ललिता पंचमी व्रत से होती है धन एवं ऐश्वर्य़ की प्राप्ति
ललिता पंचमी के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद आप भगवान सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें। अब आप एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर गंगाजल के छींट दें। अब आप चौकी पर माता ललिता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
आज ललिता पंचमी व्रत है, यह व्रत शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन मनाया जाता है। इसे उपांग ललिता व्रत के नाम से भी जाना जाता है, तो आइए हम आपको ललिता पंचमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
ललिता पंचमी व्रत के बारे में खास जानकारी
ललिता पंचमी व्रत शारदीय नवरात्रि में पंचमी तिथि को रखा जाता है। इसे उपांग ललिता व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को गुजरात और महाराष्ट्र में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन मां ललिता या त्रिपुर सुंदरी देवी का पूजन होती है। मां त्रिपुर सुंदरी दस महाविद्याओं में से एक हैं। प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि को ललिता पंचमी मनायी जाती है। वहीं हिन्दू धर्म में इस व्रत का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन माता ललिता का व्रत रखना अत्यंत ही शुभ और मंगलकारी माना जाता है। ललिता देवी माता सती का ही स्वरूप हैं, इन्हें त्रिपुर सुन्दरी भी कहा जाता है। आदि शक्ति माता ललिता देवी 10 महाविद्याओं में से एक हैं। ललिता पंचमी का यह व्रत बहुत ही शुभ फल देने वाला है। शास्त्रों की मान्यता है कि माता त्रिपुर सुन्दरी करने से धन, ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
ललिता पंचमी व्रत का मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 29 सितंबर को देर रात 12 बजकर 08 मिनट पर प्रारंभ हो रही है और यह तिथि 30 सितंबर को रात 10 बजकर 34 मिनट तक मान्य रहेगी।
तीन शुभ योगों में है ललिता पंचमी व्रत
इस साल ललिता पंचमी व्रत के दिन तीन शुभ योग बन रहे हैं। 30 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग प्रातः 06 बजकर 13 मिनट से अगले दिन सुबह 04 बजकर 19 मिनट तक है। यह योग आपके सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए उत्तम है। इसके अलावा व्रत के दिन प्रातःकाल से लेकर रात 10 बजकर 34 मिनट तक प्रीति योग है। उसके बाद से आयुष्मान योग प्रारंभ हो जाएगा। प्रीति और आयुष्मान दोनों ही योग शुभ कार्यों के लिए अच्छे माने जाते हैं।
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ललिता पंचमी व्रत का महत्व
पंडितों के अनुसार यह व्रत करने से समस्त प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से संतान की भी प्राप्ति होती है। संतान की सुरक्षा के लिए भी ललिता पंचमी व्रत रखा जाता है। धन-संपत्ति की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
ललिता पंचमी के दिन ऐसे करें पूजा
ललिता पंचमी के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद आप भगवान सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें। अब आप एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर गंगाजल के छींट दें। अब आप चौकी पर माता ललिता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अब आप माता की प्रतिमा पर गंगाजल के छींटे दें और माता के चरण पखारें। इसके बाद आप माता को श्रृंगार की सभी सामग्री अर्पित करें। माता को लाल और पीले पुष्प अति प्रिय हैं, इसीलिए माता को लाल और पीले फूलों की माला पहनाएं। अब आप माता को मिठाई, फल आदि अर्पित करें। अब माता के समक्ष घी का दीया जलाकर उनकी आरती करें। पूजा संपन्न होने के बाद श्रृंगार की सामग्री अपनी सास या ननद को दे दें और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें।
ललिता पंचमी का महत्व
ललिता पंचमी के दिन देवी ललिता के लिए व्रत व् पूजन किया जाता है। इसे उपांग ललिता व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत शरद नवरात्री के पंचमी तिथि को किया जाता है। इन्हें त्रिपुरा सुंदरी और षोडशी के नाम से भी जाना जाता है। ललिता देवी माता सती पार्वती का ही एक रूप हैं। आदि शक्ति माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं। यह व्रत बहुत शुभ फल देने वाला है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माता ललिता कामदेव के शरीर की राख से उत्पन्न हुए 'भांडा' नामक राक्षस को मारने के लिए प्रकट हुई थीं।
देवी को माँ "ललिता" क्यों कहा जाता है
पुराणों के अनुसार जब माता सती अपने पिता दक्ष द्वारा अपमान किए जाने पर यज्ञ अग्नि में अपने प्राण त्याग देती हैं तब भगवान शिव उनके शरीर को उठाए घूमने लगते हैं, ऐसे में पूरी धरती पर हाहाकार मच जाता है। जब विष्णु भगवान अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को विभाजित करते हैं, तब भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर इन्हें 'ललिता' के नाम से पुकारा जाने लगा।
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ललिता पंचमी की पौराणिक कथा
शास्त्रों के अनुसार ललिता पंचमी का व्रत करने से मां ललिता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी सती ने अपने पिता के द्वारा अपमान किए जाने पर यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी तब भगवान शिव दुख के कारण उनकी देह को लेकर इधर-उधर घूमने लगते हैं जिससे सारी सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगता है। तब भगवान शिव का मोह भंग करने हेतु भगवान विष्णु अपने चक्र से सती के देह को विभाजित कर देते हैं। तब भगवान शंकर उन्हें अपने हृदय में धारण करते हैं। शिव जी के हृदय में धारण करने के कारण ये ललिता कहलाई। ललिता पंचमी का व्रत समस्त सुखों को प्रदान करने वाला माना गया है।
माँ ललिता का स्वरुप
कालिका पुराण के अनुसार देवी ललिता की दो भुजाएं हैं। यह माता गौर वर्ण होकर रक्तिम कमल पर विराजित हैं। दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को 'चण्डी' का स्थान प्राप्त है। इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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