मगरमच्छ का रोचक साक्षात्कार

Interesting interview of crocodile

दोस्तों, जानवरों की दुनिया भी निराली है। इनके बारे में हमने बहुत कुछ सुना व पढ़ा है, इनकी कई कहानियां भी हमने सुनी हैं और इन्हें चित्रों में या रूबरू देखा भी है। जानवरों की बातें सुनने और उनके बारे में जानने में सच में बहुत आनंद आता है।

दोस्तों, जानवरों की दुनिया भी निराली है। इनके बारे में हमने बहुत कुछ सुना व पढ़ा है, इनकी कई कहानियां भी हमने सुनी हैं और इन्हें चित्रों में या रूबरू देखा भी है। जानवरों की बातें सुनने और उनके बारे में जानने में सच में बहुत आनंद आता है और हमारा यही आनंद दोगुना हो सकता है यदि जानवर खुद अपने बारे में बताते हैं- आइये, जानवरों से बातचीत का आनंद उठाते हैं जाने-माने पत्रकार अमित के साथ जो जानवरों में विशेष दिलचस्पी रखते हैं और पिछले कुछ दिनों से चिड़ियाघर में जानवरों के साथ बातचीत में व्यस्त हैं।

यहां सबसे पहले आपके लिए प्रस्तुत है अमित के साथ मगरमच्छ की खास बातचीत जो उन्होंने चिड़ियाघर में एक जलाशय के किनारे मिट्टी पर सुस्ताते विशाल मगरमच्छ के साथ की। विशाल शरीर वाले मगरमच्छ को देखकर हालांकि अमित एक बार कुछ ठिठका किन्तु फिर हिम्मत जुटाते हुए उसने अपनी बातचीत शुरू की।

अमित ने ताली बजाकर मगरमच्छ का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और फिर मगरमच्छ से बोला-हैलो! मगरजी जी, कैसे हैं आप? मैं पत्रकार अमित क्या आपके बारे में कुछ जान सकता हूं।

अमित की बात सुनकर मगरमच्छ ने अपनी आंखें झपकाईं तो अमित समझ गया कि मगरमच्छ उससे बातचीत के लिए तैयार है।

अमित: धन्यवाद मगरमच्छ जी, चलिए बातचीत शुरू करते हैं, सबसे पहले यह बताइये कि आप कहां रहते हैं और आपका भोजन क्या है? 

मगरमच्छ: अमित जी, हम मगरमच्छ एशिया सहित ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका की कई नदियों, झीलों तथा तालाबों में रहते हैं। भोजन में हम छोटे केकड़ों, मछलियों और मेंढकों को तो खाते ही हैं कछुओं, हिरन तथा जंगली भैंसे जैसे बड़े जानवर को भी शिकार बना लेते हैं। हमारा पाचन तंत्र इतना मजबूत होता है कि हम पत्थर को भी पचा लेते हैं। पानी में हम शिकार को छलांग लगाकर या सरपट दौड़कर पकड़ सकते हैं और एक बात बताऊं मानव का भी हमारे पास आना खतरनाक होता है। अपना पेट भरने के लिए हम उन्हें भी खाते हैं। 

मगरमच्छ की बात सुनकर अमित घबराकर थोड़ा पीछे हट गया।

मगरमच्छ: डरिए नही अमित जी, यहां चिड़ियाघर में हम आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। यहां आप हमसे सुरक्षित हैं। 

अमित: थैंक गॉड! अच्छा मगरमच्छ जी, अपनी प्रजातियों के बारे में हमें कुछ बताएं, प्लीज?

मगरमच्छ: अमित जी, हमारी 23 प्रजातियां ज्ञात हैं जिनमें से कुछ खारे पानी तथा कुछ मीठे पानी में रहती हैं। घड़ियाल भी मगरमच्छ की ही प्रजाति हैं जो मीठे पानी में रहते हैं। 

खारे पानी वाले मगरमच्छ 23 फीट तक या उससे भी अधिक लंबे होते हैं तथा इनका वजन 400 से 1,000 किलोग्राम तक होता है। खारे पानी में इन्हें अपनी पूँछ को दाएँ-बाएँ हिलाते हुए तैरते देखा जा सकता है। इनका सारा शरीर तो पानी के अंदर रहता है, सिर्फ नथुने और आँखें ही पानी के बाहर दिखती हैं। पानी के अलावा ये जमीन पर भी चल सकते हैं। इनकी सूँघने, देखने और सुनने की शक्ति मीठे पानी में रहने वाले मगरमच्छों या घड़ियालों से तेज होती है। ये मगरमच्छ लगभग 100 सालों तक जीवित रहते हैं। 

अमित: और मीठे पानी वाले मगरमच्छों की क्या विशेषताएं हैं?

