अपनी बेगुनाही के लिए आप प्राथमिकी को भी चुनौती दे सकते हैं, जानिये...

FIR

गलत एफआईआर के संदर्भ में आप कानून की धारा 482 की हेल्प ले सकते हैं। यह एक ऐसी धारा है जो फाल्स FIR को चुनौती दे सकती है और आपका पक्ष हाई कोर्ट के सामने रख सकती है। ऐसा कई बार हुआ है कि कोर्ट 482 के तहत अपील करने वाले व्यक्ति को राहत देती है।

वर्तमान समय में पुलिस के पास असीमित अधिकार आ चुके हैं। इसके पीछे वाजिब कारण भी हैं।

जिस तरीके से कोरोना का खतरनाक वायरस फैल रहा है, उसने केंद्र समेत तमाम राज्य सरकारों को मजबूर किया है कि लॉक डाउन का विकल्प बड़े स्तर पर आजमाया जाए। ऐसी स्थिति में सरकार ने भी एक तरह से सही फैसला ही लिया और इसका नतीजा यह हुआ कि दूसरे तमाम देशों के मुकाबले भारत में कोरोना कम रफ्तार से बढ़ा है। 

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एक तरफ सरकार के इस निर्णय का फायदा तो जरूर हुआ, लेकिन दूसरी तरफ नागरिक अधिकारों में बड़ी कटौती हुई। पुलिस के बारे में क्या कहा जा सकता है, क्योंकि अगर वह ठीक ढंग से भी काम करे, तो भी लोगों के साथ अन्याय हो ही जाता है। 

अगर यह जान-बूझकर न भी हो, तो भी कई बार दोषी को पकड़ने के चक्कर में निर्दोष भी पकड़े जाते हैं और उन पर प्राथमिकी दर्ज हो जाती है। ऐसे में बेवजह की मुकदमेबाजी में उलझ कर किसी निर्दोष की आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्थिति पर भारी दबाव पड़ता है। 

ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि अगर लॉकडाउन के दौरान पुलिस ने आप पर कोई गलत मुकदमा किया है, तो आप उसे कैसे निरस्त करा सकते हैं। 

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वस्तुतः यह टिप्स सिर्फ लॉकडाउन के दौरान मुकदमें और गलत FIR पर ही लागू नहीं होता, बल्कि सामान्य दिनों में भी अगर ऐसी परिस्थिति आपके सामने आए तो आप इन उपायों का प्रयोग कर सकते हैं।

गलत एफआईआर के संदर्भ में आप कानून की धारा 482 की हेल्प ले सकते हैं। यह एक ऐसी धारा है जो फाल्स FIR को चुनौती दे सकती है और आपका पक्ष हाई कोर्ट के सामने रख सकती है। ऐसा कई बार हुआ है कि कोर्ट 482 के तहत अपील करने वाले व्यक्ति को राहत देती है। इसकी प्रक्रिया भी कोई बहुत जटिल नहीं है, आइए समझते हैं।

इसके लिए आपको किसी वकील की सहायता लेनी पड़ेगी और हाईकोर्ट में अपील करनी पड़ेगी। संबंधित राज्य के हाई कोर्ट में अपील करते समय अगर आप बेगुनाह हैं तो उसके ठोस प्रमाण आपको अवश्य साथ में लगाना चाहिए, जैसे कि अगर लॉक डाउन के दौरान ही पुलिस ने गलत तरीके से आपको आने-जाने के लिए आरोपी बनाया है और आपके पास यात्रा करने के लिए पास अवेलेबल था, तो आप उसे दिखला  कर अपनी बेगुनाही साबित कर सकते हैं। 

इसके अलावा कई बार ऐसा भी होता है कि आप घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं रहे होंगे और उस वक्त किसी अन्य स्थान पर हों तो आप जरूरी सीसीटीवी रिकॉर्डिंग इत्यादि दिखला सकते हैं, जिसमें इमेज डॉक्यूमेंट इत्यादि मान्य होते हैं।

आप यह भी जान लीजिए कि अगर हाईकोर्ट में यह मामला चल रहा है तो पुलिस आपके खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकती है, इसलिए आपको इस संबंध में परेशान नहीं होना चाहिए। इस संदर्भ में यह जान लीजिए कि 1973 में सुप्रीमकोर्ट के द्वारा इसका स्पष्टीकरण किया गया था, जब कर्नाटक स्टेट बनाम मुनि स्वामी का मामला (एआईआर 1977 एस सी 1489) सामने आया था। इसके तहत 482 मात्र 3 सिचुएशन की परिकल्पना करती है। 

संहिता के तहत किसी भी आदेश को प्रभावी करने के लिए, किसी भी न्याय की प्रक्रिया का मिस यूज रोकने के लिए और न्याय सुरक्षित करने के लिए। 

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देखा जाए तो इसमें हाईकोर्ट द्वारा खुद के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। यह नियम न्यायिक प्रक्रिया को यह याद दिलाती है कि वह न केवल कानून की अदालतें हैं, बल्कि न्याय की अदालतें भी हैं और उसे अक्षुण्ण रखना इनका ही दायित्व है।

हालांकि यह एक तथ्य है कि कानूनी प्रक्रिया को लेकर लोग घबरा जाते हैं और इस तरह के विकल्पों का उपयोग नहीं करते हैं, लेकिन अगर वाकई में आप निर्दोष हैं तो इस तरह के विकल्पों का आपको प्रयोग करना चाहिए। लेकिन आप ऐसा ना सोचें कि न्यायालय इस मामले में आपकी बात मानेगा ही। वस्तुतः यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है और केस टू केस वह ऐसे मामलों में स्वीकृति अथवा अस्वीकृति दे सकता है।

ऐसे मामलों में बड़ी सावधानी से आपको अपील करनी पड़ती है, ताकि अदालत को यह ना लगे कि उसका मिस यूज किया जा रहा है। अगर अदालत को यकीन हो गया है कि आप के खिलाफ गलत मामला दर्ज हुआ है तो निश्चित रुप से आपको मदद मिल सकती है

चूंकि भारतीय कानून हर पक्ष की प्रभावी देखभाल करता है और धारा 482 इसी का एक पक्ष है। ऐसे तमाम मामले सामने आते हैं, जब पुलिस प्रशासन अपनी ताकत का दुरुपयोग करता है तो कई बार स्वार्थवश षड्यंत्र कर लोगों को फंसाता भी है। 

चूंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। हर जगह अच्छे और बुरे लोग मौजूद होते हैं। हाँ, अगर आपके साथ सच में अन्याय हुआ है तो आप इसका उपचार कानूनी तरीके से निश्चय ही कर सकते हैं।

- मिथिलेश कुमार सिंह

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