समाज की विसंगतियों को सामने रखा था कमलेश्वर ने

साहित्य के अलावा कमलेश्वर साहित्य पत्रिकाओं और समाचार पत्रों से भी सक्रियता से जुड़े रहे। उन्होंने नयी कहानियां, सारिका, कथा यात्रा और गंगा जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया।
हिन्दी में नयी कहानी के प्रमुख स्तंभ कमलेश्वर बहुमुखी प्रतिभा के रचनाकार थे जिन्होंने कहानी, उपन्यास, आलोचना के अलावा पत्रकारिता, रेडियो, टेलीविजन और फिल्मों जैसी विधाओं में भी अपनी रचनाधर्मिता का जबरदस्त परिचय दिया। साहित्य समीक्षकों के अनुसार कमलेश्वर ने जीवन की विभिन्न चुनौतियों को रचनात्मक दिशा दी और अपनी पैनी नजरों से समाज की बारीक से बारीक विसंगतियों को सामने रखा। उनकी कहानियों में समाज के आम पात्र होते हैं लेकिन संवेदनाओं के मामले में वे सभी वर्गों से अपना तादात्म कायम करने लगते हैं। कथाकार एवं जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक असगर वजाहत ने बताया था कि कमलेश्वर नयी कहानी के पर्याय थे। उनकी कहानियों की भाषा और संवेदना का एक विशिष्ट प्रकार था और यही उन्हें अन्य कथाकारों से अलग करता है। उन्होंने कहा कि कमलेश्वर हिन्दी और उर्दू के संस्कार लेकर आए और उन्होंने आदर्श भाषा लिखी। उनकी खोई हुई दिशाएं जैसी कहानियों के जीते जागते पात्र हैं लेकिन इनकी परिस्थितियां कल्पना से परे होती हैं। उन्होंने भागे हुए यथार्थ को अपनी कहानियों एवं उपन्यासों में पेश किया जिससे उनकी अभिव्यक्ति बेहद सशक्त हो गई।
वजाहत के अनुसार, कमलेश्वर ने कथा उपन्यास के अलावा रेडियो, टेलीविजन और फिल्मों के लिए भी लिखा। इससे उनके रचनात्मक अनुभवों में विस्तार हुआ। रचनात्मक स्तर पर यह विविधता उनके लेखन के लिए एक ताकत बनकर उभरी। वरिष्ठ कथाकार कृष्णा सोबती के अनुसार, कमलेश्वर हिन्दी में नयी कहानी की बखूबी नुमाइंदगी करते हैं। उनकी कहानियों में उनके विशिष्ट तेवर और मापतौल वाली बारीक दृष्टि का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। उन्होंने रचनात्मकता के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का बखूबी सामाना किया और समय के साथ बदलने की क्षमता दिखाई। सोबती के अनुसार, कमलेश्वर नयी कहानी के त्रिकोण में सबसे चतुर रचनाकार थे। उन्होंने एक छोटे से कस्बे से महानगर तक की अपनी यात्रा के तमाम अनुभवों को अपनी कथाओं में जीवंत तरीके से अभिव्यक्त किया है। उनकी कहानियां हिन्दी की विकास यात्रा का एक अहम हिस्सा हैं। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में छह जनवरी 1932 को जन्मे कमलेश्वर की पहली कहानी 'कामरेड' 1948 में प्रकाशित हुई थी। छात्र जीवन के दौरान ही उनका पहला उपन्यास बदनाम गली प्रकाशित हो गया था। कमलेश्वर नयी कहानी आंदोलन के तीन प्रमुख स्तंभों से एक थे। उनकी राजा निरंबसिया मांस का दरिया नीली झील नीलमणि जार्ज पंचम की नाक जैसी कहानियां अपने शिल्प पात्र भाषा एवं प्रभाव के कारण बेहद चर्चित हुईं। कमलेश्वर ने 300 से अधिक कहानियां लिखीं।
साहित्य के अलावा कमलेश्वर साहित्य पत्रिकाओं और समाचार पत्रों से भी सक्रियता से जुड़े रहे। उन्होंने नयी कहानियां, सारिका, कथा यात्रा और गंगा जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। इसके अलावा वह हिन्दी समाचार पत्र दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर के संपादक रहे। कमलेश्वर के रचनात्मक जीवन का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष फिल्म था। वह 1970 के दशक में मुंबई गए और उन्होंने एक दशक के भीतर करीब 99 फिल्मों की पटकथा में योगदान दिया। उनकी सर्वाधिक चर्चित फिल्म आंधी थी जो उनके उपन्यास काली आंधी पर आधारित थी। इसके अलावा उन्होंने जिन अन्य चर्चित एवं लोकप्रिय फिल्मों की पटकथा लिखी उनमें मौसम, रजनीगंधा, छोटी सी बात, रंग बिरंगी, द बर्निंग ट्रेन, मि. नटवरलाल और राम बलराम प्रमुख हैं। फिल्मों के अलावा वह रेडियो और टेलीविजन से जुड़े रहे। अपनी भारी आवाज के साथ उन्होंने कई महत्वपूर्ण अवसरों पर रेडियो एवं दूरदर्शन के लिए कमेंट्री की। इसके अलावा उन्होंने कुछ साल दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक का पद भी संभाला। उन्होंने चंद्रकांता, आकाशगंगा, बेताल पच्चीसी जैसे कुछ टीवी धारावाहिकों की पटकथा लिखी। कमलेश्वर के प्रमुख उपन्यासों में एक सड़क सत्तावन गलियां, डाक बंगला, तीसरा आदमी, समुद्र में खोया आदमी और काली आंधी प्रमुख हैं। उन्हें 'कितने पाकिस्तान' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उनकी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण प्रदान किया।
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