Prabhasakshi Exclusive: Pakistan ने आव देखा ना ताव, भारत को आखिर क्यों दिया वार्ता का प्रस्ताव?

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पुलवामा हमले के जवाब में फरवरी 2019 में भारत के युद्धक विमानों द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर पर हमला करने के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में गंभीर तनाव आ गया था।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि अफगान संकट से निपटने के लिए अमेरिकी अधिकारी तलिबान से मिले हैं तो दूसरी तरफ बढ़ते आतंकी हमलों के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत को एक बार फिर से वार्ता का प्रस्ताव दे डाला है। इस बीच, पाकिस्तान को चीन का समर्थन भी खूब मिल रहा है। इस सबको कैसे देखते हैं आप? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि भारत ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंधों के लिए आतंक तथा शत्रुता मुक्त वातावरण जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय का यह स्पष्ट जवाब है कि भारत, पाकिस्तान सहित सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ सामान्य संबंध चाहता है और इसके लिए माहौल तैयार करना इस्लामाबाद पर निर्भर है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में फरवरी 2019 में भारत के युद्धक विमानों द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर पर हमला करने के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में गंभीर तनाव आ गया था। इसके अलावा, भारत द्वारा पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर की विशेष शक्तियों को वापस लेने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की घोषणा के बाद संबंध और भी खराब हो गए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना का भारत विरोध कर रहा है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरती है। 

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिकी सरकार का बयान भी आया है कि उनका देश भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे संवाद का समर्थन करता है। लेकिन अमेरिका भी जानता है कि पाकिस्तान के वार्ता प्रस्ताव में कितनी गंभीरता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जून में ही कहा था कि भारत के लिए पड़ोसी देश के साथ तब तक संबंध सामान्य करना संभव नहीं है जब तक कि वह सीमा पार आतंकवाद की नीति बंद न कर दें।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान का आटा गीला हुआ तो उसे एक बार फिर भारत से बातचीत की याद आ गयी है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान देख रहा है कि पड़ोसियों पर क्या दुनिया के किसी भी देश में जब-जब संकट आया तो भारत ने आगे बढ़कर मदद की। यही नहीं, मालदीव और श्रीलंका तो पूरी तरह भारत की वजह से ही आर्थिक संकट से उबर पाये। इसके अलावा भारत बांग्लादेश, नेपाल और भूटान की भी काफी मदद कर रहा है। जबकि पाकिस्तान अपने सबसे खराब आर्थिक हालात से गुजर रहा है तो दुनिया में कोई देश उसकी मदद नहीं कर रहा। चीन और खाड़ी के कुछ देश मदद के लिए आगे आये भी हैं तो वह इसके लिए बड़ी कीमत वसूल रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन पाकिस्तान के संसाधनों की रजिस्ट्री अपने नाम करवा रहा है तो खाड़ी के देश भी पाकिस्तान से उसके पोर्ट इत्यादि लीज पर लेकर उसे पैसा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का कार्यकाल खत्म होने वाला है तो उन्होंने एक बार फिर सभी गंभीर और लंबित मुद्दों के समाधान के लिए भारत के साथ बातचीत करने की पेशकश की और कहा है कि दोनों देशों के लिए ‘‘युद्ध कोई विकल्प नहीं है’’ क्योंकि दोनों देश गरीबी और बेरोजगारी से लड़ रहे हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि शहबाज शरीफ की टिप्पणियां सीमा पार आतंकवाद को इस्लामाबाद के निरंतर समर्थन और कश्मीर सहित कई मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में जारी तनाव के बीच आई है। साथ ही यह टिप्पणी ऐसे समय भी आई है जब 12 अगस्त को संसद का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है और उनकी गठबंधन सरकार चुनाव में जाने की तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा कि लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य भारत के प्रति पाकिस्तान की नीति को लेकर पूरी तरह स्पष्ट हैं? उन्होंने कहा कि यह सवाल हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि एक ओर प्रधानमंत्री भारत के साथ वार्ता की अपील कर रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी विदेश राज्य मंत्री भारत पर कटाक्ष कर रही हैं और उसे पश्चिमी देशों का डार्लिंग बता रही हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक अफगान अधिकारियों से अमेरिका की मुलाकात की बात है तो इस बारे में खुद अमेरिका के विदेश विभाग ने कहा है कि देश के वरिष्ठ राजनयिकों के एक समूह ने तालिबान के प्रतिनिधियों और तकनीकी पेशेवरों से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने अफगानिस्तान में मानवीय संकट और विकास से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। यह बातचीत 30 जुलाई और 31 जुलाई को दोहा में हुई थी। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अफगानिस्तान मामलों के विशेष प्रतिनिधि थॉमस वेस्ट ने किया। उनके साथ अफगान महिलाओं, लड़कियों और मानवाधिकार मामलों की विशेष दूत रीना अमीरी तथा अफगानिस्तान में अमेरिकी मिशन के प्रमुख करेन डेकर भी थे। उन्होंने कहा कि बैठक में मानवीय संकट और विकास से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने अफगान लोगों का समर्थन करने के लिए आपसी विश्वास मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके अलावा अमेरिकी अधिकारियों ने बिगड़ती मानवाधिकार स्थिति, विशेष रूप से महिलाओं, लड़कियों और कमजोर समुदायों के अधिकारों के बारे में चिंता व्यक्त की। तालिबान से मानवाधिकारों को बनाए रखने पर जोर देने के साथ नजरबंदी, मीडिया प्रतिबंध और धार्मिक प्रथाओं से संबंधित नीतियों को वापस लेने का आग्रह किया गया। इसके अलावा, बैठक में अफगान अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र में चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अफगान सेंट्रल बैंक तथा अफगान वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ भी बातचीत की गई। इसके साथ ही अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने हिरासत में लिए गए अमेरिकी नागरिकों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई पर भी जोर दिया।

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