दो लड्डू और पंद्रह अगस्त (कहानी)

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दोपहर हो गई है। सूरज ठीक नीम के विशाल और घने वृक्ष के ऊपर आ गया है। नीम चौपाल के ठीक बीच में है। नीम इतना विशाल-घना है कि उसकी शाखाओं ने पूरी चौपाल और आसपास के रास्ते को ढक रखा था।

कई साल बीत गए बोलते हुए गांधी जी की जय। वह वर्षों से देखता आ रहा है, स्कूल, तहसील और पंचायत की फूटी कोठरी पर तिरंगे का फहराया जाना। इतना ही नहीं मिठाई के लालच में हर साल शामिल होता है वह 26 जनवरी और 15 अगस्त के कार्यक्रम में, लेकिन अब तक नहीं समझ पाया बारेलाल आजादी का अर्थ।

दोपहर हो गई है। सूरज ठीक नीम के विशाल और घने वृक्ष के ऊपर आ गया है। नीम चौपाल के ठीक बीच में है। नीम इतना विशाल-घना है कि उसकी शाखाओं ने पूरी चौपाल और आसपास के रास्ते को ढक रखा था। इस वक्त चौपाल पर सूरज की एक-दो किरणें ही नीम की शाखाओं से जिरह करके आ पा रही हैं वरना तो पूरी चौपाल नीम की शीतल छांव के आगोश में है। इधर-उधर कुछ बच्चे कंचे खेल रहे हैं और कुछ बुजुर्ग नित्य की तरह ताश की बाजी में भाग्य आजमा रहे हैं। रामसिंह कक्का अपनी चिलम बना रहे हैं। उनका एक ही ऐब है, चिलम पीना। यह भी उम्र के साथ आया। चौपाल पर इस वक्त लोगों का आना शुरू हो जाता है। बारेलाल भी अपने पशुओं को इसी वक्त पानी पिला कर सीधे चौपाल पर आता है। आज उसे आने में थोड़ी देर हो गई है।

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आज बारेलाल गांव के शासकीय स्कूल के प्राचार्य हरिबाबू के साथ चौपाल आया है।

हरिबाबू ने आते ही कक्काजी को राम-राम कहा। कक्का ने पूछा- काहे बड़े बाबू कैसे हो? भोत दिनन में इतको आए हो, काहा बात है? सब खैरियत तो है? 

मास्साब ने कहा- बस दादा सब ईश्वर की कृपा और आपका सहयोग है। बात यह है कि दो दिन बाद 15 अगस्त है। सो आपको न्योता देने आया हूँ।

कक्का की चिलम अब तक तैयार हो चुकी थी। उन्होंने एक दम लगाकर कहा- अरे मास्टर जी जा काम में न्योता की का जरूरत है, हम तो हर साल अपए आप ही चले आत हैं। सब बच्चा लोगन का नाटक, गीत-संगीत सुनत हैं।

मास्साब ने सहमति में सिर हिलाते हुए निवेदन किया- कक्काजी वो तो हम भी जानते हैं आप स्कूल को लेकर बड़े संजीदा रहते हैं। बीच-बीच में भी बच्चों की पढ़ाई की जानकारी लेते रहते हैं। इस बार हम आपको स्वाधीनता दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में न्योता देने आए हैं।

कक्का ने हंसते हुए कहा- अरे सरकार रहन दो आप। अतिथि और काहू को बनाए लो, हम तो ऐसेई आ जाएंगे।

बारेलाल ने भी हां में हां मिलाई। मास्सब चाहते थे कि इस बार कक्का जी को ही मुख्य अतिथि बनाया जाए। असल में वह कक्का के विचारों और बच्चों की पढ़ाई को लेकर उनकी सजगता से काफी प्रभावित थे। कक्का की मदद से ही जर्जर स्कूल भवन का जीर्णोद्धार हो सका था। जब से गांव में शराब का प्रचलन बढ़ा है, बुराइयों का जमावड़ा गांव में हो गया है। शराबी बोतल की जुगाड़ के लिए स्कूल के गेट-खिड़की तक उखाड़ ले गए थे। वह तो कक्का ही थे जिन्होंने पहल करके स्कूल की सुरक्षा व्यवस्था चौकस की।

