माता-पिता की संपत्ति में उनके बेटे-बेटी के क्या अधिकार हैं, इसे समझिए

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पैतृक संपत्ति ऐसी संपत्ति होती है जो तीन पीढ़ियों के बाद भी कायम रहती हैं। आम तौर पर तीन पीढ़ी पहले की संपत्ति पैतृक संपत्ति हो जाती है। आजकल ऐसी संपत्तियां कम हैं लेकिन पुराने संयुक्त परिवारों के पास आज भी ऐसी संपत्तियां बहुतायत में उपलब्ध हैं।

किसी भी व्यक्ति के जीवन में सम्पत्ति का अपना महत्व होता है। उसके सदुपयोग से वह न केवल अपनी जरूरतें पूरी करता है, बल्कि आड़े वक्त में भी उसकी अर्जित संपत्ति ही उसे काम आती हैं। इसलिए कोई भी समझदार व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक प्रकार की संपत्तियां अर्जित करता है। ऐसी संपत्ति चल और अचल दोनों प्रकार की हो सकती हैं। किसी व्यक्ति के पास चल संपत्ति के रूप में बैंक खाता, एफडी, शेयर्स, वाहन, डिबेंचर, नक़दी, गोल्ड सिल्वर इत्यादि अनेक चीज़ें होती हैं। वहीं, अचल संपत्ति के रूप में व्यक्ति के पास घर, प्लॉट, फ्लैट, कृषि योग्य भूमि इत्यादि भ होते हैं। काल क्रम में यह सभी संपत्ति व्यक्ति भिन्न भिन्न प्रकार से अर्जित करता है और समयानुसार अपनी संततियों के बीच हस्तांतरित करता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 में इसके बारे में विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।

विधि विशेषज्ञ के मुताबिक, मुख्य रूप से यह संपत्तियां व्यक्ति को तीन प्रकार से प्राप्त होती हैं- पहला, ऐसी संपत्ति जो व्यक्ति स्वयं अर्जित करता है, स्वयं अर्जित सम्पत्ति कहलाता है। अब भले ही इस संपत्ति को वह अपने कमाए रुपए से ख़रीदा हो या फिर उस व्यक्ति को किसी व्यापारिक विभाजन में ऐसी संपत्ति प्राप्त हुई हो या फिर ऐसी संपत्ति उस व्यक्ति को दान के रूप में प्राप्त हुई हो। इन सभी संपत्तियों को स्वयं अर्जित संपत्ति कहा जाता है। ऐसी संपत्ति पर उसकी संततियों का हक उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं हो सकता है।

दूसरा, किसी भी व्यक्ति को उत्तराधिकार या वसीयत में प्राप्त संपत्ति भी एक प्रकार से उस व्यक्ति की स्वयं अर्जित संपत्ति ही होती है। क्योंकि उत्तराधिकार व्यक्ति को नैसर्गिक रूप से मिलता है और वसीयत भी उसे वसीयतकर्ता के साथ उसके मृदुल स्वभाव के कारण ही मिलती है। ऐसी संपत्ति में उसकी संततियों के हक के कुछ नियम कायदे विनियमित हैं।

तीसरा, पैतृक संपत्ति ऐसी संपत्ति होती है जो तीन पीढ़ियों के बाद भी कायम रहती हैं। आम तौर पर तीन पीढ़ी पहले की संपत्ति पैतृक संपत्ति हो जाती है। आजकल ऐसी संपत्तियां कम हैं लेकिन पुराने संयुक्त परिवारों के पास आज भी ऐसी संपत्तियां बहुतायत में उपलब्ध हैं। ऐसी सम्पत्तियों पर व्यक्ति विशेष के पुत्र और पौत्र का वंशानुगत हक होता है, जिसका अतिक्रमण होने पर प्रभावित पक्ष कोर्ट की शरण ले सकता है।

