Vishwakhabram: कौन हैं Pakistan General Election लड़ रहीं पहली Hindu Women Saveera Parkash? क्या पाकिस्तान में हिंदुओं के अच्छे दिन आने वाले हैं?

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25 वर्षीय डॉक्टर सवीरा प्रकाश का मानना है कि चुनावों में उनका धर्म कोई कारक नहीं होगा। उनकी पार्टी उनके विचार से सहमत दिखती है इसलिए उसने उन्हें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीट के बजाय एक सामान्य सीट से मैदान में उतारा है।

पाकिस्तान में फरवरी में होने वाले आम चुनावों के लिए विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपना नामांकन-पत्र दाखिल करना शुरू कर दिया है। इन उम्मीदवारों में एक हिंदू महिला और पेशे से चिकित्सक डॉ. सवीरा प्रकाश भी शामिल हैं जो पहली बार पाकिस्तान में आम चुनाव लड़ रही हैं। खैबर पख्तूनख्वा के बुनेर जिले की निवासी सवीरा प्रकाश मेडिकल ग्रेजुएट हैं और बिलावल भुट्टो जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के टिकट पर पीके-25 जनरल सीट से चुनाव लड़ रही हैं। डॉ. सवीरा प्रकाश पीपीपी की महिला विंग की महासचिव भी हैं। उनके पिता डॉ. ओम प्रकाश भी तीन दशकों से अधिक समय से पीपीपी के सदस्य रहे हैं। दोनों पिता और बेटी मिलकर बुनेर में एक क्लिनिक चलाते हैं। उनकी मां डॉ. येलेन प्रकाश रूसी मूल की हैं। सवीरा प्रकाश ने 2022 में एक निजी कॉलेज, एबटाबाद इंटरनेशनल मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री पूरी की थी। वह कहती हैं कि उनकी मेडिकल पृष्ठभूमि इस बात की पुष्टि करती है कि मानवता की सेवा करना उनके खून में है। उन्होंने पाकिस्तान में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम करने की इच्छा जताई है।

25 वर्षीय डॉक्टर सवीरा प्रकाश का मानना है कि चुनावों में उनका धर्म कोई कारक नहीं होगा। उनकी पार्टी उनके विचार से सहमत दिखती है इसलिए उसने उन्हें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीट के बजाय एक सामान्य सीट से मैदान में उतारा है। इसलिए वह कहती हैं कि मैं शायद पहली अल्पसंख्यक महिला उम्मीदवार हूं, न केवल बुनेर से, बल्कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ने वाली पहली महिला भी हूं। उन्होंने कहा कि मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि जिस दिन से मैंने नामांकन दाखिल किया है, लोगों की प्रतिक्रिया इतनी अद्भुत रही है कि जनता ने मुझे 'बुनेर की बेटी' की उपाधि दे डाली है। उन्होंने कहा कि लोग मुझे एक हिंदू महिला के रूप में नहीं, बल्कि पश्तून समुदाय के पुख्ताना (मूल निवासी) के रूप में पहचान रहे हैं।

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डॉक्टर सवीरा प्रकाश ने कहा कि धार्मिक आधार पर विभाजन बहुत पुराना हो चुका है, हमें आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वह अपने जिले में तीन महत्वपूर्ण मुद्दों- शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं की स्थिति पर काम करने के लिए चुनाव लड़ रही हैं। वह भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच बेहतर संबंधों की भी पुरजोर वकालत करती हैं। अपना पहला चुनावी भाषण पश्तो और उर्दू दोनों में देते हुए उन्होंने युवाओं से विकास के लिए वोट करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि पीके-25 सीट से मुझे टिकट देना मेरी पार्टी का निर्णय है। उन्होंने कहा कि अपने पिता को दशकों तक पार्टी से जुड़े देखकर मेरे मन में हमेशा बुनेर के लोगों के लिए कुछ करने की चाहत रहती थी। जिन महत्वपूर्ण मुद्दों ने मुझे चुनावी राजनीति में उतरने के लिए प्रेरित किया, वे हैं मेरे जिले में महिलाओं की स्थिति, शिक्षा और स्वास्थ्य। इन सभी मुद्दों को ठीक करने की कुंजी शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाना है। मुझे यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि बुनेर में अभी भी महिलाओं के लिए केवल एक कॉलेज है।

डॉक्टर सवीरा प्रकाश ने कहा कि बुनेर में युवा लड़कों को अभी भी मदरसों से कुछ शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि लेकिन लड़कियों के लिए वह भी विकल्प नहीं है इसलिए यहां अधिकांश लड़कियों की अभी भी बुनियादी प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच नहीं है। उन्होंने कहा कि लड़कियों के लिए सरकारी प्राथमिक विद्यालय नहीं हैं और अगर निजी स्कूल हैं भी तो उसका खर्च हर कोई वहन नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि वंचित परिवारों की अधिकांश लड़कियाँ अमीरों के घरों में घरेलू सहायिकाओं के रूप में काम करती हैं और बिना किसी शिक्षा के बड़ी हो जाती हैं। डॉ. सवीरा प्रकाश ने कहा कि जब स्वास्थ्य देखभाल की बात आती है तो स्थिति वहां भी बहुत बेहतर नहीं है। उन्होंने कहा कि केवल जब महिला अपनी गर्भावस्था के अंतिम पड़ाव पर पहुंचती है तभी उसे डॉक्टर के पास ले जाया जाता है और यदि उसकी स्थिति गंभीर हो जाती है तो उसे दूर इस्लामाबाद या पेशावर रेफर कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि बुनेर में आपात स्थिति से निपटने के लिए कोई सुविधाएं नहीं हैं। बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल की कमी के कारण महिलाएं और नवजात शिशु अभी भी मर रहे हैं।

