बाढ़ पीड़ितों के नाम पर चंदा जुटा कर Lashkar-e-Taiba अपनी ध्वस्त इमारतों को फिर से खड़ा करने में जुटा है

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ANI

हाल में पाकिस्तानी रेंजर्स और अधिकारियों की मौजूदगी में एलईटी कार्यकर्ता बाढ़ राहत शिविरों में तस्वीरें खिंचवाते नजर आए, ताकि “सेवा” का भ्रम बने। वास्तव में यह समूचा अभियान मुरिदके मुख्यालय के पुनर्निर्माण और अन्य क्षतिग्रस्त ठिकानों को फिर से खड़ा करने का जरिया है।

लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) जैसे प्रतिबंधित आतंकी संगठन का नया चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ है। भारतीय वायुसेना द्वारा 7 मई 2025 को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के मुरिदके स्थित इसके मुख्यालय को ध्वस्त करने के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने यह खुलासा किया है कि एलईटी ऑनलाइन और ऑफलाइन अभियानों के जरिए खुलेआम धन इकट्ठा कर रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन अभियानों को “बाढ़ पीड़ितों की मदद” जैसे मानवीय नारों की आड़ में चलाया जा रहा है। हम आपको बता दें कि यह वही तरीका है जिसे 2005 के पाकिस्तान/गिलगित-बाल्टिस्तान व पीओजेके भूकंप के दौरान जमात-उद-दावा ने अपनाया था और जुटाए गए चंदे का अधिकांश हिस्सा आतंकी ढांचे के निर्माण में झोंक दिया गया था।

सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, हाल में पाकिस्तानी रेंजर्स और अधिकारियों की मौजूदगी में एलईटी कार्यकर्ता बाढ़ राहत शिविरों में तस्वीरें खिंचवाते नजर आए, ताकि “सेवा” का भ्रम बने। वास्तव में यह समूचा अभियान मुरिदके मुख्यालय के पुनर्निर्माण और अन्य क्षतिग्रस्त ठिकानों को फिर से खड़ा करने का जरिया है। पाकिस्तान सरकार ने भी सार्वजनिक रूप से एलईटी और जैश-ए-मोहम्मद की सुविधाओं के पुनर्निर्माण के लिए धन देने की घोषणा की थी। 4 करोड़ पाकिस्तानी रुपये की औपचारिक मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है, जबकि कुल खर्च का अनुमान 15 करोड़ रुपये से अधिक है।

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भारतीय वायुसेना ने जिन तीन इमारतों को निशाना बनाया था, उनमें एक दो-मंजिला लाल रंग की इमारत हथियारों के भंडारण और कैडरों के ठहरने के काम आती थी, जबकि दो अन्य पीली इमारतें वरिष्ठ कमांडरों और प्रशिक्षण सुविधाओं के लिए थीं। इनके नष्ट होने के बाद आतंकी ढांचे को बहरावलपुर और फिर कसूर में स्थानांतरित कर दिया गया। अगस्त-सितंबर में मुरिदके के अवशेषों को जमींदोज कर दिया गया और अब फरवरी 2026 तक नए ढांचे के खड़े होने का लक्ष्य रखा गया है। यह तारीख पाकिस्तान में “कश्मीर एकजुटता दिवस” के रूप में मनाई जाती है और उसी दिन एलईटी का वार्षिक जिहाद सम्मेलन आयोजित होना है।

इस पूरे घटनाक्रम का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर “आतंकवाद-रोधी” नीति का दिखावा करता है, जबकि हकीकत में उसके संरक्षण में प्रतिबंधित संगठन नाम बदल-बदल कर सक्रिय रहते हैं। भारतीय एजेंसियों ने जिन नए नामों की पहचान की है, उनमें पीपुल्स एंटी-फासीस्ट फ्रंट, द रेजिस्टेंस फ्रंट, कश्मीर टाइगर्स, तहरीक-ए-तालिबान कश्मीर और माउंटेन वॉरियर्स ऑफ कश्मीर शामिल हैं।

देखा जाये तो पाकिस्तान का यह दोहरा खेल अब छिपा नहीं रह गया है। एक ओर वह अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को दिखाता है कि आतंक पर काबू पाया जा रहा है, दूसरी ओर प्रतिबंधित संगठनों को पुनर्जीवित कर भारत के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर जारी रखता है। मुरिदके की पुनर्निर्माण गाथा और बाढ़ राहत के नाम पर जुटाई जा रही रकम इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि आतंकवाद उसके लिए नीति का हिस्सा है, न कि समस्या का समाधान। भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझना होगा कि आतंक और मानवीय सहायता को एक साथ नहीं चलने दिया जा सकता।

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