‘Climate Change’ पहली बार आज से ठीक 70 साल पहले ‘वायरल’ हुआ था

Climate Change
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किसी 40 साल से कम उम्र के व्यक्ति के लिए उस दौर को याद करना मुश्किल होगा, जब कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ा था, फिर चाहे वह ‘ग्रीन हाउस गैस प्रभाव’ से हुआ हो या ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से, या ‘जलवायु परिवर्तन’ से हुआ अथवा अब ‘जलवायु संकट’ से, जो खबरों में नहीं था। आज से करीब 35 साल पहले 1988 में गर्मी का दौर लंबा चला और उस वक्त विश्व नेताओं ने इन मुद्दों पर चर्चा शुरू की थी।

हम बहुत सी चीजों के आदी हो गए हैं, जैसे जंगल की आग, जले हुए जानवरों की तस्वीरें, समुद्र में पिघलती बर्फ की सिल्लियां, दुनिया के नेताओं के वादे कि वे वैज्ञानिकों की ‘आखिरी मौका’ वाली चेतावनी पर ध्यान देंगे। किसी 40 साल से कम उम्र के व्यक्ति के लिए उस दौर को याद करना मुश्किल होगा, जब कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ा था, फिर चाहे वह ‘ग्रीन हाउस गैस प्रभाव’ से हुआ हो या ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से, या ‘जलवायु परिवर्तन’ से हुआ अथवा अब ‘जलवायु संकट’ से, जो खबरों में नहीं था। आज से करीब 35 साल पहले 1988 में गर्मी का दौर लंबा चला और उस वक्त विश्व नेताओं ने इन मुद्दों पर चर्चा शुरू की थी।

अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति उम्मीदवार (जो जल्द ही राष्ट्रपति बने) जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश कहते थे कि वह ग्रीन हाउस प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए ‘व्हाइट हाउस प्रभाव’ का इस्तेमाल करेंगे। ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने ‘पृथ्वी की प्रणाली के साथ’ बड़े प्रयोग को लेकर चेतावनी दी थी। उक्त घटना के 35 साल बीत गए हैं, लेकिन वास्ताव में उससे भी 35 साल और पहले, यानी 70 साल पहले, इसी महीने में वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड के बढ़ते स्तर के खतरे पर दुनिया में चर्चा शुरू हुई थी।

कार्बन डाई ऑक्साइड ऊष्मा को अवशोषित करता है, यह गैर विवादित तथ्य है। आयरिश वैज्ञानिक जॉन टिनडाल ने प्रदर्शित किया कि वातावरण में कार्बन के स्तर में वृद्धि अठारहवीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गई थी। वर्ष 1895 में स्वीडिश नोबेल पुरस्कार विजेता स्वांते अरहेनियस ने संकेत दिया कि सैकड़ों साल से मानव द्वारा तेल, कोयला और गैस जलाने की वजह से उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड वातावरण में जमा हो रहा है, जिससे इतनी ऊष्मा जमा हो सकती है जो टुंड्रा को पिघला सकती है और जमाने वाली सर्दियां इतिहास हो सकती हैं।

उनके इस कार्य को चुनौती दी गई, लेकिन उक्त विचार विभिन्न मौकों पर लोकप्रिय जर्नल में सामने आते रहे। वर्ष 1938 में अंग्रेज वाष्प इंजीनियर गाय कैलेंडर ने लंदन स्थित रॉयल सोसाइटी को बताया कि तामपान में वृद्धि हो रही है, लेकिन मई 1953 में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन की बैठक में कैलेंडर के समकालीन कनाडाई भौतिक शास्त्री गिलबर्ट प्लास ने वहां मौजूद वैज्ञानिकों से कहा कि संकट की शुरुआत हो चुकी है। प्लास ने कहा : मौजूदा सदी के दौरान बड़े पैमाने पर बढ़ी औद्योगिक गतिविधियोंकी वजह से वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड का बड़े पैमाने पर उत्सर्जन हो रहा है और जिससे प्रत्येक सदी में औसत तापमान में 1.5 डिग्री की दर से वृद्धि हो रही है।

