Sankashti Chaturthi 2024: भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत से सभी समस्याएं होती हैं खत्म

Bhalchandra Sankashti Chaturthi
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पंडितों के अनुसार भगवान गणेश बुद्धि, बल और विवेक के देवता हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति करियर में तरक्की पाता है, क्योंकि बप्पा अपने भक्तों के विघ्नों को हर लेते हैं। 28 मार्च, गुरुवार को पहले हिंदी महीने की पहली संकष्टी चतुर्थी रहेगी।

आज है भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, यह तिथि भगवान श्री गणेश को समर्पित है। इस व्रत को करने से भक्तों की सभी परेशानियां और दुख दूर होते हैं तो आइए हम आपको भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में

पंडितों के अनुसार भगवान गणेश बुद्धि, बल और विवेक के देवता हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति करियर में तरक्की पाता है, क्योंकि बप्पा अपने भक्तों के विघ्नों को हर लेते हैं। 28 मार्च, गुरुवार को पहले हिंदी महीने की पहली संकष्टी चतुर्थी रहेगी। स्कंद और ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक इस तिथि पर गणेशजी के भालचंद्र रूप की पूजा की जाती है। इन पुराणों के मुताबिक संकष्टी चतुर्थी का व्रत और गणेशजी की पूजा करने से सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है। भालचंद्र यानी गणेश जी का ऐसा रूप जिसके सिर पर चंद्रमा हो। पुराणों के मुताबिक गणेश जी के इस रूप की पूजा करने से रोग, शोक और दोष दूर हो जाते हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ये व्रत नाम के मुताबिक ही है। यानी इसे सभी कष्टों का हरण करने वाला माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत और भगवान गणेश की आराधना करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। संकष्टी चतुर्थी व्रत शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना से करती हैं। वही, कुंवारी कन्याएं भी अच्छा पति पाने के लिए दिन भर व्रत रखकर शाम को भगवान गणेश की पूजा करती हैं।

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भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 28 मार्च 2024 को शाम 06.56 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 29 मार्च 2024 को रात 08 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा।

पूजन मुहूर्त (सुबह)- सुबह 10.54- दोपहर 12.26

पूजन मुहूर्त (शाम)- शाम 05.04- शाम 06.37

चंद्रोदय समय- रात 09.28

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी पर ऐसे करें पूजा 

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। गणेश भगवान की पूरी विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मोदक अर्पित करें। आज ॐ गं गणपतये नम: मंत्र का जाप, गणेश स्तुति, गणेश चालीसा और संकट चौथ व्रत कथा पढ़नी चाहिए। पूजा खत्म होने के बाद गणेश जी की आरती करें। रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें और फिर व्रत खोलें। पूजा के लिए पूर्व-उत्तर दिशा में चौकी स्थापित करें और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा पहले बिछा लें। गणेश जी की मूर्ति पर जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें। अक्षत और फूल लेकर गणपति से अपनी मनोकामना कहें और उसके बाद ऊँ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेश जी को प्रणाम करने के बाद आरती करें। इसके बाद चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें। पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।

ऐसे करें भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत, मिलेगा लाभ

सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और सूर्य के जल चढ़ाने के बाद भगवान गणेश के दर्शन करें। गणेश जी की मूर्ति के सामने बैठकर दिनभर व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत में पूरे दिन फल और दूध ही लिया जाना चाहिए। अन्न नहीं खाना चाहिए। इस तरह व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी होती है। भगवान गणेश की पूजा सुबह और शाम यानी दोनों वक्त की जानी चाहिए। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूरा करें।

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नदी के किनारे बैठे हुए थे। कुछ देर बाद माता पार्वती के मन में चौपड़ खेलने विचार आया। उन्होंने शिव जी से चौपड़ का खेल खेलने के लिए कहा, तो वे भी तैयार हो गए। लेकिन अब समस्या यह थी कि वहां कोई तीसरा व्यक्ति नहीं था, जो हार जीत का निर्णय कर सके। इस समस्या का समाधान करने के लिए माता पार्वती ने अपनी शक्ति से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी। फिर उस बालक से कहा कि तुम इस चौपड़ खेल के निर्णायक हो। तुम्हे हमारी हार और जीत का फैसला करना है। इसके बाद माता पार्वती और शिव जी के बीच चौपड़ का खेल शुरू हुआ।

चौपड़ के खेल में हर बारी माता पार्वती जीत रही थीं और उन्हें कई बार भगवान शिव को इस खेल में हराया। इसके बाद माता पार्वती ने उस बालक से खेल का निर्णय बताने के लिए कहा तो उसने भगवान शिव को विजयी बता दिया।

इस गलत और झूठे फैसले से माता पार्वती नाराज हो गईं और उन्होंने गुस्से में बालक को श्राप दे दिया। माता पार्वती के श्रापवश वह बालक लंगड़ा हो गया. बालक ने क्षमा याचना की, तो माता पार्वती ने कहा कि यह श्राप वापस नहीं हो सकता। लेकिन इससे मुक्ति पाने का एक उपाय है. उन्होंने बालक को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने को कहा। साथ ही यह भी कहा कि इस व्रत की विधि इस नदी किनारे आने वाली कन्याओं से पूछना और फिर विधिपर्वूक संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना। बालक ने माता पार्वती के कहे अनुसार ऐसा ही किया और संकष्टी चतुर्थी पर कन्याओं से व्रत की विधि जान ली। इसके बाद नियमपूर्वक व्रत किया। बालक के व्रत व पूजा से प्रसन्न होकर गणेश जी ने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। तब बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा व्यक्त की, तो गणेश जी उसे कैलाश पहुंचा देते हैं। कहते हैं कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से भगवान गणेश जीवन से सभी बाधाओं और कष्टों को दूर करते हैं।

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी पूजा से जुड़ी सामग्री

गणेश जी की प्रतिमा, पीला कपड़ा, चौकी, फूल, जनेऊ, लौंग, दीपक, दूध, मोदक, गंगाजल, जल, धूप, देसी घी, 11 या 21 तिल के लड्डू, फल, कलश, सुपारी पूजन सामग्री में शामिल करें।

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत के लाभ

भगवान गणेश बाधाओं को दूर करने के लिए जाने जाते हैं और लोग बप्पा का आशीर्वाद पाने के लिए संकष्टी का व्रत रखते हैं, जो भक्त किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं और जीवन की अनेक बाधाओं से घिरे हुए हैं, उन्हें भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए और यह चतुर्थी व्रत करना चाहिए। इस व्रत को करने से सौभाग्य, धन, समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही विघ्नहर्ता की कृपा मिलती है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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