अमेरिका में बढ़ते नस्लीय हमले मानवता के लिए शर्मनाक

कहीं ऐसा नहीं हो कि अतिवादी सोच के कारण धीरे धीरे अमेरिका आंतरिक संघर्ष में ही उलझ कर रह जाए। अतिवादी सोच को बढ़ावा देकर दुनिया का कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता यह अमेरिका को समझना होगा।

अमेरिका के कनसास शहर में एक अमेरिकी पूर्व नौसेनिक द्वारा गोलीबारी कर एक भारतीय की हत्या कर देना, दूसरे को गंभीर घायल कर देना और तीसरे इनको बचाने की कोशिश कर रहे अमेरिकी नागरिक को घायल कर देना अमेरिकियों में पनपती नस्लियता और दूसरे देश के अप्रवासियों के प्रति बढ़ती घृणा को उजागर करने के लिए काफी है। दुनिया के देशों में सबसे सभ्य होने का दावा करने वाले अमेरिका में जिस तरह से हेट क्राइम का ग्राफ बढ़ता जा रहा है वह शर्मनाक होने के साथ ही अमेरिकियों की सोच को भी साफ करने वाला है। यह सही है कि नए राष्ट्र्पति डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद से नस्लीय हिंसा में तेजी आई है और इसका कारण भी है कि ट्रंप ने चुनावों के दौरान आक्रामक अभियान चलाते हुए अमेरिका में रह रहे अप्रवासियों खासतौर से मुसलमानों के खिलाफ काफी जहर उगला है। यही कारण है कि ट्रंप के आने के केवल 9 दिनों में ही हेट क्राइम के 867 अपराध दर्ज किए गए हैं। यह अपने आप में गंभीर है। अमेरिका में इन दिनों सोशल मीडिया पर भी अतिवादी सोच वाले नस्लीय समूह सक्रिय होकर जहर उगल रहे हैं।

अमेरिका में अतिवादी गतिविधियां नई बात नहीं हैं। असल में आग में घी का काम डोनाल्ड ट्रंप के भाषणों और नीति ने किया है। एक मोटे अनुमान के अनुसार अमेरिका में यही कोई 1600 अतिवादी समूह घृणा फैलाने के काम में जुटे हुए हैं। इनमें से भी 900 समूह ऐसे है जो अतिसक्रिय हैं। अमेरिका में रह रहे अल्पसंख्यक खासतौर से इन समूहों के निशाने पर हैं। हालांकि अमेरिका के लिए नस्लीय भेदभाव कोई नई बात नही हैं। श्वेत−अश्वेत का लंबा संघर्ष का इतिहास है। आज भी अंदरखाने श्वेत नागरिक अश्वेतों को हेयता से देखते हैं और यही कारण है कि मौका मिलते ही कुछ क्षेत्रों में अश्वेत लूटपाट और आतंक फैलाने में नहीं चूकते। अमेरिका में भारतीयों पर हमले भी कोई नई बात नही है। इसी वर्ष 10 फरवरी को कैलिफोर्निया में भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियर की हत्या कर दी गई थी। इससे पहले जनवरी, 16 में वर्जीनिया में हर्षद पटेल की हत्या, जुलाई, 15 में नार्थ ब्रांसविक में रोहित पटेल पर हमला कर गंभीर घायल करने, मई, 15 में साउथ केरोलिना में मृदुला पटेल की उनकी ही दुकान में गोली मार कर हत्या ऐसे उदाहरण हैं जो अमेरिकियों में बढ़ती घृणा और असुरक्षा की भावना को दर्शाते हैं। अमेरिका में अतिवादी संगठन खासतौर से अराकंसास, मिसीसिपी, मोंटाना आदि क्षेत्रों में अधिक सक्रिय हैं।

दरअसल अमेरिका की सारी दादागिरी विदेशियों के कारण ही चल रही है। अमेरिका की आर्थिक उन्नती का श्रेय विदेशियों को ही जाता है। विदेशी नागरिक अमेरिका में जाकर पूरे मनोयोग से काम करते हुए अमेरिका को दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनाने में योगदान कर रहे हैं। यह भी सही है कि अमेरिका में स्थानीय निवासियों में बेरोजगारी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। इसके अलावा सारा कौशल विदेशियों के हाथ होने से वहां के युवाओं में कुंठा व्याप रही है। आईटी क्षेत्र में तो भारत का वर्चस्व है। अमेरिका में जहां 1990 में 2 करोड़ 33 लाख भारतीय थे वहीं 2015 में 4 करोड़ 66 लाख भारतीय रह रहे हैं। अमेरिका में जाने वाले अप्रवासियों में 50 प्रतिशत अप्रवासी केवल दस देशों के हैं इनमें भी 20 प्रतिशत अकेले भारतीय हैं। आज की अमेरिकी पीढ़ी में अप्रवासियों के प्रति घृणा फैलती जा रही है। उनका मानना है कि रोजगार, उद्योग धंधों, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में अप्रवासियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में वाशिंगटन डीसी में तो फेयर यानी कि फैडरेशन फॉर अमेरिकन इमिग्रेशन रिफार्म संस्था का गठन कर योजनाबद्ध तरीके से अप्रवासियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है।

सोशल मीडिया का किस तरह से अप्रवासियों के खिलाफ उपयोग किया जा रहा है उसको इसी से समझा जा सकता है कि 25807 टि्वट मुसलमानों पर, 13292 टि्वट अप्रवासियों पर और 10242 टि्वट समलैंगिकों को लेकर किए गए हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ हेड एण्ड एक्ट्रिज्म के निदेशक ब्रायन लेविन का मानना है कि श्वेतों की सर्वोच्चता से जुड़े संगठन अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं। यह ट्रंप के बयानों का खतरनाक परिणाम है। इन संगठनों द्वारा अप्रवासियों को बलात्कारी, हत्यारे, आतंकी गतिविधियों में लिप्त बताते हुए इनके खिलाफ वातावरण तैयार किया जा रहा है। अमेरिका के एनजीओ सेफ होम के अनुसार अमेरिका में सोशल मीडिया पर नस्लीय सोच वाले लोगों का प्रभाव तेजी से बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि अमेरिका में हर दिन यही कोई 200 मामले इस तरह के उजागर हो रहे हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप जिस तरह की नीति पर चल रहे हैं इसके परिणाम अमेरिका के लिए घातक हो सकते हैं। अप्रवासियों के प्रति जहर घोलकर कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता। दूसरा विदेशी कौशल पर निर्भरता कम करनी है तो पहले अपने युवाओं को इस काबिल बनाने के प्रयास करने होंगे। दूसरा जहां आज सारी दुनिया विश्वग्राम में बदल रही है और एक दूसरे के नजदीक आ रही है उस स्थिति में अमेरिका जैसे सभ्य देश में नस्लीय गतिविधियों का बढ़ना अपने आप में गंभीर है। कहीं ऐसा नहीं हो कि अतिवादी सोच के कारण धीरे धीरे अमेरिका आंतरिक संघर्ष में ही उलझ कर रह जाए। अतिवादी सोच को बढ़ावा देकर दुनिया का कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता यह अमेरिका को समझना होगा।

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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