जानिए क्या है फोबिया और इसके कारण

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मिताली जैन । Aug 17 2020 8:57AM

फोबिया डर का ही एक स्वरूप है, लेकिन फिर भी यह उससे काफी अलग है। दरअसल, जब व्यक्ति को किसी चीज से डर लगता है तो वह उस हद तक नहीं होता कि व्यक्ति अपने डर का सामना ही ना कर पाए या फिर डर उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी को प्रभावित नहीं करता।

खुशी, गम, हंसना, रोना और डर यह सभी मनुष्य के मन के भीतर छिपे हुए भाव है, जो परिस्थिति के अनुसार सामने आते हैं। लेकिन जब कोई मनोभाव अति की सीमा तक पहुंच जाए तो वह एक मनोविकार बन जाता है। ऐसा ही एक मनोविकार है फोबिया। जिसमें व्यक्ति को विशेष वस्तुओं, परिस्थितियों या क्रियाओं से डर लगने लगता है। यानि उनकी उपस्थिति में घबराहट होती है हालांकि वह वास्तव में उतनी खतरनाक नहीं होती, जितना फोबिया से ग्रस्त व्यक्ति मान बैठता है। तो चलिए विस्तार से जानते हैं इस बीमारी व उसके कारणों के बारे में−

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डर से है अलग

मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि फोबिया डर का ही एक स्वरूप है, लेकिन फिर भी यह उससे काफी अलग है। दरअसल, जब व्यक्ति को किसी चीज से डर लगता है तो वह उस हद तक नहीं होता कि व्यक्ति अपने डर का सामना ही ना कर पाए या फिर डर उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी को प्रभावित नहीं करता। जबकि फोबिया में ऐसा देखने को मिलता है। इसमें व्यक्ति के मन का डर उस पर इतना हावी हो जाता है कि उस अपने काम−काज और सामान्य जीवन में बहुत परेशानी होती है। इतना ही नहीं, व्यक्ति की चिन्ता, घबराहट और परेशानी यह जानकर भी कम नहीं होती कि दूसरे लोगो के लिए वही परिस्थिति खतरनाक नहीं है। व्यक्ति को यह पता रहता है कि उसके डर का कोई तार्किक आधार नहीं है फिर भी वह उसे नियंत्रित नही कर पाता। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है कि अगर किसी व्यक्ति को लिफ्ट से फोबिया है तो वह अन्य व्यक्तियों को लिफ्ट में आते−जाते देखेगा, लेकिन फिर भी वह खुद कभी लिफ्ट से नहीं जाएगा। भले ही उसे एक सीढ़ी ऊपर जाना हो या फिर बारह−तेरह फ्लोर चढ़ने हों। वह सीढ़ी का ही इस्तेमाल करेगा। 

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कारण

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, फोबिया के कई कारण हो सकते हैं। मसलन, बचपन का कोई बुरा अनुभव उनके दिमाग में इस कदर बैठ जाता है कि फिर वह फोबिया बन जाता है। उदाहरण के तौर पर, अगर कभी बचपन में खेलते−खेलते कोई बच्चा नीचे गिरा हो तो हो सकता है कि आगे चलकर उसे ऊंचाई का फोबिया हो जाए और वह कभी भी ऊंची जगह पर जाने से बचेगा। इसके अलावा कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि यदि माताओं में ये रोग हो तो बच्चों में इसके पाए जाने की संभावना बहुत होती है क्योंकि बच्चे अपनी माता को देखकर उन लक्षणों को सीख लेते है। वहीं, आत्मविश्वास की कमी और आलोचना का डर भी इस रोग के कारण बन सकते हैं।

मिताली जैन

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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