Make In India अभियान की राह में रोड़े अटका रहा China, Foxconn India से अपने इंजीनियर वापस बुलाये, iPhone का उत्पादन होगा प्रभावित

xi jinping
ANI

हम आपको बता दें कि भारत में तैयार होने वाले मोबाइल फोनों के अधिकांश घटक (components) अब भी चीन से ही आयात होते हैं। यदि इन आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा आती है, तो देश की इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण नीति को बड़ा झटका लग सकता है।

भारत में तेज़ी से उभरते मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को चीन की ओर से उठाए गए हालिया कदमों से झटका लग सकता है। हम आपको बता दें कि चीन न केवल भारत को निर्यात की जाने वाली महत्वपूर्ण मशीनरी की डिलीवरी में देरी कर रहा है, बल्कि एप्पल की अनुबंध निर्माता कंपनी फॉक्सकॉन समेत कई भारतीय फैक्ट्रियों से अपने नागरिकों जिनमें अधिकतर इंजीनियर हैं, उनको वापस बुलाने का निर्देश भी दिया है। इसके साथ ही ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले मैग्नेट के निर्यात पर भी चीन ने रोक लगा दी है, जिससे भारत में उत्पादन प्रभावित हो सकता है। ऐसा लग रहा है कि भारत सरकार के मेक इन इंडिया अभियान की राह में रोड़े अटकाने के लिए चीन ने कमर कस ली है।

हम आपको बता दें कि फॉक्सकॉन की भारत स्थित फैक्ट्रियां जोकि तमिलनाडु और कर्नाटक में हैं, वहां कई चीनी विशेषज्ञ कार्यरत हैं, जोि उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण जैसे अहम क्षेत्रों में काम करते हैं। हालांकि इनकी संख्या कुल कर्मचारियों का 1% से भी कम है, लेकिन इनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। बताया जा रहा है कि चीन द्वारा इन कर्मचारियों को वापस बुलाने से भारत में iPhone उत्पादन के शेड्यूल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। हम आपको यह भी बता दें कि फॉक्सकॉन ही नहीं, बल्कि भारत में मौजूद शीर्ष चीनी स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां जैसे ओप्पो और वीवो भी इस स्थिति से चिंतित हैं। इन कंपनियों के पास सीमित संख्या में चीनी अधिकारी हैं, लेकिन उन्हें आशंका है कि इस कदम के बाद आगे और भी प्रतिबंध लग सकते हैं।

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हम आपको बता दें कि भारत में तैयार होने वाले मोबाइल फोनों के अधिकांश घटक (components) अब भी चीन से ही आयात होते हैं। यदि इन आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा आती है, तो देश की इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण नीति को बड़ा झटका लग सकता है। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस पूरे घटनाक्रम को भारत-चीन संबंधों में जारी व्यापारिक तनाव और वीज़ा प्रतिबंधों से भी जोड़ा जा रहा है। सूत्रों का मानना है कि चीन इस प्रकार की कार्रवाई कर "जैसे को तैसा" नीति अपना रहा है, क्योंकि कई चीनी अधिकारियों को भारत में व्यापार वीज़ा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। उधर, उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि वह सरकार को इस मुद्दे पर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने जा रहे हैं ताकि यह मामला किसी नए संकट में तब्दील न हो जाए।

हम आपको बता दें कि भारत सरकार भी इस घटनाक्रम को लेकर सतर्क है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि एप्पल जैसी कंपनियां अब भारत को वैकल्पिक उत्पादन केंद्र के रूप में विकसित कर रही हैं। एप्पल का भारत से निर्यात अब कई गुना बढ़ चुका है और सरकार नहीं चाहती कि इसमें कोई रुकावट आए। सूत्रों का यह भी कहना है कि चीन पहले भी भारत में बनने जा रहे कुछ प्रमुख संयंत्रों के लिए आवश्यक मशीनों की आपूर्ति में बाधा डाल चुका है, खासकर जब उन्हें लगता है कि इससे चीन में उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

हम आपको यह भी बता दें कि भारतीय वाहन उद्योग के प्रतिनिधिमंडल को दुर्लभ खनिज (चुंबक) के आयात में तेजी लाने के लिए चीन जाने में कठिनाई हो रही है क्योंकि उसे अब भी चीन के वाणिज्य मंत्रालय से बैठक के लिए औपचारिक मंजूरी का इंतजार है। मई में लगभग 40-50 उद्योग अधिकारियों को वीजा मिल गया है, लेकिन वे अब भी इस मामले पर बैठक के लिए चीनी अधिकारियों से औपचारिक मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। हम आपको बता दें कि घरेलू वाहन उद्योग ने दुर्लभ खनिज की कमी को देखते हुए चीन से इसका आयात बढ़ाने के लिए सरकार से भी समर्थन मांगा है। एक सूत्र ने कहा, ''चीनी अधिकारियों ने अब तक कोई समय नहीं दिया है, इसलिए प्रतिनिधिमंडल अभी तक रवाना नहीं हुआ है। स्थिति खराब है क्योंकि अभी तक हमें एक भी लाइसेंस जारी नहीं किया गया है।’’ सूत्र ने कहा कि अगर स्थिति ऐसी ही रही, तो घरेलू वाहन उद्योग को इसकी कमी का सामना करना पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन का काफी नुकसान होगा। घरेलू वाहन उद्योग को यह कदम इसलिए उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है क्योंकि चीन की सरकार ने इस साल चार अप्रैल से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों और चुंबक के निर्यात पर अंकुश लगा दिया है।

हम आपको बता दें कि चीन ने सात दुर्लभ पृथ्वी तत्वों और चुंबक के लिए विशेष निर्यात लाइसेंस अनिवार्य कर दिया है। चीन के पास चुंबक प्रसंस्करण की वैश्विक क्षमता के 90 प्रतिशत से अधिक पर नियंत्रण है। इसका इस्तेमाल वाहन, घरेलू उपकरणों और स्वच्छ ऊर्जा सहित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। इसकी महत्वपूर्ण सामग्रियों में समैरियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम और ल्यूटेटियम शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक मोटर, ब्रेकिंग प्रणाली, स्मार्टफोन और मिसाइल प्रौद्योगिकी में होता है। हम आपको बता दें कि भारत ने पिछले वित्त वर्ष में अपने 540 टन चुंबक आयात का 80 प्रतिशत से अधिक चीन से मंगाया था। अब चीन द्वारा इसके निर्यात पर अंकुश का असर दिखने लगा है। मई 2025 तक, भारतीय कंपनियों के लगभग 30 आयात अनुरोधों को भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है, लेकिन इन्हें चीनी अधिकारियों की मंजूरी नहीं मिली है। इस वजह से कोई खेप नहीं आ पाई है।

बहरहाल, भारत में मैन्युफैक्चरिंग को वैश्विक स्तर पर एक वैकल्पिक केंद्र के रूप में उभरता देख चीन की प्रतिक्रिया रणनीतिक प्रतीत होती है। चीन के हालिया कदमों से स्पष्ट है कि वह भारत में अपने घटते प्रभाव और बढ़ते प्रतिस्पर्धी माहौल से असहज हो रहा है। भारत सरकार और उद्योग जगत के लिए यह समय सतर्कता, समन्वय और घरेलू आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने का है, ताकि इस प्रकार की बाहरी बाधाओं से देश की प्रगति पर विराम नहीं लगे।

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