"जमाना उन्हें याद रखता है जो लिखने लायक कुछ कर जाते हैं या पढ़ने लायक कुछ लिख जाते हैं....." (पुस्तक समीक्षा)

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Prabhasakshi

काल प्रेरणा पुस्तक के आत्म उद्गार में वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रकोप के दौरान आपने यानी लेखक ने समर्पित भाव से की गई सेवा का उल्लेख किया है। वस्तुतः श्रद्धापूर्वक की गई सेवा ही लघु मानव को महामानव बना देती है। आपकी कार्य संस्कृति संवेदना प्रधान है।

इतिहास साक्षी है कि "जमाना उन्हें याद रखता है जो लिखने लायक कुछ कर जाते हैं या पढ़ने लायक कुछ लिख जाते हैं।" आईएएस अधिकारी डॉ दिनेश चंद्र सिंह में यह दोनों विशेषताएं पाई जाती हैं। कालजयी रचना "काल- प्रेरणा" सरीखे उनके श्रम साध्य लेखन कार्य से यह परिलक्षित होता है कि "डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह जी ईज ए पर्सन ऑफ वर्सटाइल पर्सनैलिटी एंड स्प्लेंडिड जेनेरोसिटी।" इस कृति में डॉ दिनेश चंद्र सिंह के द्वारा व्यक्त किए गए विचारों, लोक कल्याणकारी कार्यों, प्रीतिकर कार्यसंस्कृति और लोक संग्रही स्वभाव को जानकर ही उपर्युक्त निष्कर्ष पर पहुंचा हूं।

काल-प्रेरणा की विषय-वस्तु गूढ़ है। वेदों पर जब आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि अथर्ववेद के सूक्त संख्या 53 व 54 में काल की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। वस्तुतः काल की छह स्थितियां होती हैं- पहला, जायते (जन्म लेना); दूसरा, अस्ति (वर्तमान अवस्था); तीसरा, वर्द्धते (विकास); चतुर्थ, विपरिणमते (बढ़ती उम्र का शरीर पर प्रभाव); पंचम, अपक्षीयते (वृद्धावस्था) और षष्टम, म्रियते (मृत्यु)। निःसन्देह मृत्यु एक ऊर्जा का दूसरी ऊर्जा में रूपांतरण है। ऊर्जा अमर है और द्रव्य नाशवान। शीर्षक की सार्थकता साबित करने के लिए यह उपमा काफी है।

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा के प्रति आस्थावान केरल के वर्तमान राज्यपाल डॉ आरिफ मोहम्मद खान ने इस कृति का लोकार्पण किया है। वहीं उत्तराखंड के ऊर्जावान और यशस्वी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस लोकप्रिय कृति के लिए शुभ संदेश भेजे हैं। वहीं बाबा हरदेव सिंह जैसे गहन अध्येता और प्रकांड विद्वान ने काल प्रेरणा की शुभाशंसा लिखी है। स्पष्ट है कि विद्वत जनों को यह रचना पसंद आई है।

पुस्तक के आत्म उद्गार में वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रकोप के दौरान आपने यानी लेखक ने समर्पित भाव से की गई सेवा का उल्लेख किया है। वस्तुतः श्रद्धापूर्वक की गई सेवा ही लघु मानव को महामानव बना देती है। आपकी कार्य संस्कृति संवेदना प्रधान है। वही संवेदना जिसको मानवीय गरिमा का मेरुदंड बताया गया है। इस बहुआयामी कृति में मां से लेकर मातृभूमि तक, अर्दली से लेकर अधिकारी तक, आम आवाम से लेकर सरकार तक तथा व्यष्टि से लेकर समष्टि तक की विषय सामग्री को समेटने का प्रयास किया गया है ताकि आगे आने वाली पीढ़ी में अच्छी सोच विकसित हो सके।

सच कहा जाए तो सरल, सहज और बोधगम्य भाषा में जन प्रबोधन करने वाली यह कृति निश्चित ही प्रेरणास्पद और लोकप्रिय सिद्ध होगी। कारण कि जब मन, वाणी और कर्म में एकरूपता होती है तो व्यक्ति के कृतित्व की संप्रेषणीयत्ता बहुत हद तक बढ़ जाती है। इस कृति के पहले अध्याय में मां की महनीयता को उजागर किया गया है। वस्तुतः "मां की गोद प्रथम पाठशाला है।" भीष्म पितामह के अनुसार- "नास्ति मातृ समो गुरु:।" महाभारत में मां की महिमा का बखान निम्नवत पंक्तियों में किया गया है- नास्ति मातृ समा छाया, नास्ति मातृ समा गति:। नास्ति मातृ समं त्राणां, नास्ति मातृ समा प्रिया।।- वेदव्यास।

