India-Singapore ने मिलकर बड़ा खेल कर दिया, Strait of Malacca में अब दुश्मनों पर नजर रखेगा भारत, Modi-Lawrence Wong के बीच वार्ता के बाद हुए कई रक्षा-सुरक्षा करार

हम आपको बता दें कि समझौते में यह सुनिश्चित किया गया है कि दोनों देशों के रक्षा मंत्री और वरिष्ठ रक्षा अधिकारी नियमित संवाद बनाए रखें। यह Defence Ministers’ Dialogue और Defence Policy Dialogue जैसे तंत्रों के माध्यम से होगा।
भारत और सिंगापुर के बीच आज अपनाए गए Comprehensive Strategic Partnership (CSP) रोडमैप ने दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊँचाई दी है। यह समझौता केवल आर्थिक, डिजिटल या सांस्कृतिक सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में गहराती साझेदारी है। एशिया-प्रशांत और हिंद-प्रशांत क्षेत्रों में बदलती भू-राजनीति के बीच यह साझेदारी भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
हम आपको बता दें कि समझौते में यह सुनिश्चित किया गया है कि दोनों देशों के रक्षा मंत्री और वरिष्ठ रक्षा अधिकारी नियमित संवाद बनाए रखें। यह Defence Ministers’ Dialogue और Defence Policy Dialogue जैसे तंत्रों के माध्यम से होगा। इससे न केवल रणनीतिक विश्वास बढ़ेगा बल्कि नीति स्तर पर रक्षा सहयोग की निरंतरता बनी रहेगी। इसके अलावा, भारतीय थलसेना, नौसेना और वायु सेना लंबे समय से सिंगापुर की सेनाओं के साथ द्विपक्षीय अभ्यास करती रही हैं। अब इन्हें और अधिक विविध और जटिल प्रारूपों में विस्तारित करने की बात की गई है। खास बात यह है कि नौसेना अभ्यास हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। वहीं वायुसेना सहयोग से Air Defence और Advanced Combat Training में नई क्षमताएँ जुड़ेंगी। इसके अलावा, थल सेना के अभ्यास आतंकवाद-रोधी अभियानों और शहरी युद्धक परिदृश्यों के संदर्भ में अहम होंगे।
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इसके अलावा, रोडमैप में रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग को उभरते क्षेत्रों तक ले जाने की प्रतिबद्धता दिखाई देती है। जैसे अब क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के जरिये निगरानी, सूचना-साझाकरण और साइबर सुरक्षा को नई दिशा मिलेगी। साथ ही अनमैन्ड वेसल्स और ऑटोमेशन के जरिये नौसैनिक अभियानों और पनडुब्बी-रोधी युद्धक क्षमता में सुधार होगा। इससे भारत–सिंगापुर साझेदारी को next-generation defence cooperation के रूप में देखा जा सकता है।
हम आपको यह भी बता दें कि हिंद-प्रशांत में समुद्री मार्गों की सुरक्षा सबसे अहम चुनौती है। भारत और सिंगापुर ने Maritime Domain Awareness (MDA) सहयोग को मज़बूत करने और Information Fusion Centres को जोड़ने पर सहमति जताई है। पनडुब्बी बचाव (Submarine Rescue) सहयोग दोनों नौसेनाओं को जटिल परिस्थितियों से निपटने में सक्षम बनाएगा। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सिंगापुर ने भारत की Malacca Straits Patrol में रुचि को सराहा है। यह वैश्विक व्यापार के सबसे संवेदनशील मार्गों में से एक है और यहाँ भारत की उपस्थिति चीन की बढ़ती सक्रियता का संतुलन साध सकती है।
हम आपको बता दें कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से मलक्का जलडमरूमध्य (Strait of Malacca) सबसे संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों में गिना जाता है। यह लगभग 800 किलोमीटर लंबा, संकीर्ण समुद्री मार्ग है जो हिंद महासागर को दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर से जोड़ता है। दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का लगभग एक-तिहाई इसी रास्ते से गुजरता है। विशेष रूप से, भारत, चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों की ऊर्जा आपूर्ति और व्यापार इस मार्ग पर निर्भर है। भारत के लिए मलक्का के महत्त्व की बात करें तो आपको बता दें कि भारत की कच्चे तेल और गैस आयात का बड़ा हिस्सा इसी मार्ग से होकर आता है। इस मार्ग की सुरक्षा भारत की ऊर्जा सुरक्षा से सीधा जुड़ा हुआ है।
