तीन नदियों का पानी रोकने की भारत की योजना से पाकिस्तान चिंतित नहीं

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[email protected] । Feb 22 2019 6:12PM

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सिंधु जल संधि के संदर्भ में गडकरी के बयान को चिंताजनक नहीं मानता। शुमाइल ने कहा, ‘‘दरअसल, भारत रावी बेसिन में शाहपुरकंडी बांध का निर्माण करना चाहता है।

इस्लामाबाद। सिंधु जल संधि के तहत रावी, सतलुज और व्यास नदियों से अपने हिस्से का पानी रोकने की भारत की योजना से पाकिस्तान चिंतित नहीं है। एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी। पाकिस्तान की ओर से यह प्रतिक्रिया तब जाहिर की कई जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नई दिल्ली में कहा कि पुलवामा आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत के बाद भारत ने फैसला किया है कि वह सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान की ओर जाने वाली तीन नदियों से अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान नहीं जाने देगा। गुरूवार को ‘डॉन’ अखबार से बातचीत में पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव ख्वाजा शुमाइल ने कहा, ‘‘यदि भारत पूर्वी नदियों के पानी का रास्ता बदलता है और इसकी आपूर्ति अपने लोगों को करता है या किसी अन्य उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल करता है तो हमें न तो कोई चिंता है और न कोई आपत्ति, क्योंकि सिंधु जल संधि के तहत उसे (भारत को) ऐसा करना की अनुमति प्राप्त है।’’

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उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सिंधु जल संधि के संदर्भ में गडकरी के बयान को चिंताजनक नहीं मानता। शुमाइल ने कहा, ‘‘दरअसल, भारत रावी बेसिन में शाहपुरकंडी बांध का निर्माण करना चाहता है। यह परियोजना 1995 से अटकी हुई है। अब वे (भारत) बेकार होकर आखिरकार पाकिस्तान चले आने वाले अपने हिस्से का पानी इस्तेमाल करने के मकसद से इसे बनाना चाहते हैं। लिहाजा, यदि वे इसका भंडारण कर या बांध बनाकर या किसी अन्य तरीके से अपने लोगों के लिए इस पानी का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो वे ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यदि उन्होंने पश्चिमी नदियों (चेनाब, सिंधु और झेलम) का पानी इस्तेमाल किया या उनके पानी के बहाव का रास्ता बदला तो हम निश्चित तौर पर अपनी चिंताएं जाहिर करेंगे, अपनी आपत्ति जताएंगे, क्योंकि उन पर हमारा हक है।’’पाकिस्तान के सिंधु जल आयुक्त सैयद मेहर अली शाह के मुताबिक, सिंधु जल संधि ने 1960 में भारत को पूर्वी नदियों के पानी का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया है और अब यह उस पर निर्भर करता है कि वह उसका उपयोग करता है कि नहीं। शाह ने कहा, ‘‘1960 में उन्होंने पूर्वी नदियों के पानी का उपयोग में नहीं लाया गया हिस्सा इस्तेमाल किया या नहीं, इससे हमें कोई समस्या नहीं। अगर वे अब ऐसा करना चाहते हैं तो हमें कोई समस्या नहीं। और यदि वे इसका इस्तेमाल ही नहीं करना चाहते तो भी हमें कोई समस्या नहीं।’’ 

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उन्होंने कहा कि जिस शाहपुरकंडी बांध के निर्माण की योजना है, वह दरअसल रंजीत सागर बांध का दूसरा चरण है। उन्होंने कहा, ‘‘इस परियोजना से बिजली पैदा होगी और सिंचाई उद्देश्यों के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाएगा।’’ पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव को देखते हुए भारतीय विशेषज्ञों (सिंधु जल मामलों पर भारत के आयुक्त) के प्रस्तावित कोटरी बराज (सिंध प्रांत) दौरे पर शाह ने कहा, ‘‘देखिए इस बाबत क्या होता है। हम बेहतर की उम्मीद करते हैं।’’ शाह की अध्यक्षता में पाकिस्तानी विशेषज्ञों का तीन दिवसीय प्रतिनिधिमंडल 28 जनवरी से एक फरवरी तक भारत के चेनाब बेसिन में 1000 मेगावाट की पकल डल परियोजना, 48 मेगावाट की लोअर कलनई परियोजना, 850 मेगावाट की रतले और 900 मेगावाट की बगलीहार बांध परियोजना को लेकर अपना निरीक्षण दौरा पूरा कर चुका है।

इसके अलावा, पुलवामा हमले से दो दिन पहले भारत ने सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान से अपनी तीन (रन ऑफ द रिवर) पनबिजली परियोजनाओं का डिजाइन और इससे जुड़े आंकड़े भी साझा किए। इनमें बाल्टी कलां, कालारूस और तमाशा पनबिजली परियोजनाएं शामिल हैं।

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