वाकई माता को भगवान का दूसरा रूप माना गया है। वह कभी कुमाता नहीं हो सकती। आईएएस डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह, जिलाधिकारी बहराइच द्वारा मां के संबंध में व्यक्त किए गए भावोद्गार का यहां विशेष रूप से उल्लेख किया जाना समीचीन है- "सच कहूं तो मेरी मां भी सुंदर, सलोनी, अद्भुत और अनुकरणीय प्रतिभा की धनी थी। यद्यपि कि वे स्कूली शिक्षा से दूर रहीं, फिर भी व्यवहारिक शिक्षा में निष्णात थीं। वे शिक्षा की उपयोगिता को व्यवहारिक धरातल पर समझती थीं। डॉक्टर सिंह में विद्यार्जन की उद्दाम लालसा मां की प्रेरणा से ही जागृत हुई थी। सामाजिक सरोकारों के प्रति चेतना जागृत करने वाली मां की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप ही आपने गांव, राज्य तथा राष्ट्र की सेवा का संकल्प लिया।" 

संवेदना की जीवंत प्रतिमा अपनी मां का स्मरण करते हुए श्री सिंह आगे लिखते हैं कि- मेरी प्रेरणा स्वरूपा मां, मैं तुम्हारा किस प्रकार से स्मरण कर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करूं, यह उद्गार मर्मस्पर्शी है। डॉक्टर सिंह के अनुसार, 19वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में ही उनके गांव पुरैनी में शिक्षा की अलख का जागरण हुआ था। आपने इस विद्यालय के कर्मठ और सुयोग्य शिक्षकों द्वारा स्थापित अनुशासन और अध्यापन कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। गुरुजनों के प्रति आपके द्वारा व्यक्त किया गया आदरभाव श्लाघनीय है। धर्मग्रंथों के अनुसार- "गुरोरवाक्यं सतत गेयं न गेयं शास्त्र कोटिभि:" अर्थात गुरु के मुख से निकला एक वाक्य भी करोड़ों शास्त्रों पर भारी है।

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वहीं, आदरणीय कमलेश पांडे (वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार) ने 'बिजनौर की विभूति' शीर्षक से अपने पांडित्यपूर्ण आलेख में हिमालय की तराई और पतित पावनी गंगा के तट पर आबाद बिजनौर की नयनाभिराम प्राकृतिक छंटा का मनभावन और प्रेरणास्पद वर्णन किया है। जिससे यह परिलक्षित होता है कि इस पुण्य भू से धर्मज्ञ और नीति निपुण महामनीषी विदुर का जुड़ाव रहा है। नीति, न्याय और धर्म के पुरोधा परम ज्ञानी विदुर अपनी सादगी, साफगोई, न्याय-प्रियता और सत्यवादिता के लिए चर्चित रहे हैं। द्रौपदी के चीरहरण के समय आपने राजदरबार में खड़े होकर अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद की थी। इनकी गणना महाभारत के केंद्रीय पात्रों में की जाती है। श्रीमद् भागवत गीता की तरह ही विदुर नीति को भी महाभारत का स्तंभ माना गया है।

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार श्री कमलेश पांडे ने डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह के जीवन वृत्त, ऊर्जावान और आशावादी व्यक्तित्व की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए उल्लेख किया है कि एक सफल नौकरशाह डॉ दिनेश चंद्र सिंह का जन्म नगीना तहसील के अग्रणी गांव पुरैनी के एक कृषक परिवार में 50 वर्ष पूर्व हुआ था। जो ब्रिटिश काल के पूर्व से ही शैक्षिक, साहित्यिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में पुरैनी गांव का विशेष स्थान रहा है। गांव के सांस्कृतिक अधिष्ठान के अनुरूप ही आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का विकास हुआ है। 

आपकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम के ही प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूल में संपन्न हुई। होनहार विद्यार्थी के रूप में आपने कक्षा 5 और कक्षा 8 की परीक्षा उत्तम अंकों से अव्वल श्रेणी में उत्तीर्ण की। आपको शासकीय छात्रवृत्ति भी प्राप्त हुई। कक्षा 10 और कक्षा 12 की परीक्षा में आपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वहीं बीएससी, एमएससी और एलएलबी की परीक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आपने अव्वल अंकों से उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा अर्जित करने के दौरान आप में सामाजिक चेतना विकसित हुई। आपने भाषण और वाद-विवाद प्रतियोगिता में दक्षता अर्जित की। आपने कठोर श्रम और लगन से पढ़ाई करके जेआरएफ प्राप्त की। देश की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्था सीएसआईआर (काउंसिल आफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) के तत्वावधान में वर्ष 1995 में आपने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 

डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस ने 1995 की पीसीएस परीक्षा में प्रदेश में पांचवां स्थान प्राप्त किया। आपने मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, इलाहाबाद, गोरखपुर एवं अलीगढ़ जनपदों में एसडीएम, एडीएम और सीडीओ जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए उल्लेखनीय, सराहनीय और प्रशंसनीय योगदान द्वारा जनता तथा सरकार की प्रशस्ति प्राप्त की। लोकरंजक कार्य संस्कृति, बुद्धि कौशल, प्रशासनिक दक्षता और उत्कृष्ट प्रबंधन के लिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा 2014, 2015, 2016, 2017 और 2018 में महामहिम राज्यपाल द्वारा आपको सम्मानित किया गया।

जब नेपाल के भूकंप के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से आप नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए। तब आपकी सराहनीय सेवा के लिए आपको सम्मानित किया गया। आपने आपदा प्रबंधन एवं निर्वाचन कार्य में प्राप्त अनुभवों पर आधारित पुस्तिका छपवाकर उसका नि:शुल्क वितरण कराया। जिससे जनमानस को प्रेरणा मिली। निर्वाचन क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए आपको मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने भी सम्मानित किया।

दरअसल, हर समय ऊर्जा, उत्साह और रचनात्मक सोच से लवरेज रहने वाले डॉक्टर सिंह की पदोन्नति वर्ष 2018 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में हो गई। पहले गाजियाबाद के नगर आयुक्त, फिर कानपुर देहात में जिलाधिकारी, ततपश्चात विशेष सचिव संस्कृति विभाग, लखनऊ के रूप में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने के उपरांत आप अब जिलाधिकारी, बहराइच के रूप में कार्य कर रहे हैं। जिले में सर्वत्र आपके कार्य-व्यवहार की सराहना हो रही है। कोविड-19 की वैश्विक महामारी से बचाव हेतु विभिन्न सरकारी प्रयासों व टीकाकरण को गति प्रदान करने में आपकी उल्लेखनीय भूमिका रही है।

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इस कृति के पांचवें अध्याय में सुशासन हेतु शासक और शासित के बीच सामंजस्य और समझदारी को अपरिहार्य बताया गया है। चाहे पुरातन राजतंत्र हो या अधुनातन प्रजातंत्र, दोनों में यथा राजा तथा प्रजा की कहावत चरितार्थ हुई है। समय साक्षी है कि सुख, शांति और सुरक्षा ही सुशासन के मापदंड रहे हैं। अलेक्जेंडर पोप के अनुसार- "लेट्स फूल्स क़ुररेल फॉर द सिस्टम ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, व्हाट गवर्नमेंट एडमिनिस्टर्स  द बेस्ट इज द बेस्ट सिस्टम।" देखा जाए तो असुरक्षा और अभाव में ही जनअसंतोष पनपता है। इतिहास गवाह है कि दैवी अधिकार प्राप्त निरंकुश शासकों के अप्रिय व्यवहार और अत्याचार के विरुद्ध जनता ने संगठित होकर बगावत के स्वर बुलंद कर उन्हें अपदस्थ किया है।

