अचला एकादशी व्रत में स्नान-दान का है विशेष महत्व

Achala Ekadashi
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अचला एकादशी पर मीन राशि में चंद्र और गुरु की युति से गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा, इस दिन आयुष्मान योग भी बन रहा है। व्रत, पूजा और शुभ कार्यों के लिए शुभ है। भगवान विष्णु की पूजा के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ तिथि माना गया है।

आज अचला एकादशी है, अचला एकादशी का व्रत भक्तों के लिए विशेष फलदायी होता है, तो आइए हम आपको अचला एकादशी का महत्व एवं पूजन विधि के बारे में बताते हैं। ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष के दिन आने वाली एकादशी को अचला एकादशी कहा जाता है। इस साल यह एकादशी 26 मई को पड़ रही है। अचला एकादशी को भद्रकाली एकादशी, अचला एकादशी, और जलक्रीड़ा एकादशी भी कहा जाता है। अचला  एकादशी के दिन व्रत रखने से पुण्य और सम्मान मिलता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा से भक्त को सुखमय जीवन मिलता है। इस व्रत को करने से भक्तों को धन-सम्पदा मिलती है। इसे करने से सुख की देवी खुश रहती हैं और भक्त को धनवान बनाती हैं, इसी वजह से इस एकादशी को अचला एकादशी कहा जाता है।

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आज की अचला एकादशी है खास 

अचला एकादशी पर मीन राशि में चंद्र और गुरु की युति से गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा, इस दिन आयुष्मान योग भी बन रहा है। व्रत, पूजा और शुभ कार्यों के लिए शुभ है। भगवान विष्णु की पूजा के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ तिथि माना गया है। 

अचला एकादशी है पुण्यदायक 

अचला एकादशी पुण्य देने वाली पवित्र तिथि है। इस दिन व्रत रखने से भक्त को पापों से भी मुक्ति मिल जाती है। अचला एकादशी का व्रत रखने से जीवन में चली आ रही पैसों की परेशानी से राहत मिलती है। इसे करने से अगले जन्म में व्यक्ति धनी घर में पैदा होता है।

अचला एकादशी व्रत में ऐसे करें पूजा 

पुराणों में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात में भगवान का स्मरण करके सोना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः उठकर मन के सभी विकारों को दूर कर दें और नहाने के बाद भगवान विष्णु की अराधना करें। पूजा में श्रीखंड चंदन, तुलसी पत्ता, गंगाजल एवं मौसमी फलों को प्रसाद के रूप में चढ़ाएं। व्रत रखने वाले को दूसरों की बुराई, झूठ, छल-कपट से दूर रहना चाहिए। जो भक्त किसी वजह से व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें एकादशी के दिन चावल नहीं रखना चाहिए। जो भक्त एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करते हैं, उन पर भगवान विष्णु की खास कृपा बनी रहती है।

प्रेत बाधा को दूर करती है अचला एकादशी

पुराणों में भगवान विष्णु की कृपा की भी चर्चा की गयी है। पद्मपुराण में कहा गया है कि अचला एकादशी व्रत रखने से इंसान को प्रेत योनि में जाकर कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। प्रेत योनि से मुक्ति देने वाली इस एकादशी का नाम है अचला एकादशी।

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अचला एकादशी का है विशेष महत्व

पंडितों की मान्यता है कि गंगा नदी के किनारे पितरों को पिंडदान देने से जो फल मिलता है वही फल, अचला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। अचला एकादशी के व्रत का जो फल मिलता है वह कुंभ में केदारनाथ या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में सोने के दान करने के समान है।

अचला एकादशी व्रत से जुड़ी कथा

बहुत पहले महीध्वज नाम के एक धर्मात्मा राजा थे। इन राजा का छोटा भाई छोटा भाई वज्रध्वज पापी था। इसने एक रात को उठकर अपने बड़े भाई महीध्वज को मार दिया। इसके बाद महीध्वज के शरीर को पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। धर्मात्मा राजा की अकाल मौत के कारण धर्मात्मा राजा को प्रेत योनि में जाना पड़ा। राजा प्रेत के रूप में पीपल पर रहने लगे और उस रास्ते में आने जाने वालों को तरह-तरह से परेशान करने लगे।

एक दिन उस तरफ से धौम्य ॠषि गुजर रहे थे। ऋषि ने जब प्रेत को देखा तो अपनी तपस्या से उसका सब हाल जान लिया। ॠषि ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के बारे में सोचा और प्रेत को पीपल के पेड़ से उतार कर और परलोक विद्या का उपदेश देने लगे। उसी दिन ज्येष्ठ महीने की एकादशी तिथि थी। ऋषि ने अचला एकादशी का व्रत किया था और एकादशी के पुण्य को राजा को दे दिया। इस पुण्य से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गए और दिव्य रूप धारण कर स्वर्ग चले गए।

अचला एकादशी व्रत में करें पीपल एवं तुलसी की पूजा 

अचला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ-साथ तुलसी मां और पीपल के पेड़ की पूजा करना फलदायी होता है। पंडितों के अनुसार तुलसी और पीपल में क्रमश: मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए दोनों पौधों की पूजा करने से हर समस्या से छुटकारा मिलने के साथ सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अगर कोई जातक किसी कारणवश इस दिन व्रत नहीं रख पा रहा है, तो वो भगवान विष्णु के साथ तुलसी और पीपल की पूजा जरूर करें। इससे उसे लाभ मिलेगा।

ऐसे करें तुलसी के पौधे और पीपल की पूजा

अपरा एकादशी के दिन सुबह उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान आदि करके साफ-सुथरे कपड़े पहन लें। इसके बाद घर में मौजूद तुलसी के पौधे को जल चढ़ाएं। इसके साथ ही पुष्प, माला, सिंदूर, लाल चुनरी, सोलह श्रृंगार, मिठाई आदि भोग में खिलाने के साथ घी का दीपक जला दें। इसके बाद तुलसी के पौधे की परिक्रमा करें। तुलसी के पौधे की पूजा करने के बाद पीपल के पेड़ की विधिवत तरीके से पूजा करें। जल अर्पित करने के साथ दीपक आदि जलाकर परिक्रमा भी करें।

एकादशी तिथि पर स्नान व दान की परंपरा का है खास महत्व 

अचला एकादशी पर पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गरीबों व जरूरतमंद को दान देना भी अच्छा माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख-समृद्धि का वास होता है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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