Rama Ekadashi 2025: रम्भा एकादशी व्रत से जीवन में आती है सुख-समृद्धि

रम्भा एकादशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है, इस व्रत को रखने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। रम्भा एकादशी के दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और रात में जागरण कर भजन-कीर्तन करते हैं।
रम्भा एकादशी, जिसे रम्भा एकादशी या कार्तिक कृष्ण एकादशी भी कहते हैं, भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। दीपावली से पहले आने वाली यह एकादशी सबसे खास मानी गई है। इसमें माता लक्ष्मी के पूजन का खास महत्व है, क्योंकि विष्णुप्रिया का एक नाम रम्भा भी है तो आइए हम आपको रम्भा एकादशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें रम्भा एकादशी के बारे में
रम्भा एकादशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है, इस व्रत को रखने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। रम्भा एकादशी के दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और रात में जागरण कर भजन-कीर्तन करते हैं। इस शुभ अवसर पर लक्ष्मी नारायण जी की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही मनचाहा वरदान पाने के लिए रम्भा एकादशी का व्रत रखा जाता है। रम्भा एकादशी व्रत करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही साधक पर लक्ष्मी नारायण जी की कृपा बरसती है। यह व्रत दीवाली के पास होता है, इसलिए इसे दीवाली एकादशी भी कहा जाता है।
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रम्भा एकादशी का शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, रम्भा एकादशी के लिए जरूरी कार्तिक कृष्ण एकादशी तिथि का प्रारंभ 16 अक्टूबर दिन गुरुवार को सुबह 10 बजकर 35 मिनट से हो रहा है। इस तिथि का समापन 17 अक्टूबर दिन शुक्रवार को सुबह 11 बजकर 12 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर रम्भा एकादशी 17 अक्टूबर शुक्रवार को है। रम्भा एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त 04:42 ए एम से 05:33 ए एम तक है। इस समय में स्नान करना अच्छा होता है। रम्भा एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त 11:42 ए एम से दोपहर 12:28 पी एम तक है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा सुबह 06:22 ए एम से लेकर सुबह 10:40 ए एम के बीच कर सकते हैं। उस दिन राहुकाल 09:14 ए एम से 10:40 ए एम तक है और इस समय में कोई शुभ कार्य न करें।
रम्भा एकादशी के पारण का समय
पंडितों के अनुसार रम्भा एकादशी के व्रत का पारण 18 अक्टूबर शनिवार को होगा। उस दिन पारण का समय सुबह में 06:23 ए एम से लेकर 08:40 ए एम तक है। उस दिन द्वादशी तिथि के समापन का समय दोपहर में 12 बजकर 18 मिनट पर है। पारण का समय: एकादशी के अगले दिन, द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण (व्रत खोलना) किया जाता है। पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अनिवार्य है।
ब्राह्मण भोजन और दान
शास्त्रों के अनुसार पारण से पहले किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं, अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान करें। दान-दक्षिणा के बाद सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत खोलें।
रम्भा एकादशी पर ये न खाएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी पर चावल, दाल, अनाज, नमक और तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन) का सेवन पूर्णतः वर्जित होता है। आप फल, दूध, शकरकंद, या सिंघाड़े के आटे से बनी सात्विक चीजें चढ़ा सकते हैं।
जानें रम्भा एकादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था कि रम्भा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सहस्र अश्वमेध यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है। यह व्रत धन, वैभव और समृद्धि प्रदान करता है। रम्भा एकादशी का व्रत दशमी तिथि की संध्या से ही शुरू हो जाता है और द्वादशी तिथि तक चलता है।
दशमी तिथि से ही कर लें तैयारी
सूर्यास्त के बाद अन्न-जल त्याग: दशमी की शाम को सूर्यास्त से पहले केवल सात्विक भोजन करें। सूर्यास्त के बाद भोजन (अन्न) ग्रहण न करें। रात को भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लें।
रम्भा एकादशी पर ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार प्रातःकाल स्नान और संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्वच्छ और पीले या सफेद वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु का स्मरण करें और श्रद्धापूर्वक व्रत का संकल्प लें। पूजा के स्थान को साफ करके एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। इस पर भगवान विष्णु (या उनके वामन रूप) और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का गंगाजल से अभिषेक करें। उन्हें चंदन का तिलक लगाएं और पीले फूल या गेंदे की माला अर्पित करें। धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। भोग में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें। घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम और श्रीमद्भगवद्गीता के 11वें या 12वें अध्याय का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
रम्भा एकादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा भी है खास
पुराणों में रम्भा एकादशी को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं। एक समय की बात है एक मुचुकुंद नाम का राजा था। उसकी पुत्री का नाम चंद्रभागा था, जिसका विवाह चंद्रसेन के बेटे शोभन से हुआ। एक दिन शोभन ससुराल आया। रम्भा एकादशी से एक दिन पहले राजा मुचुकुंद ने पूरे नगर में यह घोषणा करा दी कि कोई भी व्यक्ति रम्भा एकादशी के दिन भोजन ग्रहण नहीं करेगा, जिसे सुनकर उनका दामाद परेशान हो गया है, तब उसने अपनी पत्नी से कहा कि ''वह बिना भोजन के जीवित नहीं रह सकता है।'' यह सुनने के बाद उसकी पत्नी ने कहा कि ''आप कहीं और चले जाइए। यदि यहां रहेंगे तो आपको इस व्रत नियम का पालन करना ही होगा।'' तब शोभन ने कहा कि ''जो भाग्य में होगा वो देखा जाएगा और उसने रम्भा एकादशी का व्रत रखा, लेकिन उसे बहुत तेज से भूख लग गई, जिससे वह व्याकुल हो उठा। वहीं, जब रात्रि जागरण का समय आया तो वह बहुत दुखी हुआ और सुबह तक उसके प्राण निकल गए। उसका अंतिम संस्कार हुआ और चंद्रभागा मायके में ही रहने लगी।
रम्भा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ। मुचुकुंद नगर का एक ब्राह्मण एक दिन शोभन के नगर में गया, जहां पर उसकी मुलाकात उसकी पत्नी से हुई, जिसने पूरा हाल बताया। उसने पूछा कि ''आपको ऐसा नगर कैसे मिला?'' शोभन ने उसे रम्भा एकादशी के पुण्य प्रभाव के बारे में बताया। उसने कहा कि ''यह नगर अस्थिर है, आप चंद्रभागा से इसके बारे में बताना''। वह ब्राह्मण अपने घर गया और अगले दिन चंद्रभागा को पूरी बात बताई। चंद्रभागा उस ब्राह्मण के साथ शोभन के नगर के लिए निकल पड़ी। रास्ते में मंदराचल पर्वत के पास वामदेव ऋषि के आश्रम में वे दोनों गए। वहां वामदेव ने चंद्रभागा का अभिषेक किया। मंत्र और एकादशी व्रत के प्रभाव से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और उसको दिव्य गति मिली। उसके बाद वह अपने पति शोभन के पास गई। उसने चंद्रभागा को अपनी बाईं ओर बिठाया। उसने अपने पति को एकादशी व्रत का पुण्य प्रदान किया, जिससे उसका नगर स्थिर हो गया। उसने बताया कि ''व्रत के पुण्य प्रभाव से यह नगर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा।'' उसके बाद दोनों सुखपूर्वक उस नगर में रहने लगे।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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