प्लास के इस आकलन को एसोसिएटेड प्रेस और अन्य संवाद एजेंसियों ने प्रमुखता दी और पूरी दुनिया के अखबारों (दूरस्थ स्थित सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड तक में) में यह खबर प्रकाशित हुई। प्लास की चेतावनी उक्त साल 18 मई को न्यूजवीक में और 25 मई को टाइम में प्रकाशित हुई। वैज्ञानिकों में यह तथ्य निर्विवाद है कि पृथ्वी गर्म हो रही है, लेकिन प्लास द्वारा इसका संबंध कार्बन डाई ऑक्साइड से होने का सिद्धांत प्रतिस्पर्धी सिद्धांतों, जैसे कि कक्षीय कंपन या ‘सनस्पॉट’ गतिविधि के विपरीत व एकदम नया था। प्लास फोर्ड मोटर कंपनी के लिए काम करते हुए कार्बन डाई-ऑक्साइड के निर्माण के सवाल में दिलचस्पी लेने लगे थे।

प्लास ने 1950 के बाकी हिस्सों में तकनीकी और लोकप्रिय प्रकाशनों के साथ इस मुद्दे पर काम करना जारी रखा। वर्ष 1956 में उनका शोध-पत्र स्वीडिश वैज्ञानिक जर्नल ‘टेलस’ में ‘द कार्बन-डाई-ऑक्साइड थियोरी ऑफ क्लाइमेट चेंज’ शीर्ष से प्रकाशित हुआ। यह शोध पत्र अमेरिकी वैज्ञानिकों के बीच भी लोकप्रिय हुआ। इसका नतीजा रहा है कि प्लास कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के मुद्दे पर चर्चा के लिए बुलाई गई पहली अहम बैठक का हिस्सा थे। इस बीच, कार्बन-डाई-ऑक्साइड सिद्धांत को विज्ञान पत्रकारों द्वारा अधिक कवरेज मिलने लगा।

ऐसे ही विज्ञान पत्रकारों में से एक ने इस खोज को उस समय के प्रतिष्ठित यूनेस्को कुरियर में जगह दी और इसे वर्ष 1954 में आयरिश टाइम्स में भी प्रकाशित किया गया। उसी साल ब्रिटिश पत्रकारों ने भी इस खोज का उल्लेख करना शुरू किया। तब ‘न्यू साइंटिस्ट पत्रिका’ ने भी इसका उल्लेख किया था। उन्नीस सौ पचास का दशक समाप्त होते-होते यह स्थिति थी कि जो भी अखबार पढ़ता था उसे इस मूलभूत विचार की जानकारी थी। पिछली सदी के 50 और 60 के दशक में अमेरिकी, स्वीडिश, जर्मन और सोवियत वैज्ञानिक इस मुद्दे पर अध्ययन करते रहे। यहां तक कि वर्ष 1965 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भी कांग्रेस में दिए गए संबोधन में कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे का उल्लेख किया।

पिछली सदी के साठ के दशक के अंत में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की शुरुआत हुई। हालांकि, आशंकाएं अब भी बनी हुई थीं। उदाहरण के लिए, हवाई वेधशाला में कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर नापने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स कीलिंग ने अप्रैल 1969 में खुलासा किया कि उन्हें अपने व्याख्यान के शीर्षक ‘‘अगर जीवाश्म ईंधन से निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड मानव पर्यावरण में बदलाव कर रहा है तो इसके बारे में हम क्या कर सकते हैं?’’ को बदलकर ‘‘क्या जीवाश्म से निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड मानव पर्यावरण को बदल रहा है?’’

करने को कहा गया था। मेरे जैसे जलवायु इतिहासकारों के लिए, 1970 का दशक मॉडलिंग, अवलोकन और सोच का एक आकर्षक काल है, जिसने दशक के अंत तक एक आम सहमति बनाई कि आगे गंभीर समस्या है। वास्तव में प्लास ने ही इसके लिए प्रेरित किया था। प्लास ने जब इस मुद्दे पर बात की थी तब वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर 310 पार्ट पर मिलियन (पीपीएम) था जो अब 423 या इससे अधिक है। हर साल हम और तेल, कोयला और गैस जला रहे हैं, जिससे ग्रीन हाउस गैस का स्तर बढ़ रहा है और इससे अधिक ऊष्मा अवशोषित हो रही है। प्लास की चेतावनी करीब 100 साल पुरानी है और स्तर कहीं अधिक होगा। बहुत हद तक संभव है कि हम उस दो डिग्री सेल्सियस के स्तर को पार कर गए हों जिसे ‘सुरक्षित’ स्तर माना जाता है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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