जहां तक पिता की खुद की अर्जित की गई जमीन का सवाल है तो, ऐसे में वह अपनी जमीन को बेचने, दान देने, उसके अंतरण संबंधी किसी भी तरह का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इसका उल्लेख भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और संपत्ति अंतरण अधिनियम में स्पष्ट मिलता है। पिता द्वारा स्वयं अर्जित की गई जमीन से संबंधित उनके फैसले को कोई भी ना तो प्रभावित कर सकता है और ना ही कोई अन्य फैसला लेने के लिए बाध्य कर सकता है। 

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ऐसे में यदि इस जमीन पर अधिकार के कानूनी पक्ष को देखें तो हम पाते हैं कि पता द्वारा खुद से अर्जित की गई जमीन पर किसी भी निर्णय को लेकर सिर्फ उनका ही अधिकार होता है। यदि वो अपनी स्वअर्जित जमीन की वसीयत तैयार करते हैं और जिस किसी को भी उसका मालिकाना हक देना चाहते हैं तो इस जमीन पर उसी का अधिकार होगा। 

वहीं, संबंधित व्यक्ति के बच्चे अगर इस मुद्दे को लेकर न्यायालय का रुख करते हैं तो वसीयत पूरी तरह से वैध होने की स्थिति में यह संभावना है कि इस मामले में कोर्ट पिता के पक्ष में ही फैसला सुनाएगा। ऐसे में यह स्पष्ट है कि पिता की खुद से अर्जित की गई संपत्ति अंतरण से संबंधित अधिकार पिता के पास ही सुरक्षित हैं। 

लेकिन इसका एक महत्वपूर्ण पक्ष यह कि अगर पिता द्वारा खुद से अर्जित की गई जमीन संबंधी कोई फैसला लेने से पहले ही उनका देहांत हो जाता है, तब बेटे और बेटियों को इस जमीन पर कानूनी अधिकार मिल जाता है।

आमतौर पर यह समझा जाता है कि किसी भी जीवित पिता की संपत्ति पर उसके बच्चों का अनन्य अधिकार है, जबकि यह धारणा सरासर ग़लत है। क्योंकि यदि किसी व्यक्ति के पास उसकी स्वयं की अर्जित संपत्ति है जो उसे उसके पिता माता या अन्य रिश्तेदार से उत्तराधिकार में मिली संपत्ति और वसीयत के मार्फ़त मिली संपत्ति भी शामिल है, तब उस सम्पत्ति पर उसके बच्चों का उस जीवित व्यक्ति की संपत्ति पर कोई भी अधिकार नहीं होता है। 

खास बात यह कि यदि वह अपने पिता की संपत्ति को इस्तेमाल कर भी रहे हैं तो यह पिता का बड़प्पन है कि उसने अपनी वयस्क संतानों को संपत्ति का इस्तेमाल करने से रोका नहीं है, अन्यथा एक पिता के पास यह अधिकार रहता है कि वह अपनी संतानों को अपनी संपत्ति से बाहर निकाल दे।

इससे साफ है कि संतानें किसी भी सूरत में अपने पिता या माता की किसी भी संपत्ति में कोई दखल नहीं कर सकती हैं और न ही उस संपत्ति पर दावा कर सकती हैं। यदि किसी व्यक्ति को ऐसी संपत्ति अपने पिता के मरने के बाद उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है, तब भी उस व्यक्ति की संतानें इस आधार पर दावा नहीं कर सकतीं हैं कि संपत्ति उनके दादा की है, क्योंकि संपत्ति पर सबसे पहला अधिकार किसी भी व्यक्ति के उसके जीवित पुत्र, पुत्री और पत्नी का है। इसलिए पोती या पोते इस आधार पर दावा नहीं कर सकते हैं कि यह संपत्ति उनके दादा की है। कहने का तातपर्य यह कि पिता के जीवित रहते हुए पोता-पोती का दादा की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। वहीं, पति के जीवित रहते हुए बहु के पास भी ऐसा कोई अधिकार नहीं है।

