“हैप्पी डॉक्टर्स डे? अरे छोड़िए…” (व्यंग्य)

Doctors Day
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उधर मेरी श्रीमती जी का कॉल आ गया — वाह! क्या बात है! चलो, श्रीमती जी को तो डॉक्टर्स डे याद रहा। हमने भी दिल थामकर उम्मीद की कि शायद कोई प्यारा सा हैप्पी डॉक्टर्स डे मैसेज या हो सकता है आज घर पर श्रीमती जी ने स्पेशल केक मंगवा रखा हो ,उसी की सूचना हो .. ।

कोई खास खुशी की बात तो है नहीं। हाँ, डॉक्टर्स डे है — और नहीं, यह सूचना न तो किसी गुलदस्ते में लिपटी आई, न ही कोई रिश्तेदार इतना संवेदनशील निकला कि केक भेज देता। छोड़िए, मेरी श्रीमती जी तक ने कोई संदेश भेजने की ज़हमत नहीं उठाई। एचआर का मेल भी इस बार शायद स्पैम में चला गया।

ये तो मेरे साथी डॉक्टर ने रात 12:01 बजे आईसीयू की मद्धम रोशनी में, जैसे कोई राष्ट्रीय रहस्य फुसफुसा रहा हो, धीरे से कान में कहा —

"भाई, हैप्पी डॉक्टर्स डे!"

मैंने आधे-अधूरे प्रोग्रेस नोट्स से गर्दन उठाई। आंखों के नीचे के गड्ढे आईसीयू की गहराई से टक्कर ले रहे थे। स्टेथोस्कोप गर्दन पर ऐसा लटका जैसे कोई अदृश्य ज़िम्मेदारी का फंदा हो। दिमाग में अब भी एक इमरजेंसी पेशेंट की सीटी रिपोर्ट घूम रही थी।

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मैंने उसे ऐसे घूरा जैसे कोई होली की शुभकामना श्मशान घाट में दे रहा हो।

"हैप्पी?" — मैंने सच में पूछा, "इसमें खुश होने जैसा क्या है?"

उसी समय उसका फोन बजा — उसने मोबाइल के स्पीकर पर हाथ रखते हुए कहा, "अच्छा सुन, अभी चलता हूँ, एच ओ डी सर का फोन आ रहा है। यार, उनका एक 'घर की पर्ची' वाला पेशेंट एडमिट हो गया है।"

उधर मेरी श्रीमती जी का कॉल आ गया — वाह! क्या बात है! चलो, श्रीमती जी को तो डॉक्टर्स डे याद रहा। हमने भी दिल थामकर उम्मीद की कि शायद कोई प्यारा सा हैप्पी डॉक्टर्स  डे मैसेज या हो सकता है आज घर पर श्रीमती जी ने स्पेशल केक मंगवा रखा हो ,उसी की सूचना हो .. ।

पर जैसे ही फोन उठाया, उधर से स्वर आया —

"रात 12 बजे भी व्हाट्सएप पर ऑनलाइन? किससे चैटिंग चल रही है?"

हमने बड़ी मुश्किल से सफाई दी — "अभी-अभी एक कलीग का हैप्पी डॉक्टर्स डे वाला मैसेज आया है।"

"अच्छा? किसका आया है?"

हमने कहा — " हे भागवान् ‘ही ’ का ही आया है, ‘शी’ का नहीं। टेंशन न लो।”

किसी तरह हमने अपने डॉक्टर्स डे को ‘अनहैप्पी’ होने से बचाया!

