जानिये कर्नाटक के राज्यगान का क्या है इतिहास, कौन है इसका रचयिता?

history of karnataka state anthem
कमलेश पांडे । May 8 2018 10:12AM

राष्ट्रगान की तर्ज पर कतिपय राज्यों ने भी अपने-अपने राज्यगान को अपनाया है, जिसे वह अपनी ओर से खूब बढ़ावा भी दे रहे हैं ताकि उनकी विशिष्ट सूबाई पहचान बरकरार रह सके। उनकी विरासत यथावत बची रहे और आगे बढ़ती रहे।

राष्ट्रगान की तर्ज पर कतिपय राज्यों ने भी अपने-अपने राज्यगान को अपनाया है, जिसे वह अपनी ओर से खूब बढ़ावा भी दे रहे हैं ताकि उनकी विशिष्ट सूबाई पहचान बरकरार रह सके। उनकी विरासत यथावत बची रहे और आगे बढ़ती रहे। उनकी क्षेत्रीय महत्ता अक्षुण्ण रह सके और शेष कर्नाटकवासी उससे जस का तस सुपरिचित हो सकें। कहना न होगा कि इस मामले में कर्नाटक प्रदेश का राज्यगान 'जया भारत जानियाय तनुजेट' एक सुप्रसिद्ध कन्नड़ कविता पर आधारित है, जिसे भारतीय कन्नड़ राष्ट्रकवि कुवेम्पू द्वारा रचा गया है। इसी कविता को कर्नाटक सरकार ने 6 जनवरी, 2004 को राज्य गान के तौर पर घोषित कर दिया, जो कर्नाटक का अद्भुत काव्य प्रतीक बन चुका है।

दरअसल इस कविता में एक ऐसे कर्नाटक की कल्पना की गई है जो भारतीय राज्यों के संघ में अपनी स्थिति को पहचानती है, वह अपनी सगी बहनों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास करती है, लेकिन असुरक्षा और भय की बजाय आत्मविश्वास और ताकत की स्थिति से उसका आत्म सम्मान और गरिमा बरकरार रखती है। शायद यही वह उदार चेतना वाला अविस्मरणीय भाव है जिससे कर्नाटक वासी तकनीकी कौशल और आध्यात्मिक विकास में खुद को आगे बढ़ाते हुए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय राष्ट्र को मजबूती प्रदान कर रहे हैं।

*कर्नाटक का राज्यगान (हिंदी अनुवाद में)

मदर इंडिया की बेटी मदर कर्नाटक की जीत! 

खूबसूरत नदियों और जंगलों की भूमि की जय हो, 

संतों के निवास की जय हो! 

आप देवी पृथ्वी के ताज, 

सुंदर सोने और चप्पल की लकड़ी के ताज में एक नया गहना हैं,

मदर कर्नाटक की मां मदर इंडिया,

जहां राम और कृष्ण के अवतार थे।

 

वेदों का अनुनाद आपके लिए,

आपकी मां की लूबी है, 

और आपका उत्साह उसका जीवन है। 

हरे पहाड़ों की पंक्तियां आपके हार हैं। 

मदर कर्नाटक, मदर इंडिया की पुत्री, 

जो कपिल, पतंजलि, गौतम और जीना की प्रशंसा करती है, 

की विजय।

 

आप एक पवित्र जंगल हैं,

जहां शंकर, रामानुजा, विद्यालय, बसेश्वर और माधव रहते थे। 

आप पवित्र निवास स्थान हैं,

जहां रन्ना, शदक्षरी, पोना, पम्पा, लक्ष्मीसा और जन्ना पैदा हुए थे। 

आप कई कवि-नाइटिंगल्स के धन्य विश्राम स्थान हैं। 

मदर कर्नाटक, मां भारत की बेटी,

नानक, रामानन्द और कबीर के वंशज।

 

यह जमीन तालापा और होसालास द्वारा अतीत में, 

और डंकाना और जककाना के लिए स्नेही गृहनगर है।

कृष्ण, शारवथी, तुंगा और कावेरी के लिए यह भूमि धन्य चरण है।

चैतन्य के मदर इंडिया, 

परमहंस और स्वामी विवेकानंद की बेटी मदर कर्नाटक की विजय।

 

