मरीजों के टॉर्चर का सेंटर बनते जा रहे हैं बेलगाम नशा मुक्ति केंद्र

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इस गोरखधंधे की एक और काली सच्चाई है। सेंटरों में शराब छुड़ाने वाले मुकम्मल विशेषज्ञ नहीं होते, वहां तकरीबन नौसिखियों की भरमार होती है। जबकि, बाहर लगे बोर्ड पर न्यूरो, मानसिक, ड्रग्स आदि के स्पेशलिस्ट चिकित्सकों व विशेषज्ञों के होने का दावा किया जाता है।

मध्य प्रदेश के रीवा में संचालित ‘संकल्प नशा मुक्ति’ नाम के एक सेंटर के भीतर से दिल दहला देनी वाली घटना ने तकरीबन सभी बेलागम नशा मुक्ति केंद्रों की असल हकीकत को एक्सपोज किया है। वहां भर्ती नशे के आदी युवक के साथ केंद्र के कर्मचारियों ने जीवित मानवता की सभी हदों को पार कर दिया। घटना न सिर्फ सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि रोंगटे भी खड़े करती है। कर्मचारियों ने युवक के निजी पार्ट में गैस चूल्हा जलाने वाला लाइटर डाल दिया, जिससे युवक की आंत फट गई, हालत इतनी बिगड़ी कि अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। ईलाज के एकाध दिन बाद जब उसने घटना की जानकारी अपने परिजनों को बताई, तो सभी के होश उड़ गए। देशभर में कुकुरमुत्तों की भांति फैले नशा मुक्ति केंद्रों के भीतर नशेड़ियों के साथ कैसी-कैसी बर्बरताएं की जाती हैं, रीवा की ये ताजा घटना बानगी मात्र है। इससे भी कहीं ज्यादा यातनाएं सेंटरों में मरीजों की दी जाती हैं। महिलाओं के साथ कैसा सलूक होता है, उसकी कल्पना तक नहीं कर सकते।

नशा मुक्ति केंद्र केंद्रीय व राज्य सरकारों के समाज कल्याण विभाग द्वारा तय नियमों से संचालित किए जाते हैं। पर, तल्ख हकीकत ये है कि नशा मुक्ति केंद्रों में सरकारी नियमों को खूंटियों पर टांग दिया जाता है। सेंटर वाले न तो समाज कल्याण विभाग की कोई गाइडलाइन फॉलो करते हैं और न ही सरकार की ओर से कोई निगरानी करने जाता है। शिकायतों पर थोड़ी बहुत खलबली मचती है, वरना कुछ नहीं? जबकि, कागजों में देखरेख की व्यवस्थाएं बहुतेरी हैं कोई कमी नहीं? ऐसा लगता है कि जैसे सरकारी महकमे के लोग भी नशे के आदी मरीजों को उनकी किस्मत पर ही छोड़ देते हैं। नशा मुक्ति केंद्र ज्यादातर एनजीओ की आड़ लेकर संचालित होते हैं जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना होता है। हिंदुस्तान में आज नशा जिस तेजी से फैला है, उसका फायदा नशा मुक्ति केंद्र वाले ही उठा रहे हैं। कोई एक राज्य नहीं, बल्कि समूचे देश में ‘नशा मुक्ति’ के नाम पर संगठित धन वसूली का धंधा जोरों पर है। लोगों के लिए ये एक ऐसा व्यवसाय क्षेत्र बन गया है जिसमें आमदनी मनचाही है।

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क्या शहर, क्या गांव, देहात, कस्बे आदि जगहों पर नशा मुक्ति केंद्र खुले पड़े हैं। पंजाब के किसी भी शहर या गांव में जाइए, वहां शिक्षा सेंटरों से ज्यादा आपको नशा मुक्ति सेंटर दिखाई देंगे? पंजाब को ऐसे ही थोड़ी ‘उड़ता पंजाब’ कहा जाता है। वहां अभी हाल में एक बड़ा सफेदपोश नेता नशा तश्करी के आरोप में अंदर गया है। ये धंधा ज्यादातर समाजसेवा को बहाना बनाकर खोला जाता हैं? पर असल में ये केंद्र ‘नशा मुक्ति-पुनर्वास’ की जगह ‘यातना केंद्र’ में ज्यादा तब्दील हो गए हैं। केंद्रों में नशेड़ियों के साथ कर्मचारी थर्ड डिग्री टॉर्चर, बिजली का शॉक्ड, भूखे रखना और बेहताशा काम करवाते हैं? सेंटर वाले प्रत्येक नशे के मरीज से नशा छुड़ाने का झूठा वादा करते हैं। इसके बदले वो उनके परिजनों से प्रति माह मोटी फीस वसूलते हैं। परिजन इस उम्मीद में अपनों को छोड़ जाते हैं कि उनके बंदे की लत छूट जाएगी?

