की यही प्रवृत्ति देखने को मिल रही है, इसलिए कई अफ्रीकी देश भी चीन की महात्वाकांक्षी परियोजना का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में चीन की छवि एक साम्राज्यवादी देश की तरह उभर रही है जो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में चीन के लिए घातक सिद्ध होगी और चीन अलग थलग पड़ जाएगा। दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि शांतिप्रिय राष्ट्र के रूप में विश्व के समक्ष है। पड़ोसियों (चीन, पाकिस्तान) द्वारा भारत की विकास यात्रा में रोड़े अटकाने के बावजूद भारत विश्व की तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित होने की दिशा में अग्रसर है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक रिसर्च पेपर के अनुसार भारत 2024 में अंतर्राष्ट्रीय शक्ति के तौर पर विश्व के समक्ष उपस्थित होगा, खासतौर से आर्थिक शक्ति के रूप में।

अनीता वर्मा

(लेखिका अंतर्राष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं।)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़