सभी समुदायों के लिए शांति का बाग, 

एक दृष्टि जो विजेताओं को लुभाती है, 

वह बाग जहां हिन्दू, ईसाई, मुसलमान, पारसी, और जैन उगते हैं; 

जनक की तरह कई राजाओं का महल; 

गायक और संगीतकारों के लिए जगह; 

मदर कन्नड़ के बच्चों का शरीर-वह घर 

जहां कन्नड़ जीभ खुशी में खेलता है।

मदर इंडिया की बेटी मदर कर्नाटक की जीत। 

खूबसूरत नदियों और जंगलों की भूमि की जय हो, 

रासारिशियों के निवास की जय हो!

बता दें कि यह कविता कई कन्नड़ संगीतकारों द्वारा कई राग मिला देने से तैयार हुई है, जिनमें सी अश्विथ और मैसूर अनंतस्वामी द्वारा निर्धारित दो सबसे लोकप्रिय धुन भी शामिल हैं। जिससे यह बेहद कर्णप्रिय लगती है और असीम मानसिक शांति प्रदान करती प्रतीत होती है। दरअसल, शुरुआत में इसके विषय में कुछ भ्रम और मतभेद थे कि इस राज्य गान में किस धुन का उपयोग किया जाना चाहिए। यही वजह थी कि इस हेतु प्रोफेसर शिवराद्रप्पा के नेतृत्व वाली एक कमेटी गठित की गई, जिसे इस गान के प्रतिपादन के लिए एक उपयुक्त धुन का सुझाव देने के लिए कहा गया था। इस बाबत उन्होंने स्पष्ट सिफारिश की थी कि मैसूर अनंतस्वामी द्वारा रचित संगीत की धुन उपयुक्त रहेगी, जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। यही नहीं, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री ने कन्नड़ विश्वविद्यालय से इस राज्यगान के लिए एक सम्मान का प्रतिपादन बनाने के लिए भी कहा था। 

बताते चलें कि देश के कुछ राज्यों में आधिकारिक गीत हैं जो निम्नलिखित हैं, यथा- कर्नाटक: जया भारत जानियाय तनुजेट, तमिलनाडु: तामी ताई वा एल टीटीयू, आंध्र प्रदेश: मा तेलुगु तल्लीकि, तेलंगाना: जया जया हे तेलंगाना जाननी जयकेथनम, असम: हे मुर अपुनर देश, ओडिशा: बांदे उत्कल जनानी, गुजरात: जय जय गरवी गुजरात। देखा जाए तो इन 5 राज्यों के अलावा भी कई अन्य ऐसे राज्य हैं जिनके अपने अनौपचारिक गान (एंथम्स) हैं। उदाहरणार्थ, केरल के लिए 'वानजी भूमि' जैसे लोकप्रिय गीत उसके गानों की तरह बन गए हैं, तो महाराष्ट्र राज्य के लिए 'जया महाराष्ट्र मजा के लिए' को ही सुप्रसिद्ध गान की तरह शुमार किया जाने लगा है।

हालांकि, कर्नाटक के राज्यगान के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि 'जया भरत जानियाय तनुजेट' कर्नाटक का पहला गान नहीं है, बल्कि यह सूबे के एक और पुराने गीत जिसे ज्यादातर लोगों द्वारा भुला दिया गया है, की तर्ज पर आधारित है। बहुत कम लोग जानते हैं कि यह वही प्रसिद्ध गीत था जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए कर्नाटक एककराना आंदोलन के दौरान लोगों के मुख पर छा गया था। क्योंकि तब कर्नाटक एकीकरण आंदोलन के दौरान इसने अपनी सारगर्भिता के चलते असंख्य लोगों को उस आंदोलन को गति प्रदान करके सफल बनाने के लिए प्रेरित किया था। इस गीत का नाम 'उदयवागली नाममा चेलूवा कन्नड़ नाडू' था जिसका शब्द अर्थ है कि 'कन्नड़ की हमारी खूबसूरत भूमि पैदा होनी चाहिए!' यह रचना पौराणिक कवि और स्वतंत्रता सेनानी हुइलगोल नारायण राव द्वारा लिखी गई थी।