गौरतलब है कि इस गोरखधंधे की एक और काली सच्चाई है। सेंटरों में शराब छुड़ाने वाले मुकम्मल विशेषज्ञ नहीं होते, वहां तकरीबन नौसिखियों की भरमार होती है। जबकि, बाहर लगे बोर्ड पर न्यूरो, मानसिक, ड्रग्स आदि के स्पेशलिस्ट चिकित्सकों व विशेषज्ञों के होने का दावा किया जाता है। वहां, अप्रशिक्षित, अनट्रेंड, अनैतिक व्यवहार करने वाले ही ज्यादातर होते हैं। कई केंद्रों पर तो ये खुद रात के अंधेरे में शराब की बोतलों में घुसकर गोता लगाते हैं, पकड़े भी गए हैं। पंजाब के मानसा जिले में अभी कुछ दिन पहले ही स्थानीय एसडीएम ने एक शिकायते पर देर रात एक नशा मुक्ति केंद्र का औचक निरीक्षक किया, जहां सेंटर का संचालककर्ता खुद नशे में धुत्त मिला। एक वक्त था जब नशा मुक्ति केंद्र के संबंध में सुनने में ऐसा हुआ करता था कि इन केंद्रों में पहुंचने वाले प्रत्येक नशे के आदी नशे से मुक्ति पा जाते होंगे। पर, सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत होती है।

ज्यादातर केंद्रों में नशे के शौकीनों को जेल से भी बदतर खाना परोसा जाता है। जब उन्हें भूख लगती है, खाना मांगते हैं, तो सेंटर वाले मानसिक प्रताड़ना, मारपीट, गालियां देने के अलावा मुंह पर थूकना और सरेआम उनके शरीर पर पेशाब भी कर देते हैं। ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ के रायपुर से सामने आई है। जहां, पीड़िता की पत्नी ने ऐसे ही आरोप लगाकर केंद्र के संचालक पर मुकदमा दर्ज करवाया है। नशे के आदीयों के साथ केंद्र कर्मी जानवरों से भी बुरा दुर्व्यवहार करते हैं। जबकि, कई केंद्र आज भी ऐसे हैं जहां बकायदा काउंसलिंग करके उपचार किया जाता है। दशक भर पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण के निष्कर्षों और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के इनपुट के आधार पर करीब 372 संवेदनशील विभिन्न राज्यों के जिलों जिसमें विशेषकर पंजाब में ‘नशा मुक्त भारत अभियान’ का शुभारंभ किया था। लेकिन परिणाम वैसे नहीं आए, जिसकी उम्मीदें थीं। परांपगत केंद्रों पर आज भी चिकित्सक परामर्श देकर रोजाना योगा करवाते हैं। जिम, खेलकूद, भजन-कीर्तन, सत्संग आदि क्रियाकलापों में व्यस्त रखते हैं। समय-समय पर चिकित्सीय जांच होती है। नशेड़ियों को शराब देकर आजमाया भी जाता है कि उनमें पीने की ललक है या नहीं? ऐसा उन नशा मुक्ति केंद्रों में इसलिए नहीं किया जाता क्योंकि वहां के लोग प्रशिक्षित नहीं होते।

सभी सेंटर एक ही रास्ते पर चलते हैं, आपस में मिलीभगत होती हैं। अमूमन 3 या 5 महीने का कोर्स निर्धारित करते हैं। डॉक्टर खुद ही बने होते हैं। परिजनों के सामने मरीजों की नाड़ी पकड़ते हैं, देशी तरीके से ईसीजी जांच का नाटक करते हैं। मुंह खुलवाकर तेजी से बुलवाते हैं। दरअसल ऐसा वो इसलिए करते हैं ताकि पीड़ित के परिजन संतुष्ट हो सकें कि उनका बंदा किसी निपुण चिकित्सक के हवाले है। सेंटर वाले शुरुआत में एक स्टॉम्प पेपर पर पीड़ित के परिजनों से लिखवाते हैं कि कुछ भी होने पर वो जिम्मेदार नहीं होंगे? नशा केंद्रों में होती मौतें और बढ़ती दर्दनाक घटनाओं के बाद लोग अब सेंटरों से डरने लगे हैं। जून की ही घटना है, गाजियाबाद में संचालित सेंटर में प्रताड़ना के बाद हुई एक मरीज की मौत के बाद वहां के 52 मरीज खिड़की तोड़कर भाग गए। प्रताड़ना से जब वहां मौतें हो जाती हैं, तो सेंटर वाले घटना को संदिग्ध परिस्थितियां बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। नशा मुक्ति केंद्रों के भीतर घटती घटनाओं को ध्यान में रखकर केंद्र व राज्य सरकारों को सख्त से सख्त नियम बनाने चाहिए और समय-समय पर निगरानी हो, गाइडलाइन बने, एनजीओ से अलग सभी नशा केंद्र कानूनी रूप से पंजीकृत के प्रावधान में लाए जाएं?

-डॉ0 रमेश ठाकुर

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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