जन्माष्टमी पर्व की अब भारत ही नहीं पूरी दुनिया में रहती है जबरदस्त धूम

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शुभा दुबे । Sep 1 2018 2:11PM

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के पर्व जन्माष्टमी की धूम सिर्फ भारत वर्ष के मंदिरों में ही नहीं बल्कि अब दुनिया भर में होने लगी है। एस्कॉन मंदिरों के माध्यम से जन्माष्टमी पर्व कई देशों में मनाया जाने लगा है।

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के पर्व जन्माष्टमी की धूम सिर्फ भारत वर्ष के मंदिरों में ही नहीं बल्कि अब दुनिया भर में होने लगी है। एस्कॉन मंदिरों के माध्यम से जन्माष्टमी पर्व कई देशों में मनाया जाने लगा है। भगवान श्रीकृष्ण के गीता में दिये ज्ञान के चलते आज पूरी दुनिया उनसे आध्यात्मिक रूप से जुड़ना चाहती है और विदेशों में एस्कॉन के मंदिर उन्हें यह सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। वैसे तो भारत वर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन इस्कॉन मंदिरों के माध्यम से अब इस पर्व की धूम पूरी दुनिया में होने लगी है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण मध्यरात्रि के समय पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। मान्यता है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी के व्रत को करता है, वह ऐश्वर्य और मुक्ति को प्राप्त करता है। व्रत को करने वाला इसी जन्म में सभी प्रकार के सुखों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। इसके अलावा जो मनुष्य भक्तिभाव से भगवान श्रीकृष्ण की कथा को सुनते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वे उत्तम गति को प्राप्त करते हैं।

मथुरा-वृंदावन की अलग दिखती है छटा

देश विदेश में बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाए जाने वाले इस पर्व की छटा मथुरा वृंदावन में विशेष रूप से देखने को मिलती है। इस पावन अवसर पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते हैं। इस दिन देश भर के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी घटनाओं की झांकियां सजाई जाती हैं। भविष्यपुराण में कहा गया है कि जहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। श्रीकृष्णजन्माष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। इस दिन जगह-जगह श्रीकृष्ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्‍मरण करने के लिए रास लीलाओं का आयोजन किया जाता है। इस त्‍यौहार को कृष्‍णाष्‍टमी अथवा गोकुलाष्‍टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं।

महाराष्ट्र में जन्माष्टमी पर होती है अलग तरह की धूम

इस पर्व के दिन उत्‍तर भारत में उत्‍सव के दौरान भजन गाए जाते हैं व नृत्‍य किया जाता है तो महाराष्‍ट्र में जन्‍माष्‍टमी के दौरान, श्रीकृष्‍ण के द्वारा बचपन में लटके हुए छींकों (मिट्टी की मटकियों), जो कि उसकी पहुंच से दूर होती थीं, से दही व मक्‍खन चुराने की कोशिशों करने का उल्‍लासपूर्ण अभिनय किया जाता है। इन वस्‍तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्‍तत: इसे फोड़ डालते हैं।

एस्कॉन मंदिरों में होते हैं विशेष इंतजाम

इस दिन देश भर के मंदिरों में विशेष रूप से झांकी सजाई जाती है जिसमें श्रीकृष्ण के जीवन के प्रसंगों को दर्शाया जाता है, यही नहीं स्कूलों और कालेजों में भी जन्माष्टमी के पहले रंगारंग कार्यक्रम आयोजित कर भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के बारे में बताया जाता है। एस्कॉन मंदिरों में तो इस दिन विशेष इंतजाम किये जाते हैं। मंदिरों में भक्तों के लिए प्रसाद की विशेष व्यवस्था की जाती है जिसके लिए काम लगभग दस दिन पहले ही शुरू हो जाते हैं।

इस बार मथुरा में हो रहे हैं खास इंतजाम

आगामी तीन सितंबर को जन्माष्टमी मनाने के लिए मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर में तैयारियां पूरे जोर-शोर से चल रही हैं। जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा के मुताबिक श्रद्धालुओं को भगवान कृष्ण का जन्म समारोह खास अंदाज में देखने का अवसर मिल सकेगा। इस बार मंदिर के भीतर और बाहर एलईडी स्क्रीन भी लगाई जाएंगी। मंदिर तीन सितंबर को रात 1:30 बजे तक खुला रहेगा।  

-शुभा दुबे

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