सतर्कता जरूरी है (बच्चों के लिए कहानी)

सुंदरवन में शेर, चीता जैसे विशाल खूंखार जानवरों के साथ ही हिरन, खरगोश जैसे छोटे-छोटे जानवर भी रहा करते थे। छोटे जानवरों को हर समय बड़े जानवरों से खतरा रहता था।

 सुंदरवन में शेर, चीता जैसे विशाल खूंखार जानवरों के साथ ही हिरन, खरगोश जैसे छोटे-छोटे जानवर भी रहा करते थे। छोटे जानवरों को हर समय बड़े जानवरों से खतरा रहता था। उनके माता-पिता ने अपने बच्चों को सिखाया हुआ था कि खतरनाक जानवरों से कैसे बचा जाता है। छोटे जानवरों के बच्चे खतरनाक जानवरों की आहट पाते ही भाग कर अपने घरों, घोंसलों, पहाड़ियों या घनी झाड़ियों में छुपकर सुरक्षित हो जाया करते थे।

सुंदर वन में ही टुकटुक नाम का एक बंदर भी रहता था। कुछ ही दिन हुए वह शहर से वहां आया था। टुकटुक शहर से एक विशेष गंध वाला स्प्रे लेकर आया था। टुकटुक बड़ा ही नटखट और शरारती था।  एक दिन टुकटुक एक ऊंचे पेड़ पर बैठा सुस्ता रहा था। तभी उसे पेड़ के नीचे से किसी शेर की गरजना सुनाई दी। टुकटुक ने पेड़ के नीचे शेर को देखा तो उसे शरारत सूझी। टुकटुक ने शहर से लाए स्प्रे को पेड़ पर बैठे-बैठे ही पेड़ से नीचे छिड़क दिया। टुकटुक देखकर दंग रह गया कि उस स्प्रे की गंध से शेर बहुत तेजी से वहां से भाग खड़ा हुआ। टुकटुक को यह सब देखकर बड़ा मजा आया। अब उसे आसपास कहीं भी कोई बड़ा जानवर दिखता तो वह उस स्प्रे की गंध वहां फैलाकर उसे वहां से भगा देता।

सुंदरवन के छोटे जानवरों से टुकटुक बड़ा प्रेम करता था, उनके साथ ही वह सारा-सारा दिन खेलता, कूंदता-फांदता और मौज-मस्ती करता था। एक बार टुकटुक अपने मित्रों के साथ सुंदरवन के एक खुले मैदान में खेल रहा था कि तभी उसने एक विशाल तेंदुए को वहां आते देखा। तेंदुए को वहां आते देखकर उसके सभी मित्र खेल छोड़कर भाग खड़े हुए।

टुकटुक अपने मित्रों को निडरता से खेलते देखना चाहता था। तेंदुए के डर से अपने मित्रों का इधर-उधर भागना टुकटुक को पसंद नहीं आया। उसे तेंदुए पर बड़ा गुस्सा आया। उसने अपनी जेब से शहर से लाया स्प्रे निकाला और वहां छिड़क दिया। स्प्रे की गंध आते ही तुरंत ही वह विशाल तेंदुआ वहां से भागता नजर आया। टुकटुक अब उस स्प्रे की विशेषता को जान चुका था।

टुकटुक के मित्र आसपास छुपे हुए टुकटुक को ऐसा करते देख रहे थे। यह सब देखकर वे आश्चर्यचकित थे। वे सभी अपनी-अपनी जगहों से निकलकर भागते हुए टुकटुक के पास आ गए और उससे उस स्प्रे के बारे में पूछने लगे। टुकटुक अकड़ते हुए बोला-दोस्तों, यह जादुई स्प्रे है, बड़े जानवरों से अपने को बचाने के लिए। इस स्प्रे के रहते अब हम सभी निर्भय होकर खेल सकते हैं, बस जहां भी हम खेलना चाहेंगे इस स्प्रे को आसपास छिड़क देंगे और फिर जब तक इसकी गंध रहेगी, हम खतरे से बचे रहेंगे। टुकटुक के दोस्तों को इस अनोखे स्प्रे के बारे में जानकर बहुत हैरानी हुई। स्प्रे को आजमाने के लिए उन्होंने मैदान के चारों और उसका छिड़काव किया और खेलने-कूदने में व्यस्त हो गए। छोटे जानवरों ने पाया कि स्प्रे की गंध कुछ अजीब तो थी पर छोटे जानवरों पर उसका कोई बुरा प्रभाव नहीं था। स्प्रे को छिड़के अभी कुछ देर ही हुई थी कि दूर से एक शेर की गरजना सुन वे कांप उठे। टुकटुक ने अपने मित्रों को सांत्वना देते हुए कहा-डरो मत मित्रों, हम सुरक्षित है। छोटे जानवरों ने देखा शेर उनके इलाके के पास से गुजरा तो पर दूर से ही बुरा सा मुंह बनाते हुए उलटे पैरों लौट गया। छोटे जानवरों को अब टुकटुक के स्प्रे पर विश्वास हो गया था। वे सब अब रोज ही अपने खेलने के मैदान के आसपास उस स्प्रे का छिड़काव करते और खेलते-कूदते मस्त रहते थे।

कई दिन बीत गए। धीरे-धीरे बड़े जानवरों का भय छोटे जानवरों के दिमाग से समाप्त होता जा रहा था। बड़े जानवरों से डरने की अब उनकी आदत ही नहीं रही थी। एक दिन वे सभी जानवर मैदान में खेलने-कूदने में मस्त होकर यह भी भूल ही चुके थे कि टुकटुक अभी तक उनके साथ नहीं आया था और उनके इलाके के आसपास उस विशेष स्प्रे का छिड़काव भी नहीं हो पाया था। वे सभी निर्भय होकर रोज की तरह ही खेल रहे थे कि तभी अपने आसपास कई सारे बड़े जानवरों की आवाज सुनकर वे भौंचक्के रह गए। बड़े जानवर उनके काफी नजदीक आ चुके थे। छोटे जानवरों के पास इतना समय नहीं रह गया था कि वे भागकर सुरक्षित स्थान तक जा पाते। बड़े जानवरों को सामने पाते ही वे जितना तेज भाग सकते थे भागे किन्तु कई सारे छोटे जानवर बड़े जानवरों का शिकार बन गए थे और कई घायल होकर भागते हुए अपने को छुपा पाए।

टुकटुक जब तक वहां पहुंचा बड़े जानवर कई छोटे जानवरों का काम तमाम कर वहां से जा चुके थे। टुकटुक मन ही मन बहुत दुःखी हुआ। उसे समझ में आ गया था कि मैंने इन जानवरों के दिमाग से बड़े जानवरों का भय समाप्त करके ठीक नहीं किया। स्प्रे वाला उसका आइडिया स्थाई नहीं था बल्कि इन जानवरों ने खूंखार जानवरों से बचने के लिए जो तरीका अपने माता-पिता से जो सीखा था वही सही था।

टुकटुक को अपनी भूल का बहुत पछतावा हो रहा था। अगले दिन उसने उसके जो भी मित्र बच पाए थे उनसे माफी मांगी और कहा- दोस्तों! हम गलत थे। सही तो यही है कि खतरों के प्रति हमें हमेशा, हर समय सतर्क रहना चाहिए। छोटे जानवरों ने आंखों में आंसू भरे हुए टुकटुक की हां में हां मिलाई और तब से फिर कभी भी उन्होंने सतर्कता नहीं छोड़ी।

अमृता गोस्वामी

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