विदेशों से जो मदद आ रही है उसके वितरण में पारदर्शिता बेहद जरूरी है

oxygen shortage
अशोक मधुप । May 17 2021 11:59AM

इसके साथ ही जिस चीज की आज सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है आयी हुई सामग्री के वितरण की पारदर्शी व्यवस्था हो। इसके लिए जरूरत है कि केंद्र पूर्ण अधिकार संपन्न एक कमेटी बनाए। इसी के द्वारा राज्य की मांग पर वितरण की व्यवस्था की जाए।

कोरोना महामारी से बुरी तरह जूझ रहे भारत के लिए दुनिया ने अपने मदद के द्वार खोल दिए हैं। जगह−जगह से मदद आ रही है। कोई ऑक्सीजन के संयंत्र भेज रहा है। कोई वैक्सीन उपलब्ध करा रहा है। कहीं से दवा आ रही है तो कहीं से अन्य उपकरण। जरूरत के हिसाब की सामग्री से भरे विमान भारत की भूमि पर लगातार उतर रहे हैं। आज जरूरत है कि यह मदद जरूरतमंद तक जल्द से जल्द पहुंचे। स्टोर में ही खराब न हो जाए। जो मिल रहा है, उसका पूरा सदुपयोग हो। ज्यादा से ज्यादा नागरिकों की जान बचाई जा सके।

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इसके साथ ही जिस चीज की आज सबसे ज्यादा जरूरत है, वह है आयी हुई सामग्री के वितरण की पारदर्शी व्यवस्था हो। इसके लिए जरूरत है कि केंद्र पूर्ण अधिकार संपन्न एक कमेटी बनाए। इसी के द्वारा राज्य की मांग पर वितरण की व्यवस्था की जाए। सरकारी व्यवस्था के बूते पर इस सहायता को नहीं छोड़ा जा सकता। नहीं तो ये सामग्री स्टोर में ही पड़ी रह जाएगी। बीमार दम तोड़ते रहेंगे। वितरण की व्यवस्था इस तरह हो कि सबको स्थिति साफ पता चल सके। हमारा सुझाव है कि केंद्र इसके लिए एक वेबसाइट बनाए। उस पर यह सब दर्ज हो कि कितनी सामग्री कहां से आयी, कहां गई। राज्य सरकारों को निर्देश हो कि मिली सामग्री के वितरण से इसे अपडेट करें। इसका पूरा प्रचार हो। जनता को भी इसकी जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए।

आज कुछ देश विरोधी शक्तियां सक्रिय हैं। वे देश की छवि खराब करना चाहती हैं। हमारी कोशिश हो कि वह अपने लक्ष्य में कामयाब न हो सकें। देश की छवि खराब न कर सकें। देश को बदनाम न कर सकें। अभी रूस से स्पूतनिक वैक्सीन और दवाइयों की खेप हैदराबाद पहुँची। दूसरे दिन ही सोशल मीडिया पर संदेश घूमने लगा। रूस से आयी सहायता सामग्री एयरपोर्ट पर आकर पड़ गयी। उसे वितरण करने की कोई व्यवस्था नही हैं। केंद्र सरकार फेल हो गयी है।

विदेशी सहायता है तो दुनिया को जानने का हक है कि सहायता सामग्री का वितरण कैसे हुआ। जरूरतमंद तक वह पहुँची या नहीं। जिस देश से सामग्री आयी, सामग्री मिलने के आभार के साथ वितरण का विवरण भी उस देश को भेजा जाए, तो अच्छा रहेगा।

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एक बात और पिछले साल जब मार्च में लॉकडाउन लगा, तब देश में कोरोना से निपटने की कोई तैयारी नहीं थी। देश के वैज्ञानिक−उद्योगपति आगे आए। मास्क, पीपीई किट और सैनेटाइजर बनने लगे। वेंटीलेटर कई देशों ने हमें दान किए तो ये देश में भी बने। आज हालत यह है कि वेंटीलेटर अस्पतालों में डिब्बों में बंद पड़े हैं। बिजनौर जैसे छोटे जनपद में ही दो दर्जन वेंटीलेटर डिब्बों में बंद पड़े हैं। ये ही हालत कमोवेश हर जगह है। उपकरण हैं लेकिन चलाने वाले नहीं। डॉक्टर नहीं हैं। नर्स नहीं हैं। अन्य स्टाफ का टोटा है।

इसी समस्या को देख हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि डेढ़ लाख एमबीबीएस कर चुके चिकित्सा प्रशिक्षुकों की सेवा लेने पर विचार किया जाए। ये नीट के अभाव में घरों पर बैठे हैं। ये ही हालत ढाई  लाख नर्सों की भी है। यदि हमने इनको इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार किया होता, तो आज वेंटीलेटर डिब्बों में न बंद पड़े होते। ये डिब्बों में बंद वेंटीलेटर बहुत बीमारों की जान बचा सकते थे। अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा। अभी भी समय है। लड़ाई बहुत लंबी है। बहुत देशवासियों की जान बचाने का कार्य बकाया है।

हमने पिछले एक साल में चिकित्सा के उपकरण, दवा, वैक्सीन बनाने पर बहुत काम किया। मास्क, पीपीई किट, सेनैटाइजर खूब बनाए, किंतु स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार पर ध्यान नहीं दिया। इसी का परिणाम है कि हमारे पास चिकित्सक और चिकित्सा स्टाफ का आज भी बड़ा संकट है।

-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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