संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से औपचारिक रूप से अलग हुआ अमेरिका
वाशिंगटन। अमेरिका ने आज खुद को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से औपचारिक रूप से अलग करने के बाद कहा कि वह ऐसी ‘‘पाखंडी’’ संस्थाओं से उपदेश नहीं सुनेगा। अमेरिका के इस कदम पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस का कहना है कि उन्हें अच्छा लगता अगर अमेरिका संस्था का हिस्सा बना रहता। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) से अमेरिका के अलग होने के फैसले की घोषणा संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत निक्की हेली ने की। हेली ने इजराइल के खिलाफ भेद-भावपूर्ण रवैया अपनाने और उसपर ठीक से ध्यान नहीं देने के लिए परिषद की आलोचना भी की।
उन्होंने दावा किया कि मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले परिषद में लगातार सेवा दे रहे हैं और उसमें निर्वाचित हो रहे हैं। हेली ने कहा कि दुनिया कs सबसे अमानवीय शासन निगरानी से बच रहे हैं, परिषद राजनीतिकरण कर रही है और सकारात्मक मानवाधिकार नियमों वाले देशों को बकरा बना रही है ताकि संस्था में मौजूद उल्लंघनकर्ताओं से ध्यान भटकाया जा सके।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, जैसा कि हमने एक साल पहले कहा था, यदि कोई प्रगति नहीं हुई तो हम इससे नाता तोड़ लेंगे, अमेरिका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से औपचारिक रूप से अलग हो रहा है। हेली ने हालांकि स्पष्ट किया कि यह मानवाधिकारों के लिए प्रतिबद्धता से पीछे हटना नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘इससे उलट, हमने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि हमारी प्रतिबद्धता हमें ऐसी पाखंडी और अहंकारी संस्था का हिस्सा बने रहने की अनुमति नहीं देती जो मानवाधिकारों का मजाक बनाती हो।
गाजा और वेस्ट बैंक में फिलस्तीनियों द्वारा कथित उल्लंघनों के संबंध में इजराइल सरकार के प्रस्तावों का हवाला देते हुए हेली ने इजराइल के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने और उसपर ठीक से ध्यान नहीं देने के लिए परिषद की आलोचना की। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने आरोप लगाया कि परिषद गलत करने वालों का बचाव करती है और जिन्होंने कोई गलती नहीं की है उनपर झूठे आरोप लगाकर उल्लंघनों को बढ़ावा देती है।
घोषणा के वक्त हेली के साथ मौजूद पोम्पिओ ने कहा, ‘‘हमें कोई संदेह नहीं है कि कभी इस परिषद के लिए बेहतर दृष्टिकोण हुआ करता था। लेकिन आज, हमें ईमानदारी से मानने की जरूरत है कि.... मानवाधिकार परिषद मानवाधिकारों की रक्षा उस तरह से नहीं कर रही, जैसी उसे करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ एक नजर देखने भर से पता चल जाता है कि परिषद अपने लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रही है। पोम्पिओ ने कहा, परिषद के सदस्यों में बेहद खराब और क्रूर मानवाधिकार रिकॉर्ड वाली तानाशाही सरकारें शामिल हैं, जैसे चीन, क्यूबा और वेनेजुएला।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव गुतारेस ने परिषद से अमेरिका के बाहर जाने के बाद संस्था का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें ठीक लगता अगर अमेरिका साथ रहता। उन्होंने एक बयान में कहा, मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र के विस्तृत मानवाधिकार ढांचे का हिस्सा है जो ‘‘पूरी दुनिया में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनके संरक्षण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
गुतारेस के प्रवक्ता स्टेफान दुजारिक ने कहा, ‘‘महासचिव को बेहतर लगता अगर अमेरिका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में रहता। वहीं अमेरिका के शीर्ष सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम का स्वागत किया है। सीनेटर मार्को रूबियो का कहना है कि यह बेहद हास्यास्पद है कि वेनेजुएला, चीन और क्यूबा जैसे देशों को इस परिषद की सदस्यता देने पर विचार भी किया जाये।
लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद इस कदम का विरोध कर रहे हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के राजदूत डैनी डनोन ने अमेरिका की घोषणा का स्वागत किया है।
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