Ganga Saptami 2024: गंगा जयंती व्रत से प्राप्त होता है धन-वैभव

पदमपुराण के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से कहा- ''हे देवी ! तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो, मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूंगा''। ब्रह्मा जी के कहने पर मूल प्रकृति-गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्ति बीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं।
आज गंगा जयंती है, इस दिन गंगा नदी में स्नान और दान का विशेष महत्व है, तो आइए हम आपको गंगा जयंती व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें गंगा जयंती के बारे में
वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाने वाला यह त्यौहार उत्तर भारत में खास तौर से मनाया जाता है। इसे गंगा जयंती या गंगा पूजन भी कहा जाता है। इस साल यह जयंती 14 मई को मनायी जा रही है। पंडितों के अनुसार वैसाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को जान्हु ऋषि के कान से प्रवाहित होने के कारण जान्हु जयंती भी कहा जाता है। जान्हु ऋषि की पुत्री होने के कारण गंगा का एक नाम जान्हवी भी है। हमारे देश में गंगा को न केवल नदी के रूप में मानते हैं बल्कि उसे देवी के रूप में भी पूजते हैं। गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप दूर होते हैं। भारत में प्रायः सभी पर्वों पर गंगा स्नान पवित्र और पुण्यदायी माना जाता है। बहुत से शहरों में गंगा किनारे गंगा आरती का भी आयोजन किया जाता है। साथ ही शुभ अवसरों पर गंगा में दीपदान भी किया जाता है।
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मां गंगा के बारे में विशेष बातें
पदमपुराण के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से कहा- ''हे देवी ! तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो, मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूंगा''। ब्रह्मा जी के कहने पर मूल प्रकृति-गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्ति बीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं। इनमें से सातवीं 'पराप्रकृति धर्मद्रवा' अर्थात देवी गंगा को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल में धारण कर लिया। एक अन्य कथा के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और मैना की पुत्री हैं,इस प्रकार से गंगा मैया देवी पार्वती की बहन हैं।
गंगा जयंती के दिन विवाहित महिलाएं करें ये काम
पंडितों के अनुसार गंगा जयंती पर विवाहित महिलाएं व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गंगा स्नान करें फिर मध्यान के समय 'ॐ नमो गंगाये विश्वरूपिणी नारायणी नमो नमः, गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनानां शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स गच्छति' मंत्र का जाप करते हुए देवी गंगा की पूजा करें। ऐसा करने से अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही कुंडली से अशुभ ग्रहों का कुप्रभाव समाप्त होता है और धन-वैभव की प्राप्ति होती।
इस दिन शिव की जटाओं में पहुंची गंगा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार है कि सतयुग राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश और ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ, उस समय अपने कमण्डल के जल से ब्रह्माजी ने श्रीविष्णु के चरण का पूजन किया। चरण धोते समय श्रीविष्णु का चरणोदक हेमकूट पर्वत पर गिरा। वहां से भगवान शिव के पास पहुंचकर यह जल गंगा के रूप में उनकी जटाओं में समा गया। गंगा बहुत काल तक शिव की जटाओं में भ्रमण करती रहीं।
गंगा जयंती व्रत का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 13 मई, 2024 शाम 5 बजकर 20 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 14 मई, 2024 शाम 6 बजकर 49 मिनट पर होगा। उदयातिथि को देखते हुए गंगा जयंती का पर्व 14 मई, 2024 को भक्तों द्वारा मनाया जाएगा। यह दिन पापों के नाश के लिए बेहद कल्याणकारी माना जाता है।
गंगा के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथाएं
गंगा के जन्म से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के मुताबिक गंगा का जन्म विष्णु के पैर में होने वाले पसीने की बूंद से हुआ है। एक कथा कहती है कि गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमण्डल से हुआ है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राक्षस बलि से जगत को मुक्त करने के लिए ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के पैर धोए और जल को अपने कमण्डल में भर लिया। इससे गंगा उत्पन्न हुईं। गंगा को धरती पर लाने का प्रयत्न राजा भगीरथ ने किया था। उनके प्रयास से ही गंगा का धरती पर अवतरण हो पाया। ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि ने राजा सागर के 60000 पुत्रों को भस्म कर दिया था। उनके उद्धार हेतु राजा भगीरथ ने तपस्या की।
भगीरथ की तपस्या से मां गंगा धरती पर आने को तैयार तो हो गयीं लेकिन उन्होने कहा कि उनकी तीव्र जलधारा पृथ्वी पर प्रलय ला देगी। भगवान शिव के प्रयास से उनका वेग कम हो सकता है। तब राजा भगीरथ शिव जी से प्रार्थना की। भगवान शिव ने अपनी जटा से गंगा की तेज धारा को नियंत्रित कर धरती पर भेजा। तब उसमें राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियां विसर्जित कीं और उनका उद्धार हुआ।
गंगा जयंती का महत्व
गंगा जयंती के दिन ही गंगा जी की उत्पत्ति हुई थी। इस दिन मां गंगास्वर्ग लोक से शिव जी की जटा में पहुंची थीं। इसलिए इस गंगा-पूजन का विशेष महत्व है। गंगा जयंती के दिन गंगा में स्नान करने तथा पूजन से सभी दुख-क्लेश दूर होते हैं। इस दिन गंगा स्नान का खास महत्व है। अगर आप गंगा नदी में स्नान न कर सकें तो गंगा के जल की कुछ बूंदें पानी में डाल कर स्नान करें। इस प्रकार के स्नान से भी सिद्धि प्राप्त होती है। यश-सम्मान की भी प्राप्ति होती है। मांगलिक दोष से ग्रस्त व्यक्तियों को गंगा जयंती के अवसर पर गंगा-स्नान और पूजन से विशेष लाभ मिलता है।
गंगा जयंती पर करें ये अनुष्ठान, मिलेगा लाभ
पंडितों के अनुसार गंगा जयंती पर इन अनुष्ठानों का पालन करना चाहिए। सुबह सूर्योदय से पहले उठकर गंगा नदी में पवित्र स्नान करें। इसके अलावा, देवी गंगा की पूजा करें, क्योंकि यह बहुत अनुकूल मानी जाती है। कोई गंगा नदी के पार एक माला विसर्जित कर सकता है और प्रसिद्ध गंगा आरती में भाग ले सकता है। गंगा आरती का विशेष महत्व है क्योंकि माना जाता है कि इस दिन “माँ गंगा” स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होती है। यह कई घाटों पर किया जाता है और भारत के विभिन्न हिस्सों से लाखों भक्त इस आरती में भाग लेते हैं। गंगा आरती समाप्त होने के बाद, संत अपने आस-पास मौजूद सभी लोगों को दीपक प्रसारित करते हैं। अपने नीचे किए हुए हाथों को लौ पर रखें और शुद्धि और आशीर्वाद लेने के लिए अपनी हथेलियों को माथे पर उठाएं। यहां, आरती में छोटे दीये और फूल होते हैं जिन्हें बाद में नदी में बहा दिया जाता है। गंगा जयंती के दिन दीपदान की रस्म या दीप या दीपक का दान किया जाता है। पवित्र नदी के किनारे विशाल मेलों का भी आयोजन किया जाता है। गंगा जयंती के दिन गंगा सहस्रनाम स्तोत्र और ‘गायत्री मंत्र’ का पाठ करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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