मगरमच्छ: मीठे पानी वाले मगरमच्छ और घड़ियाल भारत के उप-महाद्वीप में पाए जाते हैं। इनकी लंबाई करीब 13 से 19 फीट तक तथा वजन 300 से 500 किलाग्राम तक होता है। ये भारत के मीठे पानी के दलदलों, झीलों और नदियों में पाये जाते हैं। शिकार को ये पानी में डुबा-डुबाकर इधर-उधर उछालकर टुकड़े-टुकड़े करके खाते हैं। इन मगरमच्छों का जीवन तकरीबन 70 वर्ष तक होता है।

अमित: बहुत खूब, मगरमच्छ जी! अब मुझे बताएं कि पर्यावरण को बनाए रखने में भी आपका कोई योगदान है क्या?

मगरमच्छ: जी हां! हम मगरमच्छ नदियों, झीलों और उनके आस-पास के इलाकों की सड़ी-गली मछलियों और जानवरों को खाकर पानी को गंदा होने से बचाते हैं। कैटफिश जैसी मछलियों का भी हम शिकार करते हैं। कैटफिश वो मछलियां हैं जो कार्प और तिलापिया जैसी मछलियाँ को खाती हैं जिन्हें बड़े पैमाने पर इंसानों के खाने के लिए व्यापार के लिए पकड़ा जाता है।

अमित: अच्छा मगर जी। अब एक बात बताएं। जैसा कि मैंने कई मैग्जीनों में आपकी पिक्चर्स देखी हैं उनमें आप जबड़े खोले हुए होते हैं। ऐसा क्यो? 

मगरमच्छ: अमित जी, ऐसा हम अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए करते हैं। 

अमित: मगरमच्छ जी, हम इंसानों की दुनिया में आपके रोने को लेकर भी एक मुहावरा प्रसिद्ध है जिसे तब उपयोग किया जाता है जब लोग दिखावे का रोना रोते हैं। लोग कहते हैं कि घड़ियाली आंसू मत बहाओ। क्या सचमुच घड़ियाल दिखावे का रोना रोते हैं?

मगरमच्छ: नहीं अमित जी ऐसा नहीं है। मगरमच्छ या घड़ियाल जब किसी जीव जन्तु को खाते हैं तो कुछ ही देर बाद उसके आंसू बहने लगते हैं। इंसानों को लगता है कि हम शिकार के बाद उस जानवर के मरने का दुःख व्यक्त कर रहे हैं। किन्तु ऐसा नहीं है। यह हमारी नेचुरल प्रक्रिया है हम जब शिकार को निगलते हैं तो हमारे पेट में अमाशय से उस जीव को पचाने के लिए पाचक द्रव्यों का रिसाव शुरू हो जाता है जिससे हमारे शरीर में लवणों की वृद्धि होने लगती है, हमारे लिए इन अतिरिक्त लवणों का शरीर से बाहर निकलना आवश्यक होता है, इन्हें निकालने के लिए शरीर ने व्यवस्था की हुई है। हमारा शरीर आंखों के कोनों में खुलने वाली ग्रन्थियों के जरिए इन अतिरिक्त लवणों को बाहर निकालता है। जिन्हें ही मगरमच्छ के आंसू कहा जाता है।

अमित: वाह! मगर जी, बहुत अच्छा लगा आपके बारे में जानकर। क्या आप अपने बारे में हमसे अपनी कुछ और खासियतें शेयर करना चाहेंगे?

मगरमच्छ: जरूर अमित जी, घड़ियाल के बारे में मैं आपको बताना चाहूंगा कि घड़ियालों के 80 दांत होते हैं जो उनके जीवनकाल में 50 बार गिर जाने पर भी दोबारा निकल सकते हैं। इसके अलावा एक बात यह कि हम मगरमच्छ अपनी जीभ को मुंह से बाहर नहीं निकाल सकते। हम मगरमच्छों की एक प्रॉब्लम भी है यह कि हमारी आंखों में एक चमकदार पदार्थ होता है जो रात के समय चमकता है जिसके कारण रात के समय हम शिकार नहीं कर पाते, हमारा शिकार दूर से ही हमारी चमकती आंखों को देखकर सचेत हो जाता है।  

अमित: जी, मगरमच्छ जी। बहुत अच्छा लगा आपसे बातचीत करके। जल्दी ही आपसे फिर मुलाकात होगी नए सवालों के साथ। बहुत-बहुत शुक्रिया। 

अमृता गोस्वामी

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