न्यायालय ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ को अयोग्य करार दिया

Pakistan's Foreign Minister Khwaja Asif disqualified the court
[email protected] । Apr 26 2018 6:27PM

आसिफ पर आरोप है कि उन्होंने 2013 में चुनाव लड़ते वक्त संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अपने ‘इकामा’ (वर्क परमिट) का ब्योरा छुपाया।

इस्लामाबाद। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने आज पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ को संसद सदस्य के रूप में अयोग्य करार दे दिया। आसिफ पर आरोप है कि उन्होंने 2013 में चुनाव लड़ते वक्त संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अपने ‘इकामा’ (वर्क परमिट) का ब्योरा छुपाया। उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ( पीटीआई ) के नेता उस्मान डार की याचिका पर यह फैसला सुनाया। डार ने यूएई का ‘इकामा’ रखने के मामले में संविधान के अनुच्छेद 62 और 63 के तहत विदेश मंत्री आसिफ को अयोग्य करार देने की मांग की थी। साल 2013 में आसिफ के खिलाफ चुनाव हार चुके डार ने संसद सदस्य के रूप में आसिफ (68) की योग्यता को चुनौती दी थी। आसिफ ने चुनाव लड़ते वक्त कथित तौर पर अपनी नौकरी और अपने वेतन की घोषणा नहीं की थी। पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया कि आसिफ ‘‘सच्चे’’ और ‘‘ईमानदार’’ नहीं थे। इस फैसले के बाद आसिफ किसी सार्वजनिक पद या पार्टी में किसी पद पर नहीं रह पाएंगे। 

पीटीआई के नेता डार ने अदालत से आसिफ को अयोग्य करार देने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि अपने बेटों की कंपनी में काम करने का ‘इकामा’ रखने और अपने ‘‘प्राप्त किए जा रहे वेतन’’ की घोषणा नहीं करने पर उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल ही नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य करार दे दिया था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि इंटरनेशनल मेकेनिकल एंड एलेक्ट्रिकल कंपनी ( इमेको ) के साथ आसिफ का असीमित कार्यकाल के रोजगार का अनुबंध था। उन्हें जुलाई 2011 में पूर्णकालिक कर्मी के तौर पर नियुक्त किया गया था और वे विभिन्न पदों पर रहे थे। उन्होंने दावा किया कि अनुबंध के तहत आसिफ को 35,000 एईडी मासिक वेतन और 15,000 एईडी मासिक भत्ते के तौर पर मिलने थे जिसकी उन्होंने घोषणा नहीं की। सुनवाई के दौरान आसिफ ने कंपनी का एक पत्र सौंपा था कि वह पूर्णकालिक कर्मी नहीं हैं और उन्होंने महज परामर्शदाता के रूप में सेवाएं दी थी जिनकी मौजूदगी यूएई में जरूरी नहीं थी। न्यायमूर्ति अतहर मिनल्लाह , न्यायमूर्ति आमेर फारूक और न्यायमूर्ति मोहसीन अख्तर कल्याणी की पीठ ने 10 अप्रैल तक के लिए फैसले को सुरक्षित रखा था। 

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