आपने अपने कथन की पुष्टि में कतिपय लोकप्रिय शासकों का उल्लेख किया है। शासन प्रणाली कोई भी हो, राजा- प्रजा, शासक और शासित के बीच अभिन्न संबंध रहा है। महाभारत के शांति पर्व के अनुसार- राजा प्रजानां प्रथमं शरीरं, प्रजाश्च राग्योअप्रतिम शरीरम। राजा विहीना न भवन्ति देसां, देशे विहीना न नृपा भवन्ति।। आपने स्पष्ट कर दिया है कि राजाओं में राम भूमंडल के आदर्श माने जाते हैं। नदियों में गंगा और राजाओं में राम की कोई मिसाल नहीं है। निम्नवत दोहे के माध्यम से संत तुलसी ने करुणा-निधान श्रीराम की कर व्यवस्था के बारे में बताना चाहा है- वर्षत हरषत लोग सब करसत लखै न कोय। तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ।। कहने का तातपर्य यह कि जिस प्रकार से सूर्य पृथ्वी के जल का वाष्पीकरण करके उसे वायुमंडल में उड़ा देता है पर किसी को उसका प्रत्यक्ष आभास या अनुभूति नहीं होती, ठीक उसी प्रकार से राम राज्य में लगाए गए न्यूनतम कर से जनता को किसी भार का आभास नहीं होता था। रामचरितमानस के अनुसार- जासु राज प्रिय प्रजा दु:खारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।। ज्ञातव्य है कि श्री राम भूमंडल के ऐसे पहले नरेश थे जिनके साथ शुभचिंतकों, भाइयों और कतिपय प्रजाजनों ने जल समाधि ले ली थी।

सर्वविदित है कि सन 1572 में अरावली की पहाड़ियों पर स्थित गोगुंदा के दुर्ग में राणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था। राज्याभिषेक के समय महाराणा प्रताप के पास न तो राजधानी थी और ना ही राजकोष। धनाभाव के कारण निजी सेना भी नहीं थी, और वे सामंतों की सेना पर निर्भर थे। मेवाड़ की राजभक्त जनता अपार कष्ट सहते हुए अपने राजा के साथ थी। गोगुंदा का दुर्ग उदयपुर से 35 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम दिशा में था। इस स्थान पर आबाद होने के बाद राणा प्रताप की एक अपील पर मेवाड़ के मैदानी क्षेत्र के सभी बाशिंदे घर-बार, खेत-खलिहान छोड़कर पर्वतीय अंचल में आबाद हो गए। इससे बनास और बेडस नदियों के मध्य स्थित अत्यंत उर्वर क्षेत्र भी वीरान और बेचिराग हो गए। मेवाड़ की जनता तन, मन और धन से राणा प्रताप के साथ थी। मेवाड़ के भामाशाह ने तो कई पीढ़ियों से संचित अपनी संपूर्ण दौलत महाराणा प्रताप की सेवा में अर्पित कर दी थी, जिससे 25000 सैनिकों को 25 वर्षों तक वेतन आदि दिया जा सकता था। 

मौजूदा समय में केंद्र में मोदी और राज्य में योगी जी की सरकार है। देश और राज्य की बहुसंख्यक जनता दोनों जनप्रिय नेताओं के प्रति पूर्णत: समर्पित है। विहंगावलोकन के दौरान इस कृति में आदरणीय डॉ दिनेश चंद्र सिंह जी के द्वारा व्यक्त किए गए विचारों, लोक कल्याणकारी कार्यों, प्रीतिकर कार्यसंस्कृति और लोक संग्रही स्वभाव को जानकर इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि "डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह जी ईज ए पर्सन ऑफ वर्सटाइल पर्सनैलिटी एंड स्प्लेंडिड जेनेरोसिटी।" वस्तुतः "जमाना उन्हें याद रखता है जो लिखने लायक कुछ कर जाते हैं या पढ़ने लायक कुछ लिख जाते हैं।" आप में यह दोनों विशेषताएं पाई जाती हैं। श्रम साध्य लेखन कार्य की सराहना करते हुए अपनी बात पूरी करता हूं। आईएएस डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह की कृति ''काल-प्रेरणा" पर हर किसी को एक विहंगम दृष्टि अवश्य डालनी चाहिए। इससे कार्य प्रेरणा मिलेगी। लीक से अलग हटकर कुछ करने की जीजीविशा भी पैदा होगी।

पुस्तक समीक्षक- परमेश्वर सिंह, 

परमेन्द्रा कुटीर, कोट बाजार, पयागपुर, बहराइच

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