Ashwin Vinayak Chaturthi 2025: आश्विन विनायक चतुर्थी व्रत से साधक को मिलती है अपार सफलता

Ashwin Vinayak Chaturthi 2025
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शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व के दौरान इस साल एक अद्भुत संयोग बन रहा है जब विनायक चतुर्थी का व्रत भी पड़ रहा है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है और नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ गणपति की आराधना का विशेष महत्व है।

आज आश्विन विनायक चतुर्थी व्रत है, सनातन धर्म में चतुर्थी तिथि का खास महत्व है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। इस दिन भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाती है और इस व्रत के प्रभाव से सभी कामों में सफलता मिलती है तो आइए हम आपको आश्विन विनायक चतुर्थी व्रत के महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें आश्विन विनायक चतुर्थी व्रत के बारे में 

शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व के दौरान इस साल एक अद्भुत संयोग बन रहा है जब विनायक चतुर्थी का व्रत भी पड़ रहा है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है और नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ गणपति की आराधना का विशेष महत्व है। पंडितों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं। नवरात्रि में गणेश जी की पूजा करने से देवी मां भी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। इस खास दिन पर कुछ विशेष प्रकार के दीपक जलाने से गणेश जी और माता रानी दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 

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हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता माना गया है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की आराधना के बिना अधूरी मानी जाती है। हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है, जिसे विनायक चतुर्थी कहा जाता है। इनमें से आश्विन मास की विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखते हैं, गणपति बप्पा की पूजा करते हैं और मोदक का भोग लगाते हैं। शास्त्रों के अनुसार आश्विन विनायक चतर्थी व्रत से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

आश्विन विनायक चतुर्थी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विनायक चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, ज्ञान तथा समृद्धि का देवता माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और घर-परिवार में सुख-शांति आती है। विशेष रूप से इस दिन मोदक का भोग लगाने का महत्व है क्योंकि यह गणेश जी का प्रिय प्रसाद है। विनायक चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, ज्ञान तथा समृद्धि का देवता माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और घर-परिवार में सुख-शांति आती है। विशेष रूप से इस दिन मोदक का भोग लगाने का महत्व है क्योंकि यह गणेश जी का प्रिय प्रसाद है।

आश्विन विनायक से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का प्रिय मंत्र "ॐ गं गणपतयै नमः" का जाप करना शुभ होता है। पूजा के अंत में, गणेश जी की स्तुति करते हुए क्षमा याचना करें और सभी गलतियों के लिए माफ़ी मांगें। तामसिक चीजों से दूरी बनाए रखें और व्रत के दौरान सात्विक भोजन करें। 

आश्विन विनायक चतुर्थी व्रत पर ऐसे करें पूजा

पंडितों के अनुसार प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। गणेश जी को लाल वस्त्र, दूर्वा घास, सिंदूर और फूल अर्पित करें। धूप-दीप जलाकर गणेश जी की पूजा आरंभ करें। व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन उपवास करें। शाम के समय गणेश जी की आरती और कथा का पाठ करें। व्रत पूरा होने पर प्रसाद (मोदक, लड्डू, फल) का सेवन करें और परिवार में बांटें।पूजा के दौरान ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का 108 बार जाप करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। मंत्र का जाप करना विशेष फलदायी माना जाता है।

विनायक गणेश चतुर्थी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा भी है रोचक 

शास्त्रों के अनुसार विनायक चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। माता पार्वती ने शिव जी से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने के लिए कहा. शिव जी चौपड़ खेलने के लिए तैयार तो हो गए इ और इस खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी। भगवान शिव ने उस पुतले से कहा कि ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, इसलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?

उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती के बीच खेल का प्रारंभ हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और तीनों ही बार माता पार्वती जीत गईं. खेल समाप्त होने पर उस बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा, तो उस बालक ने पार्वती माता की जगह महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगते हुए कहा कि माता मुझसे अनजाने में ऐसा हुआ है।

बालक द्वारा माफी मांगने पर माता को दया आ गयी और उन्होंने कहा कि ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम्हारे सभी कष्ट दूर होंगे’ यह कहकर माता पार्वती चली गईं। एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, नागकन्याओं से भगवान गणेश के व्रत की विधि जानने के बाद बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। जिसके परिणामस्वरूप गणेश जी प्रसन्न हुए, उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा।

बालक ने कहा ‘हे विनायक! मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं, भगवान गणेश ने बालक को वरदान दे दिया। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंचा और उसने अपनी कथा भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से नाराज हो गई थीं, देवी को मनाने के लिए भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती की नाराजगी दूर हो गई और वो स्वयं भगवान शिव से मिलने पहुंच गईं, तब भगवान शंकर ने माता पार्वती को इस व्रत के बारे में बताया। यह सुनकर माता पार्वती के मन में अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया, व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वती जी से मिलने चले आए। तभी से ये व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है।

आश्विन चतुर्थी व्रत के दिन इन मंत्रों का करें उच्चारण 

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

इसके बाद पंचोपचार कर भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा करें। पूजा के समय भगवान गणेश को मोदक और दूर्वा अवश्य भेंट करें। इस समय गणेश चालीसा का पाठ और गणेश मंत्र का जप करें। पूजा का समापन गणेश जी की आरती से करें। दिनभर उपवास रखें। संध्याकाल में चंद्र पूजा कर फलाहार करें।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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