हालांकि, कालांतर में कई लोगों ने 'जया भरत जनन्या तनुजेट' के साथ इस खूबसूरत गीत को बदल दिया क्योंकि उन्हें लगा कि कर्नाटक पहले से ही बनाया गया था और इस गीत में कन्नड़ भूमि में पैदा होने का कोई अर्थ नहीं था। कहना न होगा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण था और गीत बदलने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सम्भव था कि गीत बदलने के बजाय हम लोग दोनों को मान सकते थे- एक राज्यगान के रूप में और दूसरा राज्यगीत के रूप में, जैसे कि राष्ट्रीय स्तर पर हमारे राष्ट्रगान जन गण मन और राष्ट्रगीत वंदे मातरम है जो भारतीयता के समग्र बोध से अनुप्राणित हैं।

सच कहा जाए तो कर्नाटक के वर्तमान राज्य गीत के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। समझा जाता है कि दुर्भाग्य से माधवाचार्य को लेकर ब्राह्मण समुदाय की ओर घृणा की गई थी, जिसके कारण उन्हें कुछ दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। यही वजह थी कि शंकराचार्य और रामानुजचार्य के नाम इसमें समाहित किए जाने के बावजूद उन्होंने शुरुआत में माधवाचार्य के नाम को राज्यगान में शामिल नहीं किया था। जबकि माधवाचार्य का शंकराचार्य और रामानुजाचार्य की तुलना में कर्नाटक के साथ गहरा संबंध था। बताते चलें कि शंकराचार्य ने श्रृंगेरी मठ की स्थापना की और रामानुजाचार्य मेलुकोट में 12 साल तक रहे और पौराणिक होसाला सम्राट विष्णुवर्धन के शिक्षक बने। लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि माधवाचार्य उडुपी में पैदा हुए थे और द्विता दर्शन का प्रचार करते हुए उनके अधिकांश जीवन कर्नाटक के लिए ही समर्पित रहे थे और वे यहीं पर रह भी रहे थे। इसलिए उनके साथ भी न्याय किया जाना अपेक्षित था।

यही खास वजह रही कि एचएच विश्वेश तीर्थ स्वामी जी ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और कन्नड़ राष्ट्रकवि कुवेम्पू से इस विषय में विस्तृत बात की। यह दोनों महान पुरुषों की स्वस्थ चर्चा का ही तकाजा है कि राष्ट्रकवि कुवेम्पू ने सीधे माधवाचार्य के नाम को भी गान में शामिल कर लिया था। यही कारण है कि आप गान के दो संस्करण पा सकते हैं- एक जिसमें माधवाचार्य का नाम और कोई भी शामिल नहीं है, जबकि राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित आधिकारिक गान में माधवाचार्य के नाम को भी शामिल पा सकते हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रकवि कुवेम्पू ने इस गीत को बहुत सुंदर तरीके से लिखा है जिसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों उदार चेतना भाव का गहरा सम्मिश्रण समाहित है। खास बात यह भी कि सुप्रसिद्ध कन्नड़ गायक मैसूर अनंतस्वामी ने कितनी खूबसूरती से इसे गाया-बजाया-सुनाया है। वाकई यह अद्भुत है। जब भी कोई इस गान को सुनता है तो उसे हंसबंप मिलते हैं। यह राज्यगान जिसे कुछ लोग राज्यगीत भी कहते हैं, का सबसे अच्छा हिस्सा शुरुआत वाला है, जिसके बोल हैं- "जया भरत जानियाय तनुजेट! जय हे कर्नाटक मेट!" यह कर्नाटक राज्य और भारत देश/भरत दोनों की महिमा का बखान करता है। इन अर्थों में इसकी महत्ता और उपयोगिता स्वयंसिद्ध है।

-कमलेश पांडे

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