जंगल हमारे जीवन की अमूल्य निधि, इसको बचाना होगा

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं सिमटते जंगलों की वजह से भूमि बंजर और रेगिस्तान में तब्दील होती जा रही है जिससे दुनियाभर में खाद्य संकट का खतरा मंडराने लगा है।

विश्व वानिकी दिवस प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। यह दुनियाभर में लोगों को वनों की महत्ता तथा उनसे मिलने वाले अन्य लाभों की याद दिलाने के लिए पिछले 30 वर्षों से मनाया जा रहा है। विश्व वानिकी दिवस का उद्देश्य है कि विश्व के सभी देश अपनी वन−सम्पदा और वनों को संरक्षण प्रदान करें। भारत में वन−सम्पदा पर्याप्त रूप से है। भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 प्रतिशत) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान समय में भारत 19.39 प्रतिशत भूमि पर वनों का विस्तार है। गत नौ वर्षों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गये जबकि 25 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रत्येक साल घट रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा वन−सम्पदा है उसके बाद क्रमश मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में। भारत में राष्ट्रीय वन नीति के तहत देश के 33.3 प्रतिशत क्षेत्र पर वन होने चाहिए।

यूएनईपी के मुताबिक, दुनिया में 50−70 लाख हेक्टेयर भूमि प्रति वर्ष बंजर हो रही है वहीं भारत में ही कृषि−योग्य भूमि का 60 प्रतिशत भाग तथा आकर्षित भूमि का 75 प्रतिशत गुणात्मक ह्रास में परिवर्तित हो रहा है। भारत में पिछले नौ सालों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गए जबकि यहां पर कुल वन क्षेत्रफल 6,90,899 वर्ग किलोमीटर है। वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। वन−भूमि पर उद्योग−धंधों तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकड़ियों की बढ़ती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण हैं। जंगल हमारे जीवन की अमूल्य निधि हैं जो हमारे पर्यावरण के साथ−साथ आर्थिक, औद्योगिक और सामाजिक स्थिति को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों से मानव समुदाय को अनेक बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त होती हैं। जिनमें स्वच्छ जल, वन्य प्राणियों के रहने के लिए स्थान, लकड़ी, भोजन, फर्नीचर, कागज, सुन्दर परिदृश्य सहित अनेक पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल शामिल हैं। पेड़, कार्बन डाइ आक्साइड अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिसकी मानव जाति को सांस लेने के लिए जरूरत पड़ती है। एक पेड़ अपनी पूरी उम्र के दौरान प्रकृति और मनुष्य को कई फायदे देता है। पेड़ तापमान नियंत्रण में भी अहम भूमिका अदा करता है। इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा पौधा रोपण करना चाहिए।

वन और जीवन दोनों एक−दूसरे पर आश्रित हैं। वनों से हमें शुद्ध ऑक्सीजन मिलता है और मनुष्य और अन्य किसी भी प्राणी का जीवन ऑक्सीजन के बिना नहीं चल सकता। वृक्ष और वन भू−जल को भी संरक्षित करते हैं। जैव−विविधता की रक्षा भी वनों की रक्षा से ही संभव है। विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए बहुमूल्य वनौषधियां हमें जंगलों से ही मिलती हैं। दुनिया में जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास और आधुनिक जीवन शैली की वजह से प्राकृतिक वनों पर मानव समाज का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसे ध्यान में रखकर मानव जीवन की आवश्यकताओं के हिसाब से वनों के संतुलित दोहन तथा नये जंगल लगाने के लिए भी विशेष रूप से काम करने की जरूरत है। जंगलों को आग से बचाना भी जरूरी है। हरे−भरे पेड़−पौधे, विभिन्न प्रकार के जीव−जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, पठार, नदियां, समुद्र, महासागर, आदि सब प्रकृति की देन है, जो हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए आवश्यक है। वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार से लाभ पहुंचाते हैं। जिसमें वन हमें भोजन ही नहीं वरन् जिंदगी जीने के लिए हर जरूरी चीजें मुहैया कराती है। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं सिमटते जंगलों की वजह से भूमि बंजर और रेगिस्तान में तब्दील होती जा रही है जिससे दुनियाभर में खाद्य संकट का खतरा मंडराने लगा है। वन न केवल पृथ्वी पर मिट्टी की पकड़ बनाए रखता है बल्कि बाढ़ को भी रोकता और मृदा को उपजाऊ बनाए रखता है।

वर्तमान में दुनिया के 7 अरब लोगों को प्राणवायु (आक्सीजन) प्रदान करने वाले जंगल खुद अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विशेषज्ञों की राय है कि यदि जल्द ही इन्हें बचाने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं विकराल रूप ले लेंगी। एक व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए उसके आसपास 16 बड़े पेड़ों की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जमीन के एक तिहाई हिस्से पर वन होना चाहिए जबकि भारत में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के करीब 23 फीसदी हिस्से पर वन हैं, लेकिन हाल ही में आई एक गैर सरकारी संस्था की रिपोर्ट बताती है कि भारत के केवल 11 प्रतिशत हिस्से पर वन हैं। ऐसा है तो यह काफी गंभीर और चिंतनीय है।

सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि देश में 18 पेड़ काटे जाते हैं तो एक पेड़ लगाया जाता है। पर्यावरण संरक्षण भारतीय संस्कृति की सनातन परम्परा है। पौधों का रोपण और देखभाल एक सामुदायिक, आध्यात्मिक गतिविधि है। हर नागरिक का धर्म है कि वह वनों की रक्षा और वानिकी का विकास करे। विश्व वानिकी दिवस वन तथा प्रकृति के प्रति हमारे कर्त्तव्य का बोध कराता है। वन संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और संवर्धन से हम भावी पीढ़ी का जीवन सुरक्षित रख सकेंगे। हमें अगर जिन्दा रहना है तो प्रकृति से प्रेम करें और उसे बचाने के लिए हर संभव कोशिश करें। पेड़−पौधे रहेंगे तो हमारा वजूद रहेगा। उनके नष्ट होते ही मानव सभ्यता का भी पतन हो जायेगा। आज पृथ्वी पर लगभग 11 प्रतिशत वन संरक्षित हैं जो विश्व पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही कम है। स्वस्थ्य पर्यावरण हेतु पर पृथ्वी पर लगभग एक तिहाई वनों का होना अति आवश्यक है लेकिन मानवीय विकास की अन्धी होड़, जनसंख्या विस्फोट एवं औद्योगिक वृद्धि के कारण मानवीय आवश्यकताओं व गलत वन नीतियों के कारण वनों के क्षेत्रफल में लगातार कमी आ रही है जो एक विश्व स्तरीय समस्या बन चुकी है। पृथ्वी से मानव ने आज तक सब कुछ लिया ही है दिया कुछ भी नहीं है। यदि हम समय रहते नहीं सजग हुये तो पृथ्वी पर पर्यावरणीय संकट और भी गहरा हो सकता है। पेड़ संस्कृति के वाहक हैं, प्रकृति की सुरक्षा से ही संस्कृति की सुरक्षा हो सकती है। हमें बेकार पड़ी भूमि पर वृक्ष लगाने चाहिए। सड़क, रेलमार्ग और नदियों के किनारे वृक्ष लगाने चाहिए। शहरों और गाँवों में भी पर्याप्त मात्रा में पेड़−पौधे लगाने चाहिए। सरकार को भी वनों की अवैध कटाई पर रोक लगानी चाहिए। वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।

- बाल मुकुन्द ओझा

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