जानें भगवान को भोग लगाते समय घंटी क्यों और कितनी बार बजाते हैं?
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सनातन धर्म में पूजा पाठ करने का विशेष महत्व है, लेकिन बिना घंटी के पूजा अधूरी मानी जाती है। जानकारी के मुताबिक भगवान को भोग लगाने के दौरान घंटी जरुर बजाई जाती है, इसके पीछे क्या कारण चलिए आपको बताते हैं। कैसे करें भगवान को भोग अर्पित, भोग लगाते समय इन मंत्रो का उच्चारण करें।
हिंदू धर्म में भगवान की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व होता है। हम सभी के घरों में गरुड़ घंटी जरुर होती है। भगवान को सुबह की नींद से जगाने से लेकर आरती और भोग लगाने तक घंटी जरुर बजाई जाती है। मंदिर हो या घर में भगवान को भोग लगाने के दौरान घंटी जरुर बजाते हैं। लेकिन हम सभी काफी समय से पूजा कर रहे हैं लेकिन बहुत ही कम लोग इस बारे में जानते होंगे कि भोग के समय घंटी क्यों बजाई जाती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आखिर भोग के दौरान घंटी क्यों बजाई जाती है और कितनी बार घंटी बजाकर भोग लगाना चाहिए, चलिए आपको बताते हैं।
क्यों बजाते हैं घंटी
पौराणिक ग्रंथ के अनुसार वायु तत्व को जागृत करने के लिए भगवान के समक्ष घंटी बजाई जाती है। आपको बता दें, वायु के ये पांच मुख्य तत्व है, व्यान वायु, उड़ान वायु, समान वायु, अपान वायु और प्राण वायु आदि। भगवान को नैवेद्य चढ़ाते समय पांच बार घंटी बजाते है। नैवेद्य अर्पित करते समय वायु के पांच तत्व को याद करके 5 बार घंटी और घंटा बजाकर भगवान को भोग लगया जाता है। पांच बार घंटी बजाकर भगवान और वायु तत्व को जागृत किया जाता है। हम जो भोग को अर्पित करते हैं उसकी खुशबू भगवान को हवा के मार्ग से पहुंच सके।
कैसे करें भगवान को भोग अर्पित
भगवान को जो वस्तु हम अर्पित करते हैं जैसे- अन्न, जल, मेवा, मिष्ठान और फल को नैवेद्य कहा जाता है। बता दें कि, नैवेद्य को हमेशा पान के पत्ते पर रखकर भगवान को अर्पित किया जाता है। देवताओं को पान का पत्ता काफी प्रिय है, इसलिए उनको हमेशा पान के पत्ते पर ही भोग दिया जाता है। आपको बता दें कि, पान का पत्ते की उत्पति समुद्र मंथन के दौरान अमृत के बूद से हुई थी।
भोग लगाते समय इन मंत्रो का उच्चारण करें
भगवान को भोग लगाते समय पांच बार घंटी बजाएं और साथ ही इन मंत्रों के उच्चारण करें।
ॐ व्यानाय स्वाहा
ॐ उदानाय स्वाहा
ॐ अपानाय स्वाहा
ॐ समानाय स्वाहा
ॐ प्राणाय स्वाहा
इस मंत्र का उच्चारण करने के बाद हाथ में जल लेकर प्रसाद या भोग के चारों ओर घूमाते हुए ॐ ब्रह्मअणु स्वाहा बोलकर धरती पर जल छोड़ दें।
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