उद्विकास के क्रम में मछली किस तरह से मानव में तब्दील हो गई

humans during evolution
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यह सुनना थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन इसका साक्ष्य हमारे जीन, शरीर-रचना और जीवाश्मों में मौजूद है। हम जंतुओं के एक ऐसे समूह से ताल्लुक रखते हैं जो जमीन पर रहने वाली ‘सार्कोप्टरिजिया’ हैं।

मानव उद्विकास के बारे में जब आप सोचते हैं, तब यह संभावना अधिक होती है कि आप प्राचीन काल में जंगलों में रहने वाले चिंपाजी या प्रारंभिक मानवों द्वारा गुफाओं की दीवारों पर उकेरी गई विशालकाय जंतुओं की कल्पना करें। लेकिन भालुओं, छिपकली,गुंजन पक्षी और डायनासोर के साथ-साथ हम मानव भी असल में एक तरह से मछलियां ही हैं। यह सुनना थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन इसका साक्ष्य हमारे जीन, शरीर-रचना और जीवाश्मों में मौजूद है। हम जंतुओं के एक ऐसे समूह से ताल्लुक रखते हैं जो जमीन पर रहने वाली ‘सार्कोप्टरिजिया’ हैं।

लेकिन उद्विकास के क्रम में हुए अत्यधिक परिवर्तन के कारण हमारा यह मौजूदा स्वरूप है। सार्कोप्टरिजिया या लोब-फ़िन मछलियाँ ऐसी मछलियाँ होती हैं, जिनके फ़िन (पर) केवल एक मुख्य हड्डी से उनके धड़ से जुड़े होते है। हम मछलियों को तैराकी करने में माहिर समझते हैं, लेकिन असल में उन्होंने यह क्षमता कम से कम पांच गुना चल कर विकसित की है। कुछ प्रजातियों ने सुविकसित पर का उपयोग कर इस दिशा में खुद को अधिक विकसित किया।

हमारे सार्कोप्टरिजिया पूर्वज ने स्थल पर आने से पहले फेफड़े और अन्य श्वसन तंत्र, अस्थियुक्त अंग और एक मजबूत मेरूदंड विकसित किये। यह अनुकूलन न सिर्फ जलीय परिवेश में उपयोगी साबित हुआ, बल्कि इससे हमारे पूर्वजों को रहने के लिए स्थल तलाशने में भी मदद मिली, जहां उन्होंने जीवन के लिए अनुकूलन किया। जल से स्थल पर आना रीढ़दार प्राणी के उद्विकास में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम था।

शायद इसकी शुरूआत हमलावरों से बचने के लिए हुई होगी, लेकिन हमारे पूर्वजों ने रहने के लिए जो जगह ढूंढी थी, वह पहले से काई,होर्सेटेल और फर्न जैसे पादपों से समृद्ध था। हम अकेले नहीं हैं: वर्तमान में मछलियों की 30,000 से अधिक प्रजातियां हैं, जिनमें से कुछ ही चल सकती हैं। सार्कोप्टरिजिया, कई तरह से अन्य प्रकार की मछलियों से अलग है। उदाहरण के लिए, हमारे पैरों में हड्डियों का सहारा है, जिनके ऊपर मांसपेशियां हैं और यह हमें जमीन पर चलने में मदद करती है।

इस अनुकूलन ने डेवोनियन काल (करीब 37.5 करोड़ वर्ष पूर्व) के अंत में हमारे जल से स्थल पर आने में उभयचरों (जल में और स्थल पर रहने वाले जीवों), स्तनधारियों, सरीसृप और पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी। चलने वाली सार्कोप्टरिजिया मछलियां या तो विलुप्त हो गईं या उनका उद्विकास इतना अधिक हो गया कि हम बाद के समय में उनकी पहचान मछली के रूप में नहीं कर सकें। इसका एक उदाहरण मडस्किपर मछली है।

यह मैंग्रोव वन के दलदली क्षेत्र में पायी जाती है और स्थल पर चलने के लिए अपने पर का इस्तेमाल करती हैं। एक अन्य उदाहरण चलने वाली कैटफिश है, जो जमीन पर चलने के लिए अपने पर का उपयोग करती है। एक बड़ा सवाल यह है कि चलने में सक्षम बनाने वाली मांसपेशी के विकास के लिए किस जीन ने अहम भूमिका निभाई होगी? इसका पता लगाने के लिए सियोल और न्यूयॉर्क के शोधार्थियों की एक टीम ने इस विषय पर गौर किया कि तंत्रिका में कौन सा जीन सक्रिय था, जो चुहिया, मुर्गी और स्केट (एक तरह की मछली) में पैर की मांसपेशियों को नियंत्रित करता है।

उन्होंने प्रेरक तंत्रिका में इसी तरह की जीन पद्धति का पता लगाया जो इन मांसपेशियों को काम करने में मदद करती है। हमारे पूर्वज शिकार करने, हमलावर जंतुओं से बचने के लिए दौड़ा करते थे। इसने हमारी शरीर-रचना को आकार दिया। कई अध्ययनों से यह प्रदर्शित हुआ है कि चलना और दौड़ना हमारी तंदुरूस्ती एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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