वहीं, पैतृक संपत्ति पर ज़रूर संतानों और पत्नी का समान अधिकार होता है। क्योंकि यह संपत्ति पिछली तीन पीढ़ियों से चली आ रही होती है। ऐसी संपत्ति को किसी व्यक्ति की अर्जित संपत्ति नहीं माना गया है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति के पास ऐसी संपत्ति है तब उसकी संतानें ऐसी संपत्ति पर क्लेम कर सकती हैं और पिता अपनी संतानों को ऐसी संपत्ति से बेदखल भी नहीं कर सकता है। साफ शब्दों में कहें तो कोई भी पिता अपनी पैतृक संपत्ति से संबंधित वसीयत नहीं बना सकता है। क्योंकि इस संपत्ति पर बेटे और बेटियों का समान हक होता है। इससे स्पष्ट है कि पैतृक संपत्ति को लेकर पिता फैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है, क्योंकि पैतृक संपत्ति पर बेटे और बेटी दोनों को बराबर अधिकार प्राप्त हैं। पहले बेटी को इस संपत्ति में बराबर अधिकार प्राप्त नहीं थे, लेकिन 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए, जिसके दृष्टिगत बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार पैतृक संपत्ति में प्राप्त हुए।

# जानिए, संपत्ति को लेकर हिंदूओं और मुसलमानों के क्या-क्या हैं नियम-कानून

भारत में संपत्ति पर अधिकार को लेकर हिंदू और मुसलमानों के अलग-अलग नियम कानून बने हुए हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 में बेटे और बेटी दोनों का पिता की संपत्ति पर बराबर अधिकार माना जाता है। यह अलग बात है कि भारतीय सामाजिक परंपराओं के चलते अनगिनत बेटियां अपने पिता की संपत्ति पर अपना दावा नहीं करतीं, जबकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 उन्हें बेटों के बराबर अधिकार देता है।

वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ में इस तरह की संपत्ति पर अधिकार में बेटों को ज्यादा महत्व दिया गया है। हालांकि न्यायालयों की प्रगतिशील सोच और बराबरी के अधिकार के चलते उन्हें भी धीरे-धीरे हिंदू बेटियों की तरह ही अधिकार दिए जाने पर जोर दिया जा रहा है। गौरतलब है कि पिता द्वारा अर्जित संपत्ति की वसीयत में अगर पिता अपनी बेटियों को हक नहीं देता, तो ऐसे में न्यायालय भी बेटी के पक्ष में फैसला नहीं सुनाएगी। लेकिन पैतृक संपत्ति के मामले में स्थिति अलग है।

इन बातों से स्पष्ट है कि पैतृक संपत्ति का पिता के रहते हुए बंटवारा हो सकता है, लेकिन स्वयं अर्जित सम्पत्ति पर कदापि नहीं। उसकी इच्छा के विरुद्ध तो कतई नहीं।

यह कड़वा सच है कि अक्सर लोगों में पिता की जमीन पर अधिकार को लेकर जानकारी का अभाव होता है। इसलिए जमीन पर अधिकार को लेकर परिवारों में आपसी रंजिश शुरू हो जाती है, जिसके चलते कई बार रिश्ते इस कदर खराब हो जाते हैं कि लोग एक-दूसरे के साथ संबंधों को खत्म कर लेते हैं। समाज में अनगिनत घटनाएं तो ऐसी हैं जिसमें अपने ही लोगों की जान भी ले लेते हैं। ऐसे विवाद जानकारी के अभाव और उन तमाम उलझनों की वजह से भी पैदा होते हैं जिनको लेकर विधि तक में स्पष्टता व समानता नहीं होती। एक ही प्रकृति की चीजों के लिए अलग अलग कानून होते हैं, जिसमें व्यक्तिमात्र उलझ कर रह जाता है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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