गर्भपात पर अमेरिकी उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘क्रांतिकारी’, अन्य मामलों पर पड़ेगा असर : विशेषज्ञ

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अलिटो ने लिखा है ‘‘निष्कर्ष यह है कि संविधान का अर्थ अदालत के इतिहास से अधिक महत्वपूर्ण है, इसलिए मिसाल न्यायिक अधिकार के रो के दुरुपयोग के अंतहीन पालन को मजबूर नहीं करती है।’’

(मॉर्गन मैरिएटा, राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स लोवेल) बोस्टन (अमेरिका)| (द कन्वरसेशन) गर्भपात के अधिकार के लिए 50 साल के संवैधानिक संरक्षण को उलटने का अमेरिकी उच्चतम न्यायालय का फैसला 200 पेज से अधिक लंबा है।

मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, लोवेल में राजनीति विज्ञानी और प्रकाशन गृह पालग्रेव मैकमिलन में वार्षिक स्कॉटस श्रृंखला के संपादक मॉर्गन मैरिएटा ने अदालत की राय और फैसलों का अध्ययन किया।

उन्होंने इस पर अपने विचार साझा किए हैं। इस फैसले का क्या मतलब है? यह एक क्रांतिकारी फैसला है। सिर्फ गर्भपात के लिए नहीं, बल्कि संविधान के तहत अधिकारों की प्रकृति पर चल रही बहस के लिए भी। यह संविधान को पढ़ने से लेकर मूल पाठ को पढ़ने तक, बड़े पैमाने पर बदलाव का संकेत देता है।

अदालत ने जीवंत संविधान के सिद्धांत को दृढ़ता से खारिज कर दिया है, जो तर्क देता है कि दस्तावेज की का अर्थ बदल जाता है क्योंकि अमेरिकियों के विश्वास और मूल्य बदलते हैं।

बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान उच्चतम न्यायालय में प्रचलित जीवंत दृष्टिकोण का अर्थ है कि गर्भपात, गोपनीयता और समान-लिंग विवाह सहित विषयों पर अतिरिक्त अधिकार समय के साथ उभर सकते हैं। जीवंत संविधान को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के निर्णय के माध्यम से अद्यतन किया जाता है, जो यह निर्धारित करते हैं कि सार्वजनिक मूल्य कब बदल गए हैं, और इसलिए नए अधिकार सामने आते हैं।

मौलिकता, जो कि रो के विचारों को खारिज करने वाले न्यायाधीशों द्वारा लिया गया दृष्टिकोण है, जीवित संविधान को खारिज कर देता है। मौलिक दृष्टिकोण में, संविधान तब तक स्थिर रहता है जब तक कि संशोधन द्वारा आधिकारिक रूप से परिवर्तित नहीं किया जाता है।

यह जनता की स्वीकृति के बिना अपने आप विकसित नहीं होता है। न्यायाधीशों की भूमिका पाठ के मूल सार्वजनिक अर्थ को निर्धारित करना है, लेकिन अन्य निर्णयों को चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व पर छोड़ना है।

गर्भपात के संबंध में डॉब्स का निष्कर्ष स्पष्ट है,‘‘संविधान प्रत्येक राज्य के नागरिकों को गर्भपात को विनियमित करने या प्रतिबंधित करने से नहीं रोकता है। रो और केसी ने उस अधिकार पर दावा किया। अब हम उन फैसलों को खारिज करते हैं और उस अधिकार को लोगों और उनके चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस करते हैं।’’

अदालत ने 1997 से ग्लक्सबर्ग मानक पर विचार किया है, जिसमें कहा गया है: अमेरिकियों के पास वे अतिरिक्त अधिकार हैं जो ‘‘राष्ट्र के इतिहास और परंपरा में गहराई से निहित हैं।’’

भविष्य में, संविधान के तहत कौन से अधिकार मौजूद हैं, यह निर्धारित करने के लिए अदालत इतिहास के पाठ पर भरोसा कर सकती है। क्या एक भ्रूण अब एक व्यक्ति है? यह राज्य फैसला करेगा। गर्भपात पर बहस के दो मुख्य प्रश्न हैं: क्या गर्भपात का अधिकार है? और क्या एक भ्रूण एक व्यक्ति है? यहां तक कि अगर एक अधिकार मौजूद है, तो यह उस व्यक्ति की हत्या को उचित नहीं ठहराता है। इस फैसले का अन्य मुद्दों पर क्या असर होगा?

रो के फैसले को पलटने में, बहुमत की राय अदालत के पिछले फैसलों को उलटने के लिए एक नया और कमजोर मानक पेश करती है। सीधे शब्दों में कहें तो भविष्य में मिसालों को पलटना आसान होगा। तीस वर्षों से केसी के फैसले जिसने 1992 में रो के मूल फैसले को बरकरार रखा को मिसाल माना गया है।

अलिटो ने लिखा है ‘‘निष्कर्ष यह है कि संविधान का अर्थ अदालत के इतिहास से अधिक महत्वपूर्ण है, इसलिए मिसाल न्यायिक अधिकार के रो के दुरुपयोग के अंतहीन पालन को मजबूर नहीं करती है।’’ अधिकारों के प्रश्न जो संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं हैं।

इसलिए अब राज्य विधायिकाओं के हाथों में हैं और भविष्य में स्थानीय लोकतंत्र पर बहुत अधिक निर्भर होंगे। सामाजिक आंदोलन, अभियान और चुनाव, सभी राज्य स्तर पर, अमेरिकी अधिकारों का मुख्य युद्धक्षेत्र बन जाएगा।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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