इसके अलावा, चीन की “मलक्का दुविधा” (Malacca Dilemma) प्रसिद्ध है, क्योंकि उसकी तेल आपूर्ति का अधिकांश भाग इसी रास्ते से होकर जाता है। भारत, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से इस मार्ग की निगरानी कर सकता है, जिससे सामरिक बढ़त उसे मिलती है। मलक्का पर भारत की सक्रिय उपस्थिति उसकी Net Security Provider की छवि को और मज़बूत करती है। इस क्षेत्र में समुद्री आतंकवाद, डकैती और अवैध तस्करी जैसी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं, जिनका समाधान सहयोगात्मक प्रयासों से ही संभव है। देखा जाये तो मलक्का पर भारत–सिंगापुर सहयोग भारत को तीन स्तरों पर लाभ देता है— भारत अपने आर्थिक हितों को सुनिश्चित कर सकता है। चीन की समुद्री सक्रियता का सामरिक जवाब देने का अवसर मिलता है। साथ ही भारत ASEAN देशों के साथ मिलकर rules-based maritime order को मज़बूत कर सकता है।
देखा जाये तो मलक्का जलडमरूमध्य केवल एक समुद्री मार्ग नहीं, बल्कि हिंद-प्रशांत की भू-राजनीतिक धुरी है। भारत–सिंगापुर समझौते ने इस तथ्य को मान्यता देते हुए भारत की इस क्षेत्र में भूमिका को और सुदृढ़ करने का मार्ग प्रशस्त किया है। यह न केवल दोनों देशों के रक्षा सहयोग को गहराएगा बल्कि पूरे क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षित व्यापारिक प्रवाह को सुनिश्चित करेगा।
हम आपको यह भी बता दें कि दोनों देशों ने आतंकवाद और खासतौर पर cross-border terrorism के खिलाफ zero tolerance नीति को दोहराया है। UNSC 1267 के तहत प्रतिबंधित संगठनों और आतंक वित्तपोषण के विरुद्ध सहयोग को गहरा करने की बात की गई है। Mutual Legal Assistance Treaty के तहत आपराधिक मामलों और आतंकवादी गतिविधियों में सहयोग दोनों देशों के आंतरिक सुरक्षा ढांचे को मजबूती देगा। देखा जाये तो यह साझेदारी केवल द्विपक्षीय नहीं है। भारत और सिंगापुर दोनों ASEAN Outlook on the Indo-Pacific (AOIP) और Indo-Pacific Oceans Initiative (IPOI) में सक्रिय साझेदार हैं। इसके माध्यम से दोनों देश एक rules-based order को मज़बूत करते हैं और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देते हैं। यह सहयोग Quad और अन्य बहुपक्षीय तंत्रों के साथ भी परोक्ष रूप से तालमेल बिठाता है।
देखा जाये तो सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेन्स वॉन्ग की भारत यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक कही जा सकती है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभालने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा है और ऐसे समय में हुई है जब दोनों देश अपनी कूटनीतिक यात्रा के 60 वर्ष पूरे कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत और सिंगापुर का रिश्ता अब केवल पारंपरिक साझेदारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक “Comprehensive Strategic Partnership” के रूप में विकसित हो चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी ने रेखांकित किया कि सिंगापुर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत में विदेशी निवेश का प्रमुख स्रोत भी। गुजरात की GIFT सिटी से लेकर भारत के कई राज्यों (ओडिशा, तेलंगाना, असम, आंध्र प्रदेश) तक, सिंगापुर की मौजूदगी बढ़ रही है। यह दर्शाता है कि अब यह रिश्ता केंद्र सरकार से आगे बढ़कर संघीय ढांचे और राज्यों तक फैल चुका है, जिससे साझेदारी और गहरी हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि सहयोग अब केवल पारंपरिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहेगा। एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग, ग्रीन शिपिंग, स्किलिंग, सिविल न्यूक्लियर और अर्बन वॉटर मैनेजमेंट जैसे क्षेत्र साझेदारी के नए केंद्र होंगे। इसके अलावा, UPI–PayNow लिंक की सफलता और इसमें 13 नए भारतीय बैंकों का जुड़ना डिजिटल कनेक्टिविटी का नया आयाम है। साथ ही सेमीकंडक्टर क्षेत्र में ‘Semicon India’ में सिंगापुर की भागीदारी भारत की टेक्नोलॉजी महत्वाकांक्षाओं को और मजबूती देती है। वहीं, स्पेस सेक्टर सहयोग और इंडिया–सिंगापुर हैकाथॉन युवाओं और नवाचार को सीधे जोड़ते हैं।
