दुनिया के सबसे भयानक पशु रोग से दुनियाभर में frogs की आबादी हो रही है नष्ट

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यह जानवरों की दुनिया में एक महामारी की तरह है। यह दुनिया की सबसे खराब वन्यजीव बीमारी है। हाल में ‘जर्नल ट्रांसबाउंड्री एंड इमर्जिंग डिसीज’ में प्रकाशित, एक बहुराष्ट्रीय अध्ययन ने अब इस बीमारी के सभी ज्ञात स्वरूपों का पता लगाने के लिए एक विधि विकसित की है, जो ‘ऐम्फिबियन काइट्रिड फंगस’ के कारण होता है।

दुनिया के सबसे भयानक पशु रोग से दुनियाभर में मेंढकों की मौत हो रही है। एक घातक कवक रोग से पिछले 40 वर्षों से दुनियाभर में मेंढकों की आबादी नष्ट हो रही है और इस वजह से 90 प्रजातियों का सफाया हो गया है। वैश्विक कोविड-19 महामारी के विपरीत, आप शायद इस ‘‘पैंजूटिक’’ के बारे में नहीं जानते होंगे। यह जानवरों की दुनिया में एक महामारी की तरह है। यह दुनिया की सबसे खराब वन्यजीव बीमारी है। हाल में ‘जर्नल ट्रांसबाउंड्री एंड इमर्जिंग डिसीज’ में प्रकाशित, एक बहुराष्ट्रीय अध्ययन ने अब इस बीमारी के सभी ज्ञात स्वरूपों का पता लगाने के लिए एक विधि विकसित की है, जो ‘ऐम्फिबियन काइट्रिड फंगस’ के कारण होता है।

यह सफलता व्यापक रूप से उपलब्ध इलाज की दिशा में काम करते हुए इस बीमारी का पता लगाने और शोध करने की हमारी क्षमता को आगे बढ़ाएगी। ‘काइट्रिडिओमाइकोसिस’ या काइट्रिड के कारण 500 से अधिक मेंढक प्रजातियों की संख्या में गिरावट आई है और ऑस्ट्रेलिया में सात प्रजातियों सहित 90 प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका है। अत्यधिक मृत्यु दर और प्रभावित प्रजातियों की अधिक संख्या, स्पष्ट रूप से ‘काइट्रिड’ को अब तक ज्ञात सबसे घातक पशु रोग बनाती है। ‘काइट्रिड’ मेंढकों की त्वचा में प्रजनन करके उन्हें संक्रमित करता है। एक कोशिकीय कवक एक त्वचा कोशिका में प्रवेश करता है, और फिर जानवर की सतह पर वापस आ जाता है।

त्वचा को यह नुकसान होने से मेंढक की पानी और नमक के स्तर को संतुलित करने की क्षमता प्रभावित होती है। ‘काइट्रिड’ की उत्पत्ति एशिया में हुई थी। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे क्षेत्रों में मेंढकों के पहले ‘काइट्रिड’ से प्रभावित होने का कोई इतिहास नहीं था जिससे वह इसका प्रतिरोध कर सके। कई प्रजातियों की प्रतिरक्षा प्रणाली इस रोग से बचाव के लिए अनुकूल नहीं थी, और बड़े पैमाने पर मौतें हुईं। वर्ष 1980 के दशक में, जीवविज्ञानियों ने मेंढकों की जनसंख्या में तेजी से आई गिरावट पर ध्यान देना शुरू किया और 1998 में आखिरकार इस बात की पुष्टि हुई कि असली अपराधी ‘काइट्रिड’ कवक था।

तब से, बहुत से शोधों में संक्रमण के रुझान और कमजोर मेंढक प्रजातियों की रक्षा करने के तरीके पर ध्यान केंद्रित किया गया है। हमें पहले स्थान पर ‘काइट्रिड’ का पता लगाने के लिए एक विश्वसनीय तरीका चाहिए। यह पता लगाने के लिए कि क्या एक मेंढक ‘काइट्रिड’ से पीड़ित है, शोधकर्ताओं ने जानवरों के स्वाब नूमनों का उसी तरह परीक्षण किया जैसे आप कोविड-19 की पहचान करते हैं। पिछले कई वर्षों से, भारत में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद - ‘सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी’ के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक टीम एक नये परीक्षण पर काम कर रही है जो एशिया में ‘काइट्रिड’ का पता लगा सकती है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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