डॉक्टर सवीरा स्वीकार करती हैं कि बुनेर कभी भी पीपीपी का गढ़ नहीं रहा है। 2018 के चुनावों में इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने राष्ट्रीय और प्रांतीय दोनों चुनाव जीते थे। वैसे डॉ. सवीरा प्रकाश की उम्मीदवारी को पीपीपी द्वारा युवाओं और महिलाओं दोनों को लक्षित करते हुए प्रांत के राजनीतिक परिदृश्य में ताजी हवा का झोंका देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर वह जीत नहीं पाईं तो भी उन्हें निराशा नहीं होगी। उन्होंने कहा कि सिविल सेवाओं की तैयारी के लिए मैंने पहले ही लाहौर की एक अकादमी में दाखिला ले लिया था। अगर मैं नहीं जीती तो मैं अपनी सिविल सेवा की तैयारी फिर से शुरू कर दूंगी। डॉ. सवीरा प्रकाश का कहना है कि बुनेर में उन्हें अपने धर्म के कारण कभी भी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने कहा कि वह ज्यादातर समय हिजाब पहनती हैं, क्योंकि यह मेरी पसंद है और कई बार जब मैं हिजाब नहीं पहनती तो भी कोई समस्या नहीं है।

डॉक्टर सवीरा प्रकाश ने कहा कि राजनीति में आने के लिए उनके पिता और दिवंगत बेनजीर भुट्टो उनकी मुख्य प्रेरणा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरे पिता हमेशा वंचितों का मुफ्त चिकित्सा उपचार करते रहे हैं। उनका अपना ब्लड बैंक था जहां आपात्कालीन स्थिति में जरूरतमंद आते थे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा दिवंगत बेनजीर भुट्टो उनकी प्रेरणा हैं जिनकी देश की सेवा करने की विचारधारा हमेशा मेरे साथ रहती है। उन्होंने इस बात पर भी खुशी व्यक्त की कि उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से उन्हें भारत से शुभकामना संदेश मिल रहे हैं। डॉक्टर सवीरा प्रकाश ने कहा कि मैं बहुत उत्साहित महसूस कर रही हूं कि मैं दोनों देशों के लोगों के बीच एक साझा बिंदु बन गयी हूं। उन्होंने कहा कि मुझे दोनों देशों में कभी कोई अंतर महसूस नहीं हुआ क्योंकि हमारी संस्कृतियाँ और इतिहास एक समान हैं। उन्होंने कहा कि अगर निर्वाचित होने के बाद मुझे कुछ शक्ति मिलती है तो मैं दोनों देशों के बीच एक पुल के रूप में काम करूंगी।' उन्होंने कहा कि उनका परिवार विभाजन के दौरान भारत नहीं गया क्योंकि बुनेर, जो पहले स्वात रियासत का हिस्सा था, वहां ऐसे शासक थे जो अल्पसंख्यकों के प्रति दयालु थे। डॉ. सवीरा ने कहा कि निर्वाचित होने पर वह पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की समस्याओं को हल करने में मदद करेंगी। उन्होंने कहा कि वह एक देशभक्त हिंदू हैं तथा 'बुनेर की बेटी' की उपाधि मिलने के बाद उनका मनोबल और बढ़ गया है। डॉ. सवीरा ने कहा कि यदि वह निर्वाचित होती हैं तो वह इस्लामाबाद और नयी दिल्ली के बीच संबंधों के प्रति सकारात्मक भूमिका निभाएंगी और दोनों देशों के हिंदू बिना किसी हिचकिचाहट के उनसे संपर्क कर सकेंगे।

बहरहाल, देखा जाये तो अफगानिस्तान के पड़ोसी अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं का चुनावी राजनीति में आना दुर्लभ है। इस इलाके में हाल के वर्षों में तालिबान और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के बीच काफी झड़पें देखी गई हैं। हम आपको बता दें कि पश्तून लोग इस प्रांत की बहुसंख्यक आबादी हैं, यहां हिंदू 1 प्रतिशत से भी कम हैं। 2017 की जनगणना के मुताबिक, पूरे पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या करीब 44 लाख यानी आबादी का 2.15 फीसदी है। 2022 में सेंटर ऑफ पीस एंड जस्टिस की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान की आबादी में हिंदू केवल 1.18 प्रतिशत हैं।

-नीरज कुमार दुबे

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