हम आपको बता दें कि सिंगापुर ने पहलगाम आतंकी हमले पर भारत के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई का समर्थन किया है। यह संकेत है कि दोनों देश केवल आर्थिक और तकनीकी साझेदार ही नहीं, बल्कि सुरक्षा और मानवीय मूल्यों के साझेदार भी हैं। देखा जाये तो वर्तमान समय में जब दुनिया अमेरिका–चीन प्रतिस्पर्धा, रूस–यूक्रेन युद्ध और इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में अस्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है, भारत–सिंगापुर संबंध एक संतुलित और स्थिर दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। सिंगापुर, भारत की Act East Policy का केंद्रीय स्तंभ है और ASEAN के साथ भारत का सेतु भी। साथ ही ग्रीन व डिजिटल शिपिंग कॉरिडोर और समुद्री सहयोग न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि इंडो–पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण हैं।
हम आपको यह भी बता दें कि सिंगापुर के प्रधानमंत्री ने अपनी भारत यात्रा के दौरान एक अंग्रेजी समाचार-पत्र में लेख के माध्यम से अपने देश की भारत के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है। उन्होंने भारत पर पूर्ण विश्वास जताते हुए लिखा है कि भारत में स्थिरता और निरंतर प्रगति का सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड है, जिसके चलते सिंगापुर लगातार भारत में निवेश करता आ रहा है। उन्होंने लिखा है कि इस विश्वास ने दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को न केवल मज़बूत किया है, बल्कि एशिया की भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं।
हम आपको बता दें कि सिंगापुर भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत है। कुल विदेशी निवेश में लगभग 27% का योगदान सिंगापुर से आता है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री वोंग के अनुसार, यह भारत की युवा जनसंख्या, उभरते मध्यम वर्ग, गतिशील टेक सेक्टर और सुधारवादी नीतियों का परिणाम है। सिंगापुर की कंपनियां विशेषकर वित्तीय सेवाओं, लॉजिस्टिक्स, और निर्माण क्षेत्र में भारत की संभावनाओं को लेकर उत्साहित हैं।
सिंगापुर के प्रधानमंत्री का कहना है कि भारत में निवेश करना सिर्फ़ निजी क्षेत्र की पहल नहीं है, बल्कि सरकार द्वारा अनुकूल माहौल बनाने का परिणाम भी है। भारत में निवेश के लिए अवसर केवल शहरीकरण और औद्योगिक विकास में ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और नवाचार में भी मौजूद हैं।
देखा जाये तो भारत और सिंगापुर का संबंध अब पारंपरिक व्यापारिक साझेदारी से आगे बढ़कर एक रणनीतिक और बहुआयामी गठजोड़ का रूप ले रहा है। जहाँ भारत अपनी विशाल जनसंख्या और डिजिटल शक्ति के बल पर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अहम भूमिका निभा सकता है, वहीं सिंगापुर अपने पूँजी, प्रौद्योगिकी और वैश्विक संपर्क के जरिए इस प्रक्रिया को गति दे सकता है। भविष्य में यह संबंध एशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता और समृद्धि के लिए एक निर्णायक स्तंभ सिद्ध हो सकता है।
इस मुलाकात से वैश्विक समुदाय को यह संदेश गया है कि भारत और सिंगापुर जैसे मध्यम आकार की अर्थव्यवस्थाएं भी मिलकर स्थिरता, नवाचार और साझा समृद्धि का मॉडल प्रस्तुत कर सकती हैं। यह संबंध यह दर्शाता है कि एशिया की स्थिरता केवल बड़ी शक्तियों पर निर्भर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय साझेदारियों की मजबूती पर भी आधारित है।
बहरहाल, भारत–सिंगापुर व्यापक रणनीतिक साझेदारी का यह रोडमैप रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में एक game changer साबित हो सकता है। जहाँ एक ओर यह भारत को हिंद-प्रशांत में अपनी सामरिक स्थिति सुदृढ़ करने का अवसर देता है, वहीं सिंगापुर को भारतीय सैन्य क्षमता और भौगोलिक पहुँच का लाभ मिलता है। समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी सहयोग और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में साझा प्रयास दोनों देशों को न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने बल्कि पूरे क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम रखने में सक्षम बनाएंगे।
-नीरज कुमार दुबे
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