Mauni Amavasya 2022 : आखिर क्यों खास तरह के शुभ संयोग बन रहे हैं इस बार?

Mauni Amavasya
शुभा दुबे । Jan 31 2022 6:47PM

इस दिन गंगा नदी का जल अमृत के समान हो जाता है जिसमें स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। मौनी अमवस्या के दिन दान का तो विशेष महत्व है ही इस दिन पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान आदि कर्म भी किए जाते हैं।

माघ माह की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। खास बात यह है कि इस बार मौनी अमावस्या 31 जनवरी सोमवार को ही पड़ रही है जिससे इस दिन बेहद शुभ संयोग बन रहे हैं। इस बार श्रवण नक्षत्र होने से महोदया योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। बताया जा रहा है कि पवित्र गंगा में स्नान करके यदि विधि-विधान से पूजन किया जाये तो निश्चित ही मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। कोरोना महामारी को देखते हुए यदि आप गंगा स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं तो घर पर ही गंगा जल को नहाने के पानी में मिला सकते हैं और उसके पास सच्चे मन से पूजा-अर्चना करें और पंडितों तथा जरूरतमंदों को दान दें।

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प्रयाग में दिखती है अलग ही छटा

वैसे तो पूरे माघ माह में अनेक लोग प्रयाग में संगम तट पर कुटिया बनाकर रहते हैं तथा नित्य त्रिवेणी स्नान करते हैं लेकिन मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान का महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी का जल अमृत के समान हो जाता है जिसमें स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है इस दिन मौन रहकर गंगा स्नान करना चाहिए। मौनी अमवस्या के दिन दान का तो विशेष महत्व है ही इस दिन पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान आदि कर्म भी किए जाते हैं।

मौनी अमावस्या कथा

कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात बेटे तथा एक बेटी थी। बेटी का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों का विवाह करके बेटी के लिए वर की खोज में सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और कहा सप्तपदी होते होते यह कन्या विधवा हो जाएगी। तब ब्राह्मण ने पूछा पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?

इस प्रश्न के उत्तर में पंडित ने बताया कि सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया कि वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। जैसे भी हो सोमा को प्रसन्न करो तथा गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो। तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों भाई बहन एक पेड़ की छाया में बैठ गये।

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उस पेड़ पर एक गिद्ध परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे जो दोनों भाई बहन के क्रियाकलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे मां से बोले कि नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे प्यासे बैठे हैं जब तक वे कुछ नहीं खा लेते तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया से भरकर गिद्ध माता उनके पास गईं और बोलीं कि मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। यहां जो भी फल कंदमूल मिलेगा मैं ले आती हूं आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रातःकाल आपको सागर पार कराकर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी। वे गिद्ध माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे और उसकी सेवा में लग गये। वे नित्य प्रातः उठकर सोमा का घर झाड़ कर लीप देते थे। एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि हमारे घर को कौन बुहारता है, कौन लीपता पोतता है? सबने कहा कि हमारे सिवा और कौन इस काम को करने आएगा?

मगर सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने यह रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सब कुछ प्रत्यक्ष देख लिया। ब्राह्मण पुत्र पुत्री द्वारा घर के लीपने की बात को जानकर उसे बड़ा दुख हुआ। सोमा का बहन भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने और कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दिया। मगर भाई ने उससे तुरंत ही अपने साथ चलने का आग्रह किया। तब सोमा उनके साथ ही चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा कि मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इंतजार करना।

फिर क्षण भर में सोमा भाई बहन के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया तो तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीष देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य फल देने से सोमा के पुत्र, जमाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए अश्वत्थ वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। इसके पूर्ण होने पर उसे परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।

-शुभा दुबे

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