खैर, इस गहराई में डूबती रात को अल सुबह तक  संभालते हुए हमने तय किया कि डॉक्टर्स डे तो मनेगा — इस उम्मीद में कि आज कोई मंत्री जी का दौरा न हो, कोई नेता जेल से हार्ट अटैक के बहाने न आ धमके, कोई ब्रेकिंग न्यूज़ न चल जाए — “गलत इंजेक्शन से मरीज की मौत” जैसी।

कुल मिलाकर इन सभी आशंकाओं और संभावनाओं से परे अगर आज का दिन बीते — तो हम भी मान लें कि आज का दिन वास्तव में ‘हैप्पी’ डॉक्टर्स डे है।

सच बाताएं तो जब दुनिया हमें व्हाट्सएप स्टिकर, टेम्पलेट्स और आर्टिफिशियल केक से सलामी देती है — तब हम अपनी खुशी मरीज के पेट के ऑपरेशन के बाद 24 घंटे के अन्दर मरीज के गैस पास हो जाने की खबर में खोजते हैं।

अब डॉक्टर्स डे तो मनाना ही पड़ेगा — और यह मैं उसी उत्साह से कह रहा हूँ जैसे कि अगर हमने न मनाया तो हो सकता है अगली बार डॉक्टर्स डे आए ही न।

अब ‘डे’ तो बना दिया गया है… आप सोच रहे हैं कि यह भी वैसे ही मना लिया जाए जैसे मजदूर दिवस मनाया जाता है — मजदूरों को बिना छेड़े, उन्हें उनके काम पर लगे रहने दिया जाए, और उनके ‘बेहतर भविष्य’ के नाम पर एक हॉल में सरकारी अधिकारियों की जमात समोसे और कोल्ड ड्रिंक के साथ कुछ चमकीले स्लाइड शो, बैनर, फ्लायर, नारे और स्लोगन परोस दे — तो यह आपकी भूल है!

यह दिवस आपका नहीं, हमारा है — और इस हमें ही मनाना पड़ेगा।

व्हाट्सएप ग्रुप खोला — देखा, इस बार हमारी डॉक्टर बिरादरी इसे "ऐतिहासिक" बनाने पर तुली है।

हर किसी को "स्वेच्छा से बाध्य" किया गया है कार्यक्रम में भाग लेने के लिए।

हमारी संस्था इस बार "भव्य आयोजन" कर रही है —

डॉक्टर्स के लिए? उन्हें ‘सम्मानित’ करेंगे ? 

“नहीं नहीं मित्र !-आपने भी एन कही !” भला डॉक्टर ही डॉक्टर का क्या सम्मान करेगा? नहीं-नहीं, इस दिन लोकल प्रशासन और पुलिस विभाग के अधिकारियों को सम्मानित करने का विचार है हमारा।

मुख्य अतिथि होंगे — लोकल प्रशासन के अधिकारी, पुलिस विभाग के बड़े बाबू, और वह विधायक महोदय जो पिछले सप्ताह एक अस्पताल में मौत के विरोध में धरने पर बैठे थे और डॉक्टरों को जेल पहुंचाने में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं।

आख़िर इन सभी को सम्मानित करना पड़ता है, मित्रों — कहीं इन्हें बिना बताए डॉक्टर्स डे मना लिया गया तो फिर अगली बार कुछ भी मनाने के लिए बचा नहीं रहेगा।

फिर तो इन्हें ही मनाते रहो — ज़िन्दगी भर बंगले में हाजिरी लगानी पड़ेगी।

और हम?

क्या हम नहीं होंगे?

हम भी होंगे वहाँ मित्र —

प्रेस किया हुआ सफ़ेद कोट पहने (पिछली रात की ड्यूटी की छींटें छुपाते हुए), जमकर तालियाँ बजाएँगे जब कोई प्रशासनिक अधिकारी भाषण देगा — और बताएगा कि कैसे डॉक्टर अब "लुटेरे" बन गए हैं। कोई सनसनीखेज़ वाक़या सुनाएगा, की कैसे उसने किसी लुटेरे डॉक्टर पर कड़ी कार्यवाही की और साथ ही चेतावनी देगा — "सुधर जाओ, वरना हम सुधारना जानते हैं!"

आप भी न, क्या ख्वाब पाले हुए हैं मित्र! और भी तो दिन हैं यार, जिन्हें संस्थागत रूप से मनाया जाता है — जिससे संबंधित व्यक्ति,तबका,या महकमे  को याद किया जाता है, सम्मान दिया जाता है। तुम्हारे साथ ऐसा क्यों नहीं?

