गुरु पूर्णिमा पर गुरु का पूजन करने से होता है कल्याण
वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। आज के दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का भी अध्ययन करना चाहिए।
यह आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है जिसमें गुरु की पूजा का विधान है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था।
इस दिन हमें अपने गुरुजनों के चरणों में श्रद्धा अर्पित कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। इस दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर ब्राह्मणों सहित 'गुरु परम्परा सिद्धयर्थं व्यासपूजा करिष्ये' संकल्प करके श्रीपर्गी वृक्ष की चौकी पर तत्सम धौतवस्त्र फैलाकर उस पर प्राग पर (पूर्व से पश्चिम) और उदग पर (उत्तर से दक्षिण) गन्धादि से बारह बारह रेखाएं बनाकर व्यास पीठ निश्चित करें तथा दसों दिशाओं में अक्षत छोड़कर दिग् बंधन करें। तत्पश्चात ब्रह्म, ब्रह्मा, परावर शक्ति, व्यास, शुकदेव, गौडपाद, गोविन्द स्वामी और शंकराचार्य के नाम मंत्र से आवाह्न आदि पूजन करके अपने दीक्षा गुरु (माता, पिता, पितामह, भ्राता आदि) की देवतुल्य पूजा करें। वेद व्यास जी ने वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन किया है। इसलिए वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। आज के दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का भी अध्ययन करना चाहिए। वेद व्यास ने ही वेद ऋचाओं का संकलन कर वेदों को चार भागों में बांटा था। उन्होंने ही महाभारत, 18 पुराणों व 18 उप पुराणों की रचना की थी जिनमें भागवत पुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी शामिल है।
प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धाभाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति और सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर कृतार्थ होता था। परिवार में अपने से जो भी बड़ा है, उसे गुरुतुल्य ही समझना चाहिए। जैसे माता, पिता, बड़ा भाई, बड़ी बहन आदि। इस दिन स्नान और पूजा आदि से निवृत्त होकर उत्तम वस्त्र धारण करके गुरु को वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणीमात्र के लिए कल्याणकारी व मंगल करने वाला होता है।
प्राचीन काल से चले आ रहे इस पर्व का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में यह दिन गुरु को सम्मानित करने का होता है। इस दिन मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं। इस दिन विद्यार्थियों को चाहिए कि अपने गुरु को वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इस दिन केवल गुरु ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
- शुभा दुबे
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