हां, भगवान है (व्यंग्य)

God is here
विजय कुमार । Jul 25 2017 10:55AM

मैं भगवान को मानता तो हूं; पर शर्मा जी के तर्कों से मेरा विश्वास और मजबूत हो गया। ऐसा अनुभव मुझे 40 साल पहले भी हुआ था। उन दिनों रूस के एक कृषि प्राध्यापक हमारे क्षेत्र की फसलों पर शोध कर रहे थे।

हमारे प्रिय शर्मा जी घोर नास्तिक हैं। वे भगवान पर विश्वास नहीं करते; पर पिछले कुछ दिन से वे उठते-बैठते हरिओम-हरिओम बोलने लगे हैं। मैंने इसका रहस्य समझने की काफी कोशिश की; पर सब बेकार। सो मैंने सीधे उनसे ही बात करना ठीक समझा।

- शर्मा जी, आपको भगवान की कसम। इस परिवर्तन का कारण क्या है?

- देखो वर्मा, राजनीतिक रथ के दो पहिए होते हैं, सत्ता पक्ष और विपक्ष; पर पिछले कुछ समय से अधिकांश राज्यों में विपक्ष को मानो सांप ही सूंघ गया है। सबसे बुरा हाल तो कांग्रेस पार्टी का है। पहले तो लाख सिर मारने पर भी उन्हें विधिवत विपक्षी दल का दर्जा नहीं मिला। बाकी कसर मैडम जी की बीमारी ने पूरी कर दी। अब हाल ये हैं कि वर्तमान अध्यक्ष प्रायः अस्पताल में रहती हैं और भावी अध्यक्ष छुट्टी पर। बाबा के साथियों से पूछो कि वे कहां गये हैं, तो वे कभी नानी का नाम लेंगे, तो कभी मामी का। अधिक कुरेदो, तो वे कहेंगे कि यह बाबा का निजी विषय है। इसमें दखल देना ठीक नहीं है। 

- बात तो ठीक ही है शर्मा जी। आखिर भारत में चार-छह महीने निष्क्रिय रहने से कांग्रेस के चिरागे गुल के जीवन में जो उदासी और थकावट आ जाती है, उसे मिटाने के लिए तन और मन की कुछ देखभाल भी जरूरी है। चाची के घर तो वे जा नहीं सकते, तो फिर विदेशी मित्र ही बचते हैं।  

- पर इस चक्कर में पूरा विपक्ष तो अस्पताल में भरती है। फिर भी देश चल रहा है। यह इस बात का प्रमाण है कि भगवान है। 

- चलो आपकी ये बात मान ली।

- अब लखनऊ चलो। वहां बेटाश्री ने अपने पिता और चाचा को ही पार्टी से बेदखल कर रखा है। राष्ट्रपति चुनाव में आधी पार्टी इधर थी और आधी उधर। फिर वहां एक माया मैडम भी हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अपनी फटी चदरिया में थेगली कहां लगायें, जिससे शेष माया बची रहे। फिर भी वहां सरकार चल रही है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि भगवान है।

अब पटना में देखो। वहां विपक्ष से अधिक बखेड़ा सत्ता पक्ष में ही चल रहा है। पहलवान हर दिन लंगोट लहराते हैं; पर बांधते और लड़ते नहीं। लालू जी का निश्चय है कि उनके घर का हर सदस्य उनकी भ्रष्ट परम्परा को निभाएगा। उन्होंने चारा खाया था, तो बच्चे प्लॉट, मॉल और फार्म हाउस खा रहे हैं। आखिर स्मार्ट फोन और लैपटॉप वाली पीढ़ी अब भी घास और चारा ही खाएगी क्या ? उधर नीतीश कुमार अपने सुशासन मार्का कम्बल से दुखी हैं। पता नहीं उन्होंने कम्बल को पकड़ रखा है या कम्बल ने उन्हें। इस चक्कर में शासन भी ठप्प है और प्रशासन भी। फिर भी हर साल की तरह वहां बाढ़ आ रही है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान का अस्तित्व जरूर हैं।

और बंगाल ? जिन वामपंथी गुंडों का विरोध करते हुए ममता दीदी ने कुर्सी पायी थी, अब उन गुंडों ने दीदी का पल्लू पकड़ लिया है। दीदी को अपने विरोधियों का दिमाग सही करने के लिए उनकी जरूरत है और उन्हें जेल से बचने के लिए दीदी की। दोनों साइकिल के अगले और पिछले पहियों की तरह संतुलन बनाए चल रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना वाले भा.ज.पा. को कोसते तो हैं; पर सरकार नहीं छोड़ते। क्योंकि ऐसा करते ही उनकी चमक भी उतर जाएगी। भा.ज.पा. वाले भी उन्हें चश्मे के अंदर से ही आंखें दिखाते रहते हैं। सरकार तार पर चलने वाली उस लड़की की तरह है, जो हाथ में पकड़े बांस को कभी दाएं करती है, तो कभी बाएं। इस तरह चलना आम इन्सान के बस की बात तो नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि हां, भगवान नाम की कोई चीज इस जगत में है। 

मैं भगवान को मानता तो हूं; पर शर्मा जी के तर्कों से मेरा विश्वास और मजबूत हो गया। ऐसा अनुभव मुझे 40 साल पहले भी हुआ था। उन दिनों रूस के एक कृषि प्राध्यापक हमारे क्षेत्र की फसलों पर शोध कर रहे थे। वे हमारे कॉलिज में ही साल भर रुके। वे सुबह ही गांवों में निकल जाते थे और देर रात तक लौटते थे। शोध पूरा होने पर विदाई समारोह में प्रोफेसर साहब बोले कि हमारे देश में धर्म को अफीम तथा भगवान को कहानियों की चीज माना जाता है; पर यहां आकर मुझे भगवान पर विश्वास हो गया है। भारत में कोई बस या रेल समय पर नहीं चलती। दफ्तर में लोग देर से आते हैं और आकर भी काम नहीं करते। प्रयोगशालाओं में अधिकांश उपकरण खराब हैं, और जो ठीक हैं, वे बिजली न होने से चलते नहीं। संसद और विधानसभा में जन प्रतिनिधि जाते ही नहीं। जाते भी हैं, तो काम की बजाय शोर अधिक करते हैं। इसके बावजूद देश आगे बढ़ रहा है। इसका अर्थ है कि कोई अदृश्य शक्ति जरूर है, जो भारत को चला रही है। मेरे विचार से वह भगवान ही हैं। इसे पढ़कर भगवान के प्रति आपका विश्वास जगा या नहीं, ये तो आप ही जानें; पर मैं तो हर दिन यही प्रार्थना करता हूं कि हे भगवान, सबका भला करो; पर शुरुआत मुझसे हो, तो अच्छा है।

- विजय कुमार

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