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एक दिन की बात है, भीकम दारू पीकर स्कूल चला आया था। भीकम गांव के चौधरी खानदान का बिगडैल लड़का है। हट्टा-कट्टा जवान लेकिन काम-धाम कुछ नहीं करना। आवारगी और मटरगस्ती करना उसकी जीवनचर्या बन गई है। चौधरी खानदान का वर्षों में कमाया सब नाम डुबा दिया है भीकम ने। वह स्कूल की शिक्षिका और शिक्षकों के साथ बदतमीजी कर रहा था। कक्का उस रोज पंचायत भवन में बैठे थे। बारेलाल पहले उन्हें ढूंढ़ते हुए चौपाल पर पहुंचा, जब कक्का चौपाल पर नहीं मिले तो वह दौड़ता हुआ पंचायत भवन की ओर गया। यहां उसने स्कूल में चल रही भीकम की हरकत कक्का को सुना डाली। कक्काजी उसी क्षण अपनी लाठी लेकर अकेले ही स्कूल भवन की ओर तेज-तेज कदमों से चल दिए थे। बारेलाल भी पीछे-पीछे चला आ रहा था।

स्कूल पहुंचते ही कक्काजी ने भीकम को ललकारा- ओ भाई, इतें देख। तेरी सगरी खाल खींच लेंगे, अगर तूने एक भी मास्टरनी और मास्टर से तू करके भी बात की तो। परे हट जा यहां से। आगे कबहूं स्कूल के आसपास न फटकिओ वरना हम भूल जांगे कै तू हमाए दोस्त चौधरी वीर सिंह की औलाद है।

भले ही भीकम गांव में दादागिरी और रसूख झाड़ता था लेकिन कक्काजी के सामने आंख उठाने की भी उसकी हिम्मत नहीं थी। कक्काजी की फटकार सुनकर, दांत पीसते हुए भीकम वहां से निकल गया। लेकिन, कक्काजी की चेतावनी को उसने आज तक नजरअंदाज नहीं किया।

इस घटना के बाद शिक्षिकाओं में डर बैठ गया था। उन्होंने तत्काल ही कक्काजी से कह दिया था कि अब हम महिलाएं यहां नहीं पढ़ा सकेंगे।

तब कक्काजी ने ही कहा था कि आप जेहीं पढ़ाएंगी, आपसे निवेदन है। आपको भरोसा देत हैं कि अब कबहूं आपके मान-सम्मान में कोउ कमी न आएगी। जो कोई तुम्हें परेशान कर दे तो अपनी मूंछें नीचे रखेंगे जीवनभर। कक्काजी से भरोसा मिलने के बाद शिक्षिकाएं स्कूल आती रहीं।

आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर कक्काजी से ही ध्वजारोहण कराने का निर्णय स्कूल के प्राचार्य हरबाबू कर चुके थे। इसलिए आज वे कैसे भी करके कक्काजी की सहमति ले लेना चाहते हैं। हरिबाबू ने जिद करके उनसे कहा- नहीं इस बार तो आपको ही झंडा फहराना है।

आखिर हरिबाबू कक्काजी को राजी करने में सफल हो गए। आत्मसंतोष और खुशी की भाव लेकर हरिबाबू चल दिए थे।

मास्सब के जाने के बाद व्याकुल बारेलाल ने कक्काजी से कहा-कक्का ये 15 अगस्त का होत है और ये 15 अगस्त को ही काए आतो है।

तब कक्का ने उसे भारत के इतिहास की कहानी विस्तार से सुनाई। कक्काजी रामसिंह स्वतंत्रता सेनानी थे, भले ही सरकारी कागजों में उन्होंने आजादी की जंग न लड़ी हो। कक्काजी जवानी के दिनों में क्रांतिकारी दल के सदस्य थे। अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी से लड़ाई में वे गंभीर घायल हो गए थे। इसके बाद वे चाह कर भी क्रांति नहीं कर सकते थे इसलिए अहिंसक आंदोलनों की ओर मुड़ गए। कक्काजी गांधीजी के आंदोलनों में जोश के साथ भाग लेने लगे थे।

कक्काजी ने काफी देर तक आजादी की कहानी सुनाई और आजादी के समारोहों का महत्व बताया, तब जाकर बारेलाल को कुछ पल्ले पड़ा। उसने सिर खुजाते हुए कहा-धत् तेरे की! मैं तो अब तक जो सब जानत ही नहीं हतो। मैं तो बस जई जानतो हतो कि जा दिना पुराने स्कूल और पंचायत की पीली बिल्डिंग पर झंझा लहराओ जात है। और सही बताउँ तो मैं जा दिना स्कूल में सिर्फ दो लडुआ लेवे ही जात हतो। अब समझ में आई जै दिन तो हमें बड़े जतन के बाद नसीब हुआ था। जै हो उन वीरां लोगन की जिनकी बदौलत हमें आजादी मिली है।

-लोकेन्द्र सिंह

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं।)

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