आखिर कब तक हमारे जवान नक्सलियों के हाथों होते रहेंगे शहीद?

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अप्रैल व मई माह में ऐसी दो घटनाएं घटी जिसमें 20 जवान शहीद हुए। लोकसभा चुनाव चल रहा है और छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में पखांजूर की सीमा से सटे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों ने जो पहली मई को जो आईईडी ब्लास्ट किया उससे हमारे 15 जवान शहीद हो गये।

आखिर हमारे जवान नक्सलियों और आतंकवादियों के हाथों कब तक शहीद होते रहेंगे? छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र में आये दिन नक्सली घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं जिसमें जवानों की मौत हो रही है। आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा? हमारी सरकार गश्त पर निकलने वाले जवानों की सुरक्षा को सुनिश्चित क्यों नहीं करती? आखिर ऐसी घटनाओं की जानकारी खुफिया एजेंसियों को पहले से क्यों नहीं हो पाती इसमें किसकी नाकामी है? नक्सलियों का नेटवर्क इतना मजबूत कैसे है कि उनका हर हमला कामयाब हो जाता है। क्यों सांप निकलने के बाद लकीर पीटना खुफिया एजेंसियों का तरीका बन गया है? 

अप्रैल व मई माह में ऐसी दो घटनाएं घटी जिसमें 20 जवान शहीद हुए। लोकसभा चुनाव चल रहा है और छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में पखांजूर की सीमा से सटे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों ने जो पहली मई को जो आईईडी ब्लास्ट किया उससे हमारे 15 जवान शहीद हो गये। इससे पहले भी अप्रैल में छत्तीसगढ़ के दंत्तेवाड़ा में आईईडी ब्लास्ट किया था जिसमें भाजपा विधायक सहित पाँच सुरक्षाकर्मी शहीद हो गये थे। इससे पहले भी लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के एक दिन पहले गढ़चिरौली में सीआरपीएफ की पेट्रोलिंग टीम पर नक्सलियों ने हमला किया था, जिसमें पेट्रोलिंग टीम पर किये गये आईईडी ब्लास में कई जवान घायल हो गये थे। चार अप्रैल को छत्तीसगढ़ के कांकेर में नक्सलियों ने मुठभेड़ में बीएसएफ के चार जवानों को शहीद कर दिया था। ये हमला तब किया गया था जब बीएसएफ की टीम सर्च ऑपरेशन चला रही थी।

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रमन सिंह सरकार में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में माओवादियों के हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 25 जवान मारे गए थे। जो उस समय की सबसे बड़ी घटना थी। इसी हमले में माओवादी मारे गये जवानों के हथियार भी अपने साथ ले जाने में सफल हुए थे। इससे पहले भी महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में नक्सलवादियों ने सड़क बना रही कंपनी के 25 वाहन जला दिए थे। नक्सलियों ने निजी ठेकेदारों के कम से कम तीन दर्जन वाहनों में आग लगा दी थी। एक मई को 'महाराष्ट्र दिवस' मनाया जा रहा था जिस पर यह दु:खद घटना घट गयी। 

जिस पेट्रोलिंग गाड़ी पर हमला किया गया उसमे सी-60 कमांडो का दस्ता था और जवान भी इसी फोर्स के शहीद हुए हैं। पिछले साल सी-60 कमांडो के दस्ते ने गढ़चिरौली में बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था, जिसमें करीब 39 नक्सलियों को मार गिराया था। शायद इसी कारण सी-60 कमांडो को ही निशाना बनाया गया। कुछ समय पहले इनका ऑपरेशन चर्चा का विषय बना हुआ था।

गढ़चिरौली में हीं क्यों होते हैं हमले?

गढ़चिरौली में नक्सलवादी सबसे ज्यादा सक्रिय हैं इसे लाल गलियारे के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ कहा जाता है कि सरकार नहीं बल्कि नक्सलियों का राज चलता है। यहाँ पर बहुत ही घना जंगल है जिसके चलते यहाँ नक्सली सबसे ज्यादा सुरक्षित रहते हैं और इसी जगह को अपना मुख्य अड्डा बना रखा है। इसी इलाके में नक्सली अक्सर घात लगाकर हमला करते रहते हैं। इस समय देश के 10 राज्यों के 74 जिले नक्सल प्रभावित है उनमें सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के क्षेत्र ही प्रभावित हैं। यह जिला चंद्रपुर और गोंदिया से लगा है। यह जिला आदिवासी जिला है जिसमें गोंड और माडिया समुदाय के लोगों की अच्छी खासी संख्या है। इस जिले में बंगाली समुदाय के कुछ लोग भी हैं जो 1972 के बंगाल विभाजन के समय यहाँ आ बसे थे। छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमाओं में अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। जिसके कारण यहाँ केंद्र सरकार ने सी-60 कमांडो की स्पेशल टीम से सर्च ऑपरेशन चलवाती रही है। 

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नक्सली हिंसा और मुख्यधारा?

नक्सली अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आदिवासी समस्याओं और मुद्दों का सहारा लेते हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में माओवादी कैडरों ने इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि इसे सिर्फ सुरक्षा बलों के सहारे अभियान चलाकर पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है। साल 2014 से पहले नक्सली हिंसा की समस्या अधिक गंभीर तरीके से उभरी और देश की सुरक्षा के लिए अच्छी खासी मुश्किलें खड़ी करती रही है। हालांकि 2014 के बाद नक्सली हिंसा में थोड़ी कमी तो आई लेकिन दो दशकों से भी अधिक समय से यह बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। इस आंदोलन के शुरुआत एक विचारधारा के स्तर पर शुरू हुई थी, परन्तु इसका स्वरूप इतना विकराल हो जायेगा यह किसी को पता नहीं था। 

विकास से ही हो सकता है इनका खत्मा

आए दिन नक्सलियों के हाथों सुरक्षा बलों के जवान तो कभी निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारे जाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। पिछली सरकारों ने इस ओर कभी गंभीरता से देखा ही नहीं। जिसका परिणाम यह हुआ कि नक्सलवाद और पनपता गया और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका अच्छा खासा विस्तार हो गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यदि कोई चीज सबसे कारगर हो सकती है तो वह है विकास। इन इलाकों में अभियान चलाकर विकास कार्यक्रमों पर जोर देना समय की मांग है जिसके चलते ही इन नक्सलियों पर शिकंजा कसा जा सकता है। अगर जंगल तक सड़कें होंगी तो सैनिकों को सर्च ऑरेशन चलाने में कोई परेशानी नहीं होगी। उन तक सैनिकों का पहुँचना बहुत जरूरी हो गया है। तभी नक्सलियों पर नकेल डाली जा सकती है।

- रजनीश कुमार शुक्ल

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