भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार पूरी तरह प्रभाव में नहीं आ सका है: अमेरिकी विशेषज्ञ

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अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा कि हालांकि वादों को पूरा करने के लिए उन समाधानों की जरूरत होगी जिनसे दोनों पक्ष अब तक दूर रहे हैं। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की आपूर्तिकर्ता कंपनी वेस्टिंगहाउस किसी दुर्घटना की स्थिति में सीमित जवाबदेही के टिकाऊ आश्वासन की अनुपस्थिति में भारत को बिक्री को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही। छोटे मॉड्यूलर रियेक्टर की आपूर्ति करने वाली अमेरिकी कंपनी हॉटलेक इंटरनेशनल भारत में कलपुर्जों का एक कारखाना चलाती है और देश में तथा पश्चिम एशिया में इन रियेक्टर की बिक्री की संभावनाओं को लेकर उत्सुक है, लेकिन इस बारे में बातचीत अभी शुरुआती स्तर पर है। टेलिस के मुताबिक असैन्य परमाणु करार को पूरा करने में बाइडन प्रशासन की रुचि और अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में विदेशी भागीदारी बढ़ने को लेकर भारत की दिलचस्पी को देखते हुए ‘‘(नरेन्द्र) मोदी सरकार के लिए अपनी परमाणु जवाबदेही समस्याओं को दूर करने का समय निकला जा रहा है, जो मोदी की अपनी ही पार्टी के कारण पैदा हुए अवरोधों से सामने आई थीं, जबकि उस समय वह इसका नेतृत्व नहीं कर रहे थे’’।

भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता होने के 18 साल से अधिक समय बाद भी बड़ी द्विपक्षीय साझेदारी के साथ-साथ इसकी पूरी क्षमता और वादे अभी तक मूर्त रूप नहीं ले सके हैं। एक शीर्ष अमेरिकी विशेषज्ञ ने यह दावा किया है। ‘टाटा चेयर फॉर स्ट्रेटेजिक अफेयर्स’ और प्रतिष्ठित ‘कार्नेगी एनडाऊमेंट फॉर इंटरनेशन पीस’ के वरिष्ठ शोधवेत्ता एशले जे टेलिस ने कहा कि भारत ने अभी तक उन बाधाओं को दूर नहीं किया है जो अमेरिका से परमाणु रिएक्टरों की खरीद को रोकती हैं, वहीं अमेरिका दूरदर्शिता के साथ नीति पर खरा नहीं उतर सका है। उन्होंने ‘कार्नेगी एनडाऊमेंट फॉर इंटरनेशन पीस’ के सोमवार को प्रकाशित मुखपत्र में लिखा कि 2005 में हुए असैन्य परमाणु समझौते को अंततः फलीभूत करने की अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की महत्वाकांक्षा भारत को अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों की बिक्री के साथ समाप्त नहीं हो सकती है।

उन्होंने कहा कि इसके बजाय, इसका लंबे समय से चली आ रहीं अमेरिकी नीतियों में संशोधन होने तक विस्तार करना चाहिए जो भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम के अस्तित्व को गहन तकनीकी सहयोग के लिए एक ऐसी बाधा बना रही हैं जिनसे पार पाना मुश्किल हो रहा है। टेलिस ने कहा, ‘‘जहां तक भारत की बात है तो वह परमाणु करार के लागू होने के दौरान की गईं लिखित प्रतिबद्धताओं के अनुरूप उन अवरोधों को लंबे समय से दूर नहीं कर पाया है जो अमेरिका से परमाणु रियेक्टरों की उसकी खरीद को रोक रहे हैं। जहां तक अमेरिका की बात है तो एक अलग ही तरह की चुनौती है कि वह दूरदर्शिता के साथ नीतियों पर खरा नहीं उतर रहा।’’ उन्होंने कहा कि बाइडन की सितंबर में हुई भारत यात्रा के बाद संयुक्त घोषणापत्र में कहा गया कि दोनों नेताओं ने परमाणु ऊर्जा में भारत-अमेरिका सहयोग को सुविधाजनक बनाने के अवसरों का विस्तार करने के लिए दोनों पक्षों की संबंधित संस्थाओं के बीच गहन विचार-विमर्श का स्वागत किया, जिसमें सहयोगात्मक रूप से अगली पीढ़ी के छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर की प्रौद्योगिकियों का विकास भी शामिल है।

अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा कि हालांकि वादों को पूरा करने के लिए उन समाधानों की जरूरत होगी जिनसे दोनों पक्ष अब तक दूर रहे हैं। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की आपूर्तिकर्ता कंपनी वेस्टिंगहाउस किसी दुर्घटना की स्थिति में सीमित जवाबदेही के टिकाऊ आश्वासन की अनुपस्थिति में भारत को बिक्री को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही। छोटे मॉड्यूलर रियेक्टर की आपूर्ति करने वाली अमेरिकी कंपनी हॉटलेक इंटरनेशनल भारत में कलपुर्जों का एक कारखाना चलाती है और देश में तथा पश्चिम एशिया में इन रियेक्टर की बिक्री की संभावनाओं को लेकर उत्सुक है, लेकिन इस बारे में बातचीत अभी शुरुआती स्तर पर है। टेलिस के मुताबिक असैन्य परमाणु करार को पूरा करने में बाइडन प्रशासन की रुचि और अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में विदेशी भागीदारी बढ़ने को लेकर भारत की दिलचस्पी को देखते हुए ‘‘(नरेन्द्र) मोदी सरकार के लिए अपनी परमाणु जवाबदेही समस्याओं को दूर करने का समय निकला जा रहा है, जो मोदी की अपनी ही पार्टी के कारण पैदा हुए अवरोधों से सामने आई थीं, जबकि उस समय वह इसका नेतृत्व नहीं कर रहे थे’’।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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