''31 अक्तूबर'': बड़ी घटना पर प्रकाश डालती फिल्म

प्रीटी । Oct 24, 2016 12:24PM
इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म ''31 अक्तूबर'' को देखकर ऐसा लगा कि निर्माता को फिल्म शुरू करने की जल्दी होगी और निर्देशक को फिल्म खत्म करने की जल्दी थी।

इस सप्ताह प्रदर्शित फिल्म '31 अक्तूबर' को देखकर ऐसा लगा कि निर्माता को फिल्म शुरू करने की जल्दी होगी और निर्देशक को फिल्म खत्म करने की जल्दी थी। यह फिल्म 1984 के सिख विरोधी दंगों पर आधारित है। इस विषय पर कई फिल्में अब तक हिंदी के अलावा अन्य कई भाषाओं में बन चुकी हैं लेकिन पूरी सच्चाई दिखाने से सभी ने परहेज किया। फिल्म जब इतिहास की किसी महत्वपूर्ण घटना पर बनाई जाए तो जरूरत होती है अच्छी तरह रिसर्च की जाए लेकिन इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं दिखता। एक सवाल यह भी उठता है कि दंगों के इतने साल बाद यह विषय जनता के सामने एक बार फिर क्यों पेश किया गया? राजनीतिक रूप से संवेदनशील फिल्म होने के कारण ही फिल्म कभी सेंसर बोर्ड तो कभी कोर्ट में अटकती रही और संघर्ष के बाद पर्दे पर आ सकी।

फिल्म की कहानी दिल्ली के देविंद्र सिंह (वीर दास) और उसके परिवार को केंद्र में रखकर लिखी गई है। देविंद्र दिल्ली विधुत प्रदाय संस्थान डेसू में काम करता है। उसकी कॉलोनी में देविंद्र को हर कोई चाहता है क्योंकि देविंद्र हर किसी के सुख-दुख का साथी है। वह अपनी पत्नी तेजिंदर कौर (सोहा अली खान), दो बेटे और एक छोटी बेटी के साथ रहता है। परिवार की जिंदगी में नया मोड़ 31 अक्टूबर को उस वक्त आता है जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख सुरक्षाकर्मियों द्वारा हुई निर्मम हत्या की खबर के बाद दिल्ली की कई कॉलोनियों में हिसंक दंगे और मारकाट शुरू हो जाती है। ऐसे में सभी साथी देविंद्र से दूरी बना लेते हैं। चारों तरफ दंगों का आलम होता है और हिंसक भीड़ देविंद्र के घर की तरफ बढ़ ही रही होती है कि उसके दो हिंदू दोस्त आकर उसे बचा लेते हैं।

अभिनय के मामले में सभी कलाकारों ने पूरी तरह निराश किया। वीर दास और सोहा अली खान दोनों ही अपने-अपने किरदारों में अनफिट रहे। सोहा अली खान दंगों के दौरान तीन छोटे बच्चों के साथ डरी सहमी सिख महिला के किरदार को ठीक ढंग से नहीं निभा पाईं। अन्य सभी कलाकार सामान्य रहे। फिल्म का गीत संगीत सामान्य है। निर्देशक के रूप में शिवजी की कहानी पर पकड़ नहीं रही और इंटरवेल के बाद फिल्म की गति थोड़ी धीमी भी लगी। कुछ सीन जरूरत से ज्यादा लंबे हो गये हैं जिन पर कैंची चलाई जा सकती थी।

कलाकार- सोहा अली खान, वीर दास, दीपराज राणा, नागेश भोसले, विनीत शर्मा, लक्खा लखविंदर सिंह।

निर्देशक- शिवाजी लोटन पाटिल।

प्रीटी

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