मित्र, डॉक्टर हो तुम! तुम्हारे पास  कहाँ टाइम है इन सब चीज़ों के लिए? क्या कहा  टाइम है? मन भी है? फिर हमें तो डाउट है मित्र कि तुम डॉक्टर भी हो या नहीं...!

हाँ, निराश मत होइए , सरकार ने कुछ तो सोचा है इस बार... इस दिवस को विशेष  बनाने के लिए। चुनाव भी नज़दीक हैं न! तो कुछ नई हेल्थ योजनाएँ लाए हैं हम — कुछ स्कीमें, मिशन, हेल्थ चैलेंज, और जागरूकता रथ यात्राएँ। लो, ढो लो इन्हें भी अपने कंधों पर! तुम्हें तो आदत है न! इतनी योजनाएँ ढो ही रहे हो... दो और सही। ये सब सरकार इसलिए कर रही है ताकि आप 24x7 डॉक्टर ही बने रहें।

लोग कह रहे हैं — "इस बार तो हमने सोचा है पिकनिक मनाने का, डॉक्टर डे पर सपरिवार।"

तनिक धीरे बोलो मित्र... कहीं मीडिया वालों ने सुन लिया न, तो ग़ज़ब हो जाएगा!

याद है पिछली बार कितना हंगामा हुआ था? किसी शहर में डॉक्टर्स डे पर अस्पताल वाले किसी रिसॉर्ट में जाकर पिकनिक मना रहे थे। यार, मनाओ, लेकिन थोड़ा संयम रखो! एक डॉक्टर नाच रहा था पार्टी में, वो काले-काले से ग्लास में कुछ लिए हुए — सब समझते हैं मीडिया वाले! कोला बता रहे हैं, सफ़ाई में। असल में वो दारू थी नीट! सर पर रखकर कुछ बूढ़े खड़ूस सीनियर डॉक्टर नाच रहे थे... फिर बेबकूफी देखो की कर्टसी के नाते  कुछ  मीडिया वालों को भी बुला लिया ! यार ग़ज़ब करते हो!

किसी ने वीडियो डाल दी सोशल मीडिया पर, और अख़बारों में हेडलाइन बनी —

"मरीज़ मर रहे हैं, और डॉक्टर जश्न मना रहे हैं!"

"डॉक्टर पाए गए नशे में धुत्त!"

तो हाँ, हम नहीं जाएँगे। घर पर ही मनाएँगे। घर पर श्रीमती जी से कहा कि चलो कुछ आर्डर दे देते हैं आज तो  , कुछ फास्टफूड खाने का मन है आज...

बोलीं — "आज नहीं यार.., आज हमारी किटी पार्टी है। वो सी.ए. साहब हैं न, राहुल, उनकी वाइफ़ दे रही हैं। तुम्हें पता है आज सी.ए. दिवस है, इसीलिए उन्होंने आज ही रखा है!"

हम चुपचाप अपने डॉक्टर्स डे को दिल में दफ़न किए, निकल आए अपनी ड्यूटी पर — अपने कोट में, मरीज़ों के बीच — खून, रिपोर्ट्स और रिस्पॉन्सिबिलिटी के इस जंगल में।

तो धन्यवाद — आपके ग्रेटफुल हार्ट्स, फॉरवर्डेड पोएम्स और टेम्प्लेट मैसेजेस के लिए। लेकिन कृपा करके अगली बार हमें पूरी रात सो लेने दीजिए।

या कम से कम — इतना तो सोचिए कि जब हम एक हाथ से सेंट्रल लाइन डाल रहे हों और दूसरे में आधा खाया पारले-जी हो, तब ये डायलॉग तो न मारिए — “खुश तो बड़े होंगे तुम डॉक्टर साहब !”

और हाँ — आप सभी को 'हैप्पी डॉक्टर्स डे'!

– डॉ मुकेश असीमित

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