नरसिंह जयंती का व्रत रखने से होती है सभी की मनोकामना पूरी

narsingh jayanti vrat and pujan

नरसिंह जयंती बैसाख महीने की शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी को मनायी जाती है। नरसिंह जयंती हिन्दुओं का एक बहुत बड़ा त्यौहार है। भगवान नरसिंह शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं।

नरसिंह जयंती बैसाख महीने की शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी को मनायी जाती है। नरसिंह जयंती हिन्दुओं का एक बहुत बड़ा त्यौहार है। भगवान नरसिंह शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं। तो आइए नरसिंह जयंती के अवसर पर भगवान नरसिंह के शक्ति तथा शौर्य पर चर्चा करते हैं। 

कथा

ऐसी मान्यता है कि नरसिंह चर्तुदशी के दिन ही भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यपु का वध किया था। प्राचीन काल में कश्यप नाम के ऋषि रहते थे। उनकी पत्नी का दिति था। ऋषि कश्यप के दो पुत्र थे एक नाम हरिण्याक्ष और दूसरे का नाम हरिण्यकशिपु था। हरिण्याक्ष से पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर उसकी हत्या कर दी। उसके बाद हिरण्यकश्यपु अपने भाई के वध से बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने वर्षों तक कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे अजेय होने का आशीर्वाद दिया। इस तरह हिरण्यकश्यपु अजेय बनकर अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा। अब कोई भी हरिण्यकश्यपु को हरा नहीं सकता था। 

हरिण्यकश्यपु की पत्नी कयाधु से उसे प्रहलाद नाम का एक पुत्र पैदा हुआ। प्रहलाद के अंदर राक्षसों वाले गुण नहीं था। वह बहुत संस्कारी था और नारायण का भक्त था। प्रहलाद की आदतें देख हरिण्यकश्यपु ने उसमें बदलाव लाने की कोशिश की। लेकिन भक्त प्रहलाद में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उसके बाद हरिण्यकश्यपु ने बालक प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की गोदी में बैठाकर अग्नि में प्रवेश का आदेश दिया लेकिन इस घटना में प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जलकर भस्म हो गयी। उसके बाद हरिण्यकश्यपु ने प्रहलाद को मारने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। एक दिन हरिण्यकश्यपु ने बालक प्रहलाद से कहा कि तुम्हारे भगवान कहां हैं? तो प्रहलाद ने कहा कि वह तो अन्तर्यामी है और सर्वत्र व्याप्त है। इस पर हरिण्यकश्यपु ने कहा कि वह खम्भे में हैं तो बालक बोला हां। इस पर वह दैत्य राजा ने खम्भे पर मारना प्रारम्भ कर दिया। तभी भगवान नरसिंह खम्भा फाड़ कर बाहर आए और उन्होंने हरिण्यकश्यपु का वध कर दिया।  

नरसिंह जयंती का व्रत 

नरसिंह जयंती का व्रत करने से सभी दुखों का अंत होता है और भगवान की कृपा बनी रहती है। नरसिंह जयंती के दिन प्रातः स्नान कर भगवान का ध्यान करना चाहिए। साथ ही हवन इत्यादि में गंगा जल का प्रयोग करना चाहिए। 

पूजा का शुभ मुहूर्त 

शाम को पूजा का शुभ मुहूर्त 4:13 से 6:50 तक है। 

पारण का समय 

नरसिंह चतुर्दशी व्रत के पारण का समय अगले दिन 29 अप्रैल रविवार को सुबह 6.37 के बाद है। 

नरसिंह जयंती का महत्व 

नरसिंह जयंती का व्रत से सभी दुख दूर होते हैं और भगवान की कृपा बनी रहती है। नरसिंह अवतार में भगवान ने आधा मनुष्य और आधा शेर का रूप धारण किया था। इस दिन व्रत और पूजन से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। नरसिंह जयंती के दिन भगवान नरसिंह के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। इससे देवी लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है। 

-प्रज्ञा पाण्डेय 

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