पुस्तक समीक्षाः एनपीए एक लाइलाज बीमारी नहीं

book review

श्री दीपक का बैकिंग क्षेत्र में लगभग 35 वर्षों का अनुभव है एवं उन्होंने बैंक में काफ़ी अधिक समय तक मुख्य रूप से साख विभाग में ही कार्य किया हैं। अतः इस पुस्तक में इतने कठिन विषय को जिस आसानी से उन्होंने संभाला है, यह उनके बैंक में लम्बे अनुभव के कारण ही सम्भव हो सका है।

श्री दीपक गिरकर द्वारा लिखित पुस्तक एनपीए एक लाइलाज बीमारी नहीं का प्रकाशन ऐसे समय पर हुआ है जब न केवल सरकारी क्षेत्र के बैंक बल्कि निजी क्षेत्र के बैंक, सहकारी क्षेत्र के बैंक एवं ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ भी ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों जैसी गम्भीर समस्या से जूझ रहे हैं। इस समस्या ने देश में आज इतनी गहरी पैठ बना ली है कि देश का आर्थिक विकास ही इस समस्या के कारण विपरीत रूप में प्रभावित होता दिख रहा है।    

जब तक पुस्तक पढ़ी नहीं थी तब तक यह महसूस हो रहा था कि ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है कि ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ एक लाइलाज बीमारी नहीं है। अगर ऐसा सम्भव है तो फिर विभिन्न बैंक इस बीमारी से आज ग्रस्त क्यों हैं एवं इस बीमारी का इलाज क्यों नहीं कर पा रहे हैं। परंतु, श्री दीपक द्वारा लिखित उक्त पुस्तक का अध्ययन करने के पश्चात आभास हुआ कि लेखक ने पुस्तक का टाइटल सटीक एवं एकदम सही रखा है। दरअसल, उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र की इस ज्वलंत समस्या का गहरा विश्लेषण करते हुए बहुत ही सरल तरीक़े से इस गम्भीर समस्या का प्रस्तुतीकरण किया है। 

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श्री दीपक का बैकिंग क्षेत्र में लगभग 35 वर्षों का अनुभव है एवं उन्होंने बैंक में काफ़ी अधिक समय तक मुख्य रूप से साख विभाग में ही कार्य किया हैं। अतः इस पुस्तक में इतने कठिन विषय को जिस आसानी से उन्होंने संभाला है, यह उनके बैंक में लम्बे अनुभव के कारण ही सम्भव हो सका है। बैंकिंग क्षेत्र में ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ लगातार क्यों बढ़ रही हैं, इस सम्बंध में विस्तृत व्याख्या उक्त पुस्तक में की गई है। साथ ही, ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों को कम करने हेतु पुस्तक में कई मौलिक एवं व्यावहारिक सुझाव भी दिए गए हैं, जिसका फ़ायदा बैंकों में कार्य कर रहे अधिकारियों द्वारा उठाया जा सकता है।

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इस पुस्तक में ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों के सम्बंध में कुल 13 अध्याय दिए गए हैं। इन 13 अध्यायों में 222 उप शीर्षकों के अंतर्गत विषय का गहन विश्लेषण करते हुए इसके विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक को बहुत ही सरल एवं साधारण भाषा में लिखा गया है। यह शायद इसलिए सम्भव हो सका है क्योंकि श्री दीपक एक सफल लेखक, व्यंग्यकार, साहित्यकार, समीक्षक, लघुकथाकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं एवं आपके लेख, व्यंग्य, लघकथाएँ एवं टिप्पणियाँ देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित हो रहे हैं। यह पुस्तक न केवल बैंक कर्मियों बल्कि शोधकर्ताओं, छात्रों एवं आम नागरिकों के लिए भी बहुत उपयोगी साबित हो रही है। साथ ही, पुस्तक की भूरि भूरि प्रशंसा भी बैंकिंग एवं आर्थिक जगत में हो रही है। पुस्तक का प्राक्कथन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. जयंतीलाल भंडारी ने लिखा है। 

पुस्तकः एनपीए एक लाइलाज बीमारी नहीं

लेखकः श्री दीपक गिरकर

प्रकाशकः साहित्य भूमि, एन-3/5, मोहन गार्डन, नयी दिल्ली-110059

सजिल्द, मूल्यः 450 रु.

प्रह्लाद सबनानी,

सेवा निवृत्त उप-महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

झाँसी रोड, लश्कर

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