बसंत पंचमी पर मनाया जाता था एक माह का मदनोत्सव

Basant Panchami
Creative Commons licenses

मदनोत्सव काम कुंठाओं से मुक्त होने का प्राचीन उत्सव है, जिसमें प्रेम को शारीरिक सुख से ज्यादा मन की भावना से जोड़ा गया है। मदनोत्सव पर पत्नी अपने पति को अति सुंदर मदन यानी कामदेव का प्रतिरूप मानकर उसकी पूजा करती है।

बसंत में प्रेम ,मस्ती और मादकता की खुशबू के आधार पर प्राचीन समय से वसन्तोत्सव को मदनोत्सव का रूप प्रदान किया गया एवं मदनोत्सव को कामदेव एवं रति की उपासना का पर्व माना गया है। यही वजह है कि वसंत पंचमी पर सरस्वती उपासना के साथ-साथ रति और कामदेव की उपासना के गीत भारत की लोक शैलियों में आज भी मिलते हैं।

मदनोत्सव काम कुंठाओं से मुक्त होने का प्राचीन उत्सव है, जिसमें प्रेम को शारीरिक सुख से ज्यादा मन की भावना से जोड़ा गया है। मदनोत्सव पर पत्नी अपने पति को अति सुंदर मदन यानी कामदेव का प्रतिरूप मानकर उसकी पूजा करती है। हमारे यहां काम को दैव स्वरूप प्रदान कर उसे कामदेव के रूप में मान्यता दी गयी है। क्रोध में भगवान शिव ने ‘काम’ को भस्म कर दिया। जब उन्हें सत्य का भान हुआ, तो उसे ‘अनंग’ रूप में पुनः जीवित किया इसी वजह से ‘काम’ को साहचर्य उत्सव का दर्जा मिला। जब तक काम मर्यादा में रहता है, उसे भगवान की विभूति माना जाता है और मर्यादा छोड़ देता है तो आत्मघाती बन जाता है और उस समय शिव का तीसरा नेत्र (विवेक) उसे भस्म कर देता है। बताया जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही कामदेव एवं रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था तभी से यह दिन वसन्तोत्सव एवं मदनोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। माना जाता है इस दिन विद्या एवं संगीत की देवी माँ सरस्वती का अवतरण हुआ और इस दिन पहली बार कृष्ण ने सरस्वती की पूजा की थी इस लिए बसंतपंचमी को सरस्वती की पूजा की जाती है। 

मदनोत्सव का वर्णन कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में किया है। ‘ऋतुसंहार’ के छठे सर्ग में कालिदास ने बसंत का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि इन दिनों कामदेव भी स्त्रियों की मदमाती आंखों की चंचलता में, उनके गालों में पीलापन, कमर में गहरापन और नितंबों में मोटापा बनकर बैठ जाता है। काम से स्त्रियां अलसा जाती हैं। मद से चलना, बोलना भी कठिन हो जाता है। टेढ़ी भौंहों से चितवन कटीली जान पड़ती है।

इसे भी पढ़ें: चार शुभ योग में 26 जनवरी को मनाई जायेगी बसंत पंचमी

संस्कृत साहित्य के नाटक चारुदत्त में ‘कामदेवानुमान उत्सव’ की चर्चा है। इसमें कामदेव का जुलूस निकाला जाता था। भवभूति के मालती माधव में मदनोत्सव मनाने का उल्लेख है जिसके मध्य में कामदेव का मंदिर बनाया जाता था।

‘मृच्छकटिकम्’ नाटक में भी बसंत सेना इसी प्रकार के जुलूस में भाग लेती नज़र आती है । रत्नावली’ में मदन पूजा का विस्तार से वर्णन है। ‘हर्षचरित’ में भी मदनोत्सव का वर्णन मिलता है। संस्कृत के ‘कुट्टनीमतम्’ में गणिका और वेश्याओं के साथ मदनोत्सव मनाने का वर्णन है। भविष्य पुराण में बसंत काल में कामदेव और रति की मूर्तियों की स्थापना और उनकी पूजा-अर्चना का वर्णन है। भगवान श्रीकृष्ण एवं कामदेव को मदनोत्सव का अधिदेवता माना गया हैं। कामदेव के आध्यत्मिक रूप को वैष्णवों ने कृष्ण का अवतार भी माना है, जिन्होंने रति के रूप में 16 हज़ार पत्नियों के साथ महारास किया था।

कामदेव के पंचशर शब्द, स्पर्श,रूप, रस एवं गंध प्रकृति संसार में अभिसार के लिये अग्रसर करते हैं।

वसन्तोत्सव एवं मदनोत्सव एक महीने का उत्सव होता था जिसमें युवक-युवतियाँ मन पसन्द अपना जीवन साथी चुनते थे और जिन्हें समाज पूरी मान्यता प्रदान करता था। प्राचीन भारत में मदनोत्सव के समय रानी सर्वाभरण भूषिता होकर पैरों को रंजित करके अशोक वृक्ष पर बायें पैर से हल्के से आघात करतीं थीं और अशोक वृक्ष पर पुष्प खिल उठते थे। चारों ओर बसंत और कामोत्सव की दुंदुभी बज उठती। मदनोत्सव की परंपरा का प्रचलन हर्षवर्धन के बाद तक सातवीं-आठवीं शताब्दी तक मनाये जाने का पता चलता हैं। मदनोत्सव मनाने का स्वरूप वर्तमान में बीते समय की परंपरा बनगया है परंतु शांतिनिकेतन में आज भी यह ‘दोलोत्सव’ के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है।

हमारी प्राचीन साहित्यिक कृतियों के साथ-साथ मूर्ति कला,चित्रकला,स्थापत्य कला के मध्यमों से भी कामदेव वर्णित किये गये हैं। राधा-कृष्ण के प्रेम,रास,वसन्तोत्सव एवं होली चित्रों की मोहकता लुभाती हैं। खजुराहो, कोणार्क जैसे मंदिरों पर पूरा कामशास्त्र मूर्तियों में झलकता हैं। कहीं कोई फूहड़ता नहीं है ,सब कुछ सहज,सरल होकर जीवन में काम की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रतिपादित करते हैं। मदन,रतिनायक, पुष्प धन्वा कामदेव के अन्य प्रमुख प्रचलित नाम हैं। वात्सायन का कामसूत्र ग्रंथ न केवल जीवन में काम के महत्व को अत्यंत शिष्ट रूप में निरूपण करता है वरन दुनिया के लिए महत्वपूर्ण भारतीय धरोहर है।

- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

1-F-18, आवासन मंडल कॉलोनी, कुन्हाड़ी

कोटा, राजस्थान

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़