साक्षात्कारः पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने बताये प्रदूषण से निजात के उपाय

Sunita Narain

सुनीता नारायण ने कहा है कि सवाल यह है कि प्रदूषण को लेकर सरकारें साल भर क्यों सोती रहती हैं? पॉल्यूशन का सॉल्यूशन चंद दिनों के बैन से निकलेगा? क्या पटाखा ही पॉल्यूशन का असली विलेन है? प्रदूषण फैलाने वाले अन्य यंत्रों पर बैन क्यों नहीं लगाती सरकारें?

धान की कटाई के वक्त पराली और दीवाली के समय पटाखों को पॉल्यूशन का कारण बताकर सारा का सारा ठीकरा फोड़ा जाता है। जबकि, प्रदूषण के कारण कुछ और ही हैं, जिनकी सच्चाई हुकूमतों को पता होती है। लेकिन जानबूझकर इग्नोर किया जाता है। इस वक्त भी पॉल्यूशन से लोग परेशान हैं, कोरोना और पॉल्यूशन के कॉकटेल ने लोगों की मुश्किलें बढ़ाई हुई हैं। दिल्ली सरकार ने पटाखों की ब्रिकी पर बैन किया है। सवाल उठता है कि क्या ये पाल्यूशन का सॉल्यूशन हो सकता है? इस विषय पर सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की अध्यक्षा सुनीता नारायण से रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश!

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प्रश्न- दशक भर पहले भी पराली जलाई जाती थी और दीपाली पर पटाखे भी फोड़े जाते थे। अचानक ऐसा क्या हुआ कि पॉल्यूशन का कारण इन्हें ही मान लिया?

उत्तर- ये हुकूमतों की बनाई मनगढ़ंत कहानियां मात्र हैं। राजधानी सहित कुछ अन्य राज्यों ने पटाखे जलाने पर रोक लगाई है। हालांकि कुछ हद तक सहूलियतें मिल सकती हैं, पर निवारण नहीं? अब सवाल यह है कि प्रदूषण को लेकर सरकारें साल भर क्यों सोती रहती हैं? पॉल्यूशन का सॉल्यूशन चंद दिनों के बैन से निकलेगा? क्या पटाखा ही पॉल्यूशन का असली विलेन है? प्रदूषण फैलाने वाले अन्य यंत्रों पर बैन क्यों नहीं लगाती सरकारें? क्या पॉल्यूशन के बहाने त्योहारों को टार्गेट किया जाता है। पॉल्यूशन पर सख्ती से पॉलिसी बनानी होगी। 

प्रश्न- पॉल्यूशन पर रोकथाम के लिए ईमानदारी से पहल करनी होगी। जैसे दो वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने बीएस-3 वाहनों की ब्रिकी पर रोक लगाई थी?

उत्तर- कड़ाई से फैसला लेना सरकारों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। गरीब की चिमनियां तोड़ना तो आसान होता है, पर कारख़ानों को बंद करना मुश्किल होता है। पर्यावरण संरक्षण व स्वच्छ आबोहवा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बीएस-3 यानी पुराने वाहनों की ब्रिकी पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाकर स्वस्थ समाज को बढ़ावा देने के मकसद से एक मानवीय फैसला लिया था। सरकारें भी ऐसा फैसला ले सकती थीं, पर उन्हें राजस्व व कमीशनखोरी पर पानी फिरने का डर था। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने पूरे देश में ज़हरीली हवा से निजात दिलाने के लिए एक समान नियम-फ़ायदों वाला विस्तृत एक्शन प्लान का ड्राफ्ट उच्च न्यायालय को हमने ही सौंपा था। जिस पर अदालत ने ऐतिहासिक फैसला दिया था।

प्रश्न- पॉल्यूशन की रोकथाम पर आखिर चूक होती कहां है?

उत्तर- देखिए, पॉल्यूशन पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि इस समस्या पर नियंत्रण पाना सरकारों की ज़िम्मेदारी है। सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि उनके राज्यों में स्मॉग कैसे कम हो। पॉल्यूशन के मामले में अपराधों की ग्रेडिंग की जरूरत है। इस मामले में 16 नवंबर को अगली सुनवाई होगी। पॉल्यूशन रोकने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश लाई है। अध्यादेश के तहत आयोग बनाने को मंजूरी दी गई है। इस आयोग में केंद्र और अन्य राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। आयोग में एक अध्यक्ष और 17 सदस्य होंगे। आयोग के निर्देश नहीं मानने पर कार्रवाई होगी। 1 करोड़ तक जुर्माना लगाया जा सकता है। 5 साल तक जेल की सजा भी संभव है।

प्रश्न- पर्यावरण मुद्दे पर आपकी लड़ाई लंबे समय से चल रही है? 

उत्तर- प्रदूषण को रोकने के लिए औरों को भी आगे आना चाहिए। सामूहिक चेतना की जरूरत है। सरकारों को पता है कि आसमान में विषैली गैसों का ज़ख़ीरा तैर रहा है। पेट्रोल-डीजल पदार्थों व ऑटो कंपनियों के चलते सड़कों पर बेतहाशा उत्सर्जन हो रहा है, पर नियंत्रण करने के लिए अपनी ओर से कोई प्रयास नहीं किए जाते। सरकारें नियमों का दुरुपयोग नहीं कर सकेंगी। क्योंकि समान नियम-फ़ायदों वाला विस्तृत एक्शन प्लान का ड्राफ्ट हमने पिछले माह छह मार्च 2017 को ही सुप्रीम कोर्ट में जमा करा दिया था। ड्राफ्ट में दिल्ली सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और ईपीसीए के एक्शन प्लान के प्रमुख प्वाइंट को शामिल किया गया है। इस प्लान की एक-एक प्रति दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकार को भी भेज दी गई है।

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प्रश्न- ऑटो ईंधन नीति लागू होने से भी प्रदूषण में सुधार नहीं हुआ? 

उत्तर- जब पहली बार 2003 में ऑटो ईंधन नीति संबंधी पहली सिफ़ारिशें आईं तो उसमें 2010 तक का रोड मैप शामिल था। पर किसी भी सरकार ने इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। ऑटो कंपनियों पर सरकारें त्वरित फैसला करने की बजाय उन पर मेहरबान बनीं रहीं। उस वक्त भी हमने सरकारों से आग्रह किया लेकिन किसी ने भी हमारी बातें नहीं मानीं। इसके बाद हमने दूषित पर्यावरण का हवाला देकर ऑटोमोबाइल कंपनियों से उत्सर्जन युक्त पदार्थों पर रोक की मांग की। उन्होंने भी अनसुना कर दिया। एक कंपनी ने तो हम पर मानहानि का मुकदमा तक कर दिया था। साल 2015 में आई ऑटो ईंधन नीति लागू होने से पहले ही दम तोड़ दिया। दरअसल सरकारें चाहती ही नहीं हैं कि पुराने कंडम वाहन सड़कों से हटें। लेकिन हमारा प्रयास होगा कि 2020 तक भारत बीएस-6 तक पहुंच जाए।

  

- डॉ. रमेश ठाकुर

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