उफ्फ, ये बच्चे (लधु कथा)
बाबा ने आश्वासन दिया, तो सोनू चुप होकर गोदी से उतर गया और अपनी मां के साथ व्यस्त हो गया। बाबा जी नाश्ता करके अखबार पढ़ने लगे; पर दोपहर में जब वे खाना खा रहे थे, तो उसने फिर जिद पकड़ ली।
चार वर्षीय सोनू को आज न जाने क्या हुआ, सोकर उठते ही जिद पकड़ ली- बाबा, बज्जी..।
बाबा जी नहा-धोकर पूजा कर रहे थे। उन्होंने गोद में मचलते सोनू को पुचकारा- हां, हां, चलेंगे। शाम को बज्जी चलेंगे।
- नहीं, अभी चलो।
- अभी बाजार बंद है। शाम को चलेंगे।
- मैं कुल्फी खाऊंगा।
- ठीक है।
बाबा ने आश्वासन दिया, तो सोनू चुप होकर गोदी से उतर गया और अपनी मां के साथ व्यस्त हो गया। बाबा जी नाश्ता करके अखबार पढ़ने लगे; पर दोपहर में जब वे खाना खा रहे थे, तो उसने फिर जिद पकड़ ली। अब तो वह उनके कंधे पर ही चढ़ गया- बाबा, बज्जी..।
- तुझे कहा था न कि शाम को चलेंगे। तुझे भी ले चलेंगे और मुन्नी को भी। चल नीचे बैठकर रोटी खा। देख, तेरी मां ने बैंगन का भुर्ता कितना अच्छा बनाया है।
- नहीं बाबा, मुन्नी दीदी को मत ले जाना।
- क्यों ?
- वो मुझे मारती है।
- ठीक है, उसे नहीं ले चलेंगे। बस...?
सोनू मान गया। बाबा जी खाने के बाद सो गये। दो घंटे बाद उठकर जब वे चाय पी रहे थे, तो सोनू फिर वही राग गाने लगा- बाबा बज्जी..।
बाबा जी ने चाय पीकर हाथ में थैला लिया और बहू को आवाज लगायी- मैं सोनू के साथ बाजार जा रहा हूं। कुछ लाना हो तो बताओ?
बहू ने कहा- दो किलो आलू ले आना।
बाबा चले, तो सोनू फिर मचला- दीदी को भी तो ले चलो..।
- क्यों, सुबह तो तू कह रहा था कि वो मुझे मारती है, इसलिए उसे नहीं ले चलेंगे?
- मारती है तो क्या हुआ, मेरे साथ खेलती भी तो है। उसे भी ले चलो। मैं उसके बिना नहीं जाऊंगा।
बाबा जी ने सिर पर हाथ रख लिया- उफ्फ, ये बच्